- भारत की ग़रीबी को अतिश्योक्तिपूर्ण और सनसनीख़ेज़ तरीक़े से मिर्च मसाला लगा चित्रित करना सदा से ही पश्चिमी मीडिया की विशेष प्रवृत्ति रही है
- पश्चिमी मीडिया और अकादमिक तंत्र भारत के विकास संबंधी मुद्दों और समस्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने वाली मानवीय रुचि की कहानियों के प्रति अति आसक्त है
- हाल ही में संपन्न अनंत अंबानी-राधिका मर्चेंट विवाह समारोह का पक्षपाती मीडिया कवरेज वैश्विक स्तर पर अपनी सांस्कृतिक कहानी गढ़ने के भारत के प्रयासों को लेकर पश्चिम की असहजता को दर्शाता है
- शाही शादियों, एस्कॉट रेस आदि जैसे प्रतिष्ठित और भव्य पश्चिमी समारोहों के सीधे और सकारात्मक कवरेज के विपरीत अंबानी विवाह की अति आलोचनात्मक कवरेज।
- अंबानी विवाह समारोह में हिंदू परंपराओं और संस्कृति को दर्शाया गया, यह बॉलीवुड के अधिकतर विवाह समारोहों से बिलकुल अलग रहा जिनमे स्वयं को अतिआधुनिक दिखाने की होड़ में हिंदू परंपराओं और संस्कृति को तिलांजलि दे दी जाती है
मैंने अंतरराष्ट्रीय मीडिया में वृहत् स्तर पर कार्य किया है। अतः मैं आत्मविश्वास के साथ कह सकती हूँ कि अपने इस अनुभव के चलते मैं अंतराष्ट्रीय न्यूज़ मीडिया चक्र के आंतरिक ढाँचे से भली भाँति परिचित हूँ। यदि आप किसी अंतरराष्ट्रीय समाचार चैनल के साथ बतौर संवाददाता कार्यरत हैं और भारत से जुड़े मुद्दों की रिपोर्टिंग करते हैं, तो आपसे सामान्यतः ऐसी कहानियों पर ध्यान केंद्रित करने की अपेक्षा की जाती है जो भारत की “समस्याओं” को उजागर करती हों ।
कोई लिखित नियमावली नहीं है जो आपको ऐसा करने के लिए कहती है। परंतु यह वैश्विक मीडिया तंत्र के आंतरिक ढाँचे में अंतर्निहित एक अलिखित मानदंड है। भारत जैसे वैश्विक दक्षिण के देशों को कवर करते समय, आपसे अपेक्षा की जाती है कि आप उनकी समस्याओं को उजागर करने वाली मानवीय रुचि की कहानियों की तलाश करें – गरीबी, बेरोजगारी, भूख, लैंगिक असमानता, जाति व्यवस्था, आदि मुद्दों को भुनाती हुई कहानियाँ। पश्चिमी संस्थानों द्वारा प्रतिवर्ष जारी किए जाने वाले अतिसनसनीख़ेज़ सूचकांक – वैश्विक भूख सूचकांक, विश्व गरीबी सूचकांक, लोकतंत्र सूचकांक, आदि भारत से जुड़ी इन मीडिया कहानियों के लिए एक प्रकार का चारा प्रदान करते हैं, जिनका एकमात्र उद्देश्य वैश्विक पटल पर भारत को एक बेहद दयनीय रूप में चित्रित करना है।
आपको देश के विकास संबंधी मुद्दों और समस्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने वाली कहानियों पर काम करने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। उदाहरण के लिए, यदि आप किसी ऐसे क्षेत्र के निवासियों का साक्षात्कार करते हैं जो पानी की गंभीर कमी की समस्या से पीड़ित है, तो यह स्पष्ट है कि वे सरकारी नीतियों की आलोचना करेंगे, और वे आपको जो भी बताएंगे, वह सब उनके व्यक्तिगत अनुभव और दुखों पर आधारित होगा। अब इस परिदृश्य पर विचार करें: भारत में कहीं एक क्षेत्र से लिए गए कुछ साक्षात्कार जो पानी की गंभीर कमी से ग्रसित है, अब इन साक्षात्कारों को वैश्विक स्तर पर भारत की एक दयनीय तस्वीर बनाने हेतु दृश्यों और मानवीय-हित तत्वों का उपयोग कर बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है। इस प्रकार की पत्रकारिता में कुछ भी वैज्ञानिक या तर्कसंगत नहीं है। वरन् वैश्विक मंच पर भारत को लेकर एक नकारात्मक धारणा बनाने के लिए बेहद नाटकीय और अतिशयोक्तिपूर्ण कथानक का उपयोग किया जाता है। यह घिसी पिटी तकनीक काम करती है क्योंकि लोग इस प्रकार की कहानियों को देखने और पढ़ने के इतने आदी हो गए हैं कि जब वही मिथक बार-बार दोहराये जाते हैं, तो लोग इन्हें वास्तविकता मान बैठते हैं।
भारत की ग़रीबी और लाचारी को मिर्च मसाला लगा अतिशयोकितपूर्ण और सनसनीख़ेज़ तरीक़े से प्रस्तुत करने में पश्चिम को महारत हासिल है। बल्कि ऐसा कहना अतिशोक्ति न होगी कि वैश्विक पटल पर भारत की ऐसी नकारात्मक और निराशाजनक छवि उकेरना हमेशा से ही पश्चिम का सर्वाधिक प्रिय शौक़ रहा है।
जब भारत की उपलब्धियों से जुड़ी खबरें आती हैं – अंतरिक्ष अन्वेषण संबंधी उपलब्धियाँ, आर्थिक विकास, शहरी विकास, वैज्ञानिक प्रगति, भारतीय व्यवसायिक दिग्गजों का विश्व स्तर पर बड़ा बनना, आदि, तो पश्चिमी तंत्र काफी नाराज़ नज़र आता है। वे समझ नहीं पाते कि इस प्रकार की खबरों का भला क्या करें क्योंकि यह उनके एजेंडे में फिट नहीं बैठतीं! इसलिए, वे ऐसी खबरों को तोड़-मरोड़ कर कुछ इस प्रकार से प्रस्तुत करते हैं जिससे पूरा कथानक आर्थिक असमानता, जाति व्यवस्था, गरीबी आदि के इर्द गिर्द ही घूमे। पश्चिमी देशों ने लंबे समय से खुद को “सांस्कृतिक आकांक्षा” की एक दुर्जेय वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया है। यूके, फ्रांस, जर्मनी, आदि देशों ने मुख्य रूप से अपने सांस्कृतिक वर्चस्व के आधार पर खुद को वैश्विक स्तर पर मार्केट किया है। जब भारतीय इन देशों में पढ़ाई करने या रोज़गार के अवसर तलाशने हेतु जाते हैं, तो उनसे भी यही अपेक्षा की जाती है कि वे पश्चिमी “संस्कृति” और वहाँ की शानदार “सभ्यता” से अत्याधिक प्रभावित हो जायें, वही संस्कृति और सभ्यता जिसे पश्चिमी मीडिया और लोकप्रिय संस्कृति तंत्र महिमा मंडित करते नहीं थकते। परंतु जब भारत अपनी संस्कृति को लेकर अंतराष्ट्रीय स्तर पर एक प्रभावशाली कथानक बुनने की चेष्टा करता है, तो संपूर्ण पश्चिमी तंत्र बौखला उठता है। वह भारत की इन चेष्टाओं को सिरे से ही ख़ारिज कर देता है। भारतीय संस्कृति और परंपरा का कोई भी भव्य और शानदार उत्सव या समकालीन आधुनिकता और विलासिता के बाज़ार के सौंदर्यशास्त्र के साथ भारतीय संस्कृति का महत्वाकांक्षी विलय “अश्लील” और “अनावश्यक” के रूप में खारिज कर दिया जाता है। तर्क हमेशा एक जैसे होते हैं: एक गरीब राष्ट्र में धन और विलासिता का ऐसा प्रदर्शन अनावश्यक है।
Rudyard Kipling की प्रसिद्ध कविता “द व्हाइट मैन्स बर्डन” में भारत की जो बेहद नकारात्मक और आपत्तिजनक छवि गढ़ी गयी है, ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम अंतहीन रूप से उसी पर अड़ा हुए है। वह उस छवि को आत्मसात् कर सदियों से वैसे ही बैठा है, भारत को उसी प्रकार से आज भी वैश्विक पटल पर चित्रित करते हुए। हालांकि भारत में जन्मे किपलिंग की उनकी विवादास्पद कविता के लिए भारी आलोचना भी हुई है, जिसमें उन्होंने “मूल निवासियों” की नस्लवादी रूढ़ियों का आह्वान किया है और स्पष्ट रूप से साम्राज्यवाद की वकालत की है। किपलिंग के उपन्यास “किम” को भारत के बेहद सतही व आपत्तिजनक चित्रण और भारतीयों को अंधविश्वासी, रहस्यवादी और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों के अधीन रहने वालों के रूप में चित्रित करने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है।[1]
ऐसा लगता है कि पश्चिम आज तक भारत के विकास को स्वीकार नहीं कर पाया है। शायद यही वजह है कि वह देश से हर मुद्दे को प्रस्तुत करते समय भारतद्वेष और हिंदूद्वेष का प्रदर्शन करता है।
इस लेख में हम भारत में अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट के हाल ही में संपन्न हुए विवाह को लेकर पश्चिमी मीडिया की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग पर विस्तार से चर्चा करेंगे। अनंत रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक मुकेश अंबानी के बेटे हैं – जिन्हें भारत का सर्वाधिक धनी व्यक्ति और विश्व का 11वां सबसे धनी व्यक्ति कहा जाता है, जिनकी अनुमानित कुल संपत्ति 123.7 बिलियन अमरीकी डॉलर है।[2]
अंबानी विवाह की आलोचना: पश्चिमी मीडिया की ईर्ष्या का सार्वजनिक प्रदर्शन!
अनंत अंबानी-राधिका मर्चेंट के विवाह समारोह ने मीडिया में जबरदस्त दिलचस्पी पैदा की। इस भव्य विवाह समारोह की पश्चिमी मीडिया ने बढ़ चढ़कर कवरेज की जिसमें से अधिकांश नकारात्मक रही। पश्चिमी मीडिया ने अंबानी विवाह के कथानक का इस्तेमाल भारत में “बढ़ती आर्थिक असमानता” और “पूंजीवाद के उदय” के इर्द गिर्द विषैला विमर्श बुनने के लिए किया। जबकि वास्तविकता यह है कि इस प्रकार की बेसिरपैर की आलोचना किसी मज़ाक से कम नहीं है, यदि हम इस तथ्य को देखें कि पश्चिम की ख़ुद की अर्थव्यवस्था उसी पूंजीवादी ढांचे पर आश्रित है और उसी के माध्यम से संचालित होती है जिसको लेकर पश्चिमी मीडिया अंबानी विवाह के संदर्भ में तानों की झड़ी लगा रहा है। इससे भी अधिक हास्यास्पद बात तो यह है कि जहां एक ओर पश्चिमी मीडिया अंबानी के इतना बड़ा पूँजीवादी होने में कोई गहरा षडयंत्र देख रहा है, वह इस बात को लेकर सर्वथा अनभिज्ञ प्रतीत होता है कि सबसे अधिक संख्या में पूँजीपति उद्योगपति तो ख़ुद पश्चिमी देशों में मौजूद हैं।
“एक शादी ने भारत के स्वर्णिम युग को भव्य रूप से प्रदर्शित किया।” , यह अंबानी विवाह के संदर्भ में The New York Times की हेडलाइन कहती है। “कई भारतीय मुकेश अंबानी जैसे मुगलों के उदय की जय-जयकार करते हैं, जिनके पुत्र की शादी एक वैश्विक तमाशा बन गई है। उनके लिए, भारत की गरीबी पूर्वानुमान योग्य है, लेकिन इस प्रकार की समृद्धि नहीं”, कहानी के परिचय में लिखा है। [3]
आपको इस कहानी को पूरा पढ़ने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। भारत के प्रति घृणा का भाव इन शुरुआती पंक्तियों में ही स्पष्ट जो जाता है, जहाँ लेखक ने घोषणा की है कि भारत में गरीबी का तो पूर्वानुमान लगाया जा सकता है, जबकि समृद्धि चौंकाने वाली और अप्रत्याशित है। यह बहुत हद तक एक धनाद्य व्यक्ति की अपने उस पड़ोसी के प्रति ईर्ष्या भाव को दर्शाता है, जो पहले तो दरिद्रता पूर्ण जीवन यापन करने को विवश था परंतु अचानक धनी हो गया और उसके साथ प्रतिस्पर्धा करने लगा। यह कुछ उसी प्रकार की सामान्य ईर्ष्या है, जो पश्चिम इस बचकानी मीडिया कवरेज में प्रदर्शित करता है।
The Washington Post ने इस विवाह को कवर करते हुए एक बेहद सनसनीखेज लेख लिखा। इसने अंबानी के विवाह के “तमाशे” की तुलना “मुंबई में वार्षिक बारिश के कारण आने वाली बाढ़” से की। शीर्षक में लिखा था, “एक भव्य भारतीय शादी के दूसरी तरफ, निराशा और जलमग्न सड़कें।” कहानी के परिचय में कहा गया है, “अनंत अंबानी का भव्य विवाह समारोह एक राष्ट्रीय मनोवैज्ञानिक प्रयोग था: भारतीय समृद्धि का विस्मयकारी प्रदर्शन या असंतुलित विकास का अभियोग?” [4]
लेख में अनंत अंबानी के विवाह हेतु मुंबई में की जा रही व्यवस्थाओं की तुलना भारी वर्षा के कारण शहर में बनी बाढ़ जैसी स्थितियों से की गई है। यह एक विशिष्ट षडयंत्र सिद्धांत शैली में लिखा गया है और तर्क से रहित है। इस लेख को पढ़ने के बाद पाठक अपना सिर पकड़ लेगा की आख़िर लेखक कहना क्या चाह रहा है। चूंकि भारी वर्षा के कारण आस-पास के इलाकों में जलभराव है, इसलिए अरबपति व्यवसायी को नैतिक आधार पर अपने पुत्र की शादी नहीं करनी चाहिए? आपने कितनी बार ब्रिटेन के शाही विवाह समारोहों को रुकते या अमेरिका में ऑस्कर समारोह को इस आधार पर रद्द होते देखा है की सड़कों पर बेघर और निराश्रय लोग मौजूद हैं? इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपने कितनी बार पश्चिमी मीडिया को पश्चिमी देशों में संपन्न ऐश्वर्यपूर्ण और चकाचौंध भरे वैश्विक स्तर के आलीशान समारोहों की इस प्रकार के नैतिक आधार पर आलोचना करते देखा है?
दोनों घटनाएँ – अनंत अंबानी का विवाह समारोह और भारी वर्षा के कारण मुंबई की सड़कों पर हर वर्ष आने वाली बाढ़ – इन दोनों का आपस में दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं है। एक विवाह का उत्सव है और दूसरा एक नागरिकों से जुड़ा मुद्दा है, जिसे मीडिया को अपने आप में एक अलग मुद्दे के रूप में कवर करने का पूरा अधिकार है। परंतु, इसके उलट The Washington Post ने अपने चिर परिचित सनसनीखेज अन्दाज़ में पाठकों को भ्रमित करने हेतु चरम वामपंथी बयानबाजी के माध्यम से दोनों मुद्दों को मिला दिया है, यह सुझाव देते हुए कि एक विकासशील देश के नागरिकों को सदैव ही शोक की स्थिति में रहना चाहिए क्योंकि वहाँ अभी भी गरीब लोग हैं। इस प्रकार का सतही विश्लेषण पाठकों को गुमराह करता है और एक वैवाहिक उत्सव को एक असंबंधित नागरिक समस्या से जोड़कर अनुचित रूप से उस उत्सव की आलोचना करता है।
अंबानी विवाह की पश्चिमी मीडिया आलोचना उसी घिसे पिटे ढर्रे पर चलती दिखाई देती है। यह एक स्व-अभिषिक्त नैतिकता पुलिस बन अंबानी को उनके पुत्र की शादी को “भव्य” तरीके से आयोजित करने के लिए फटकार लगाती है। इस प्रकार की मीडिया कवरेज के अनुसार, अंबानी परिवार का अपराध यह है कि उन्होंने एक ऐसे देश में इतने आलीशान विवाह समारोह का आयोजन किया जो कि अभी भी “पर्याप्त रूप से समृद्ध” नहीं है। इसीलिए यह उनकी एक प्रकार से नैतिक हार है, ऐसा इस मीडिया कवरेज का कहना है।
“अंबानी परिवार के भव्य विवाह समारोह को लेकर भारत के लोग एकमत नहीं “, यह अंबानी विवाह पर BBC द्वारा की गई एक संक्षिप्त वीडियो कहानी की हेडलाइन है। यह सनसनीखेज लेख अंबानी विवाह की तस्वीरों को एक गरीब व्यक्ति के संक्षिप्त उद्धरण के साथ जोड़कर विवाद पैदा करता है, जिसमें वह कहता है कि वे इतनी भव्य शादी कर रहे हैं जबकि यहाँ लोग खाने के लिए तरस रहे हैं। यह पत्रकारिता का सबसे सनसनीखेज और अनैतिक रूप है, या फिर शायद यह कहना अधिक उपयुक्त रहेगा कि सबसे बुरा। अपना स्वार्थ साधने हेतु गरीब लोगों को ढाल बनाना और उनके वक्तव्यों को भावनात्मक रूप से भुनाना ही ऐसी तथाकथित कहानियों का मुख्य उद्देश्य होता है। इस 1 मिनट से भी कम समय की वीडियो कहानी का सार मात्र यह है कि अंबानी परिवार अपने निर्धन और असहाय भारतीय समकक्षों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार एक “घोर पूँजीवादी ” हैं।
भारतीय मीडिया अंबानी विवाह की आलोचना करने के लिए इसी विमर्श तंत्र का अनुसरण करता है। The Leaflet नामक एक वामपंथी-उदारवादी प्रकाशन ने अपनी कवरेज में घोषणा की कि अंबानी का विवाह समारोह “अश्लील” है। शीर्षक में लिखा है, “अंबानी विवाह समारोह भारत के धनिकतंत्र की अश्लीलता को उजागर करता है।”[5]
लेख अंबानी की छवि पूरी तरह से धूमिल करने को अतिआतुर प्रतीत होता है। यह अंबानी परिवार को उन मध्यम वर्ग और गरीब भारतीयों की दुर्दशा के लिए उत्तरदायी ठहराता है जो बैंक से ऋण लेते हैं और अपने बच्चों के विवाह हेतु धनराशि जुटाने के लिए सामर्थ्य से बाहर जा कुछ भी कर गुजरते हैं। फिर लेख मुकेश अंबानी और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित निकटता को लेकर टिप्पणी करता है और इस प्रक्रिया में उस भारत विरोधी पश्चिमी विमर्श को विस्तार देता है जिसके अनुसार भारतीय सरकार अंबानी जैसे व्यवसायी दिग्गजों का पक्ष लेने के लिए “अपनी सीमा से बाहर जा रही है”।
लेख फिर पूरी तरह से अतार्किक हो जाता है, यह घोषणा करते हुए कि अंबानी विवाह समारोह “भारत के वास्तविक धनिकतंत्र का प्रतीक है,” और एक ऐसे शासन का सुझाव देता है जहां पूँजीपति वर्ग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सरकार पर नियंत्रण रखता हैं।
“अंबानी का विवाह समारोह: सबसे अमीर लोगों के लिए दावत,” The Hindustan Gazette द्वारा प्रकाशित एक लेख का शीर्षक है। Madras Courier द्वारा प्रकाशित एक लेख की हेडलाइन है, “दो भारत की कहानी और धन और शक्ति की प्रदर्शनकारी कला।” कहानी को समझना मुश्किल है क्योंकि यह बिना किसी तर्क के एक बिंदु से दूसरे बिंदु पर भटकती रहती है, कई बेतरतीब चीजों को एक साथ मिलाती है और अंततः भ्रमित करती है। अंबानी और उनके “दिखावटी प्रदर्शन” की आलोचना करते करते, यह अचानक भारतीय प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधती है, और उन पर जनता के सामने अपनी विशिष्ट छवि बनाने हेतु “चायवाला” (चाय बेचने वाला) का कथानक गढ़ने का आरोप लगाती है। कहानी में कहा गया है, “ऊपर बताए गए अरबपतियों की तरह, नरेंद्र मोदी भी एक कहानी सुनाते हैं – कि वे, जो एक चायवाले की साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं, प्रधानमंत्री बन गए… वास्तव में, उन्होंने अपना व्यक्तित्व बनाने के लिए अथक परिश्रम किया; उनके पास कैमरामैन का एक दल है जो उनकी हर हरकत को कैद करता है। वे वास्तव में प्रदर्शनकारी राजनीति के विशेषज्ञ हैं।” [6]
कोई इसके विपरीत भी तर्क दे सकता है: वास्तव में इस प्रकार की कहानियाँ बुनने वाले लेखक ही प्रदर्शनकारी राजनीति के विशेषज्ञ हैं! गौर करें कि कैसे इनमें से कई लेखों में अंबानी विवाह की आलोचना अंततः भारत सरकार और लोकतंत्र की आलोचना में परिवर्तित हो जाती है। इससे पता चलता है कि भारतद्वेष या भारत विरोधी भावना इस प्रकार की आलोचना के मूल में है। चूँकि अरबपति मुकेश अंबानी भारत के बढ़ते आर्थिक वर्चस्व का प्रतीक हैं, इसलिए वे एक आसान लक्ष्य बन जाते हैं।
अंबानी विवाह से जुड़े वे सकारात्मक पहलू जिन्हें पश्चिमी मीडिया ने किया नज़रअंदाज़
अनंत-राधिका के विवाह के पूर्व, अंबानी परिवार ने गुजरात और मुंबई के बीच पालघर क्षेत्र के 50 से अधिक निर्धन जोड़ों के लिए “सामूहिक विवाह” का आयोजन किया। नवी मुंबई के रिलायंस कॉरपोरेट पार्क में आयोजित इस समारोह में स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं, जोड़ों के परिवार के सदस्यों और समुदाय के प्रतिनिधियों सहित लगभग 800 लोगों ने भाग लिया।
अंबानी परिवार ने प्रत्येक वधू को 1.01 लाख रुपये (लगभग 1,200 अमेरिकी डॉलर) का चेक भेंट किया, जो स्त्रीधन (एक महिला की व्यक्तिगत संपत्ति) का प्रतीक है। सभी वधूओं को सोने और चांदी के आभूषण भी भेंट किए गए। इसके अतिरिक्त, नवविवाहितों को एक वर्ष के लिए आवश्यक घरेलू और किराने के समान सहित विवाह के बाद के समय के लिए भी पर्याप्त आर्थिक सहायता प्रदान की गई।[7]
पश्चिमी मीडिया भारत जैसे “तीसरी दुनिया” के देशों में पश्चिमी गैर सरकारी संगठनों द्वारा किए गए थोड़े से भी दान को अत्यधिक कवरेज देता है। परंतु आपने भारत में अंबानी या अन्य व्यापारिक परिवारों की परोपकारी गतिविधियों पर चर्चा करते हुए कितनी कहानियाँ देखी हैं? शायद स्थानीय भारतीयों (विशेष रूप से हिंदुओं) द्वारा अपने कम विशेषाधिकार प्राप्त समकक्षों के लिए किए गए दान कार्यों को उजागर करना उनके “श्वेत व्यक्ति के बोझ” की विरासत को बनाये रखने के एजेंडे में फिट नहीं बैठता।
अंबानी परिवार ने अनंत-राधिका के विवाह से पूर्व 40-दिवसीय भंडारे (सार्वजनिक भोज) का भी आयोजन किया। मुंबई में उनके घर पर आयोजित इस भंडारे में कथित तौर पर औसतन 9,000 लोगों को प्रतिदिन भोजन कराया गया। दान-पुण्य हिंदू विवाह तंत्र का एक अंतर्निहित पहलू है। विवाह समारोहों के दौरान, कम भाग्यशाली लोगों को भोजन कराना शुभ माना जाता है। यह हिन्दू विवाह परंपरा का एक अभिन्न अंग है। अधिकतर हिंदू सामाजिक समारोहों और उत्सवों में आपको इस प्रकार के भंडारे देखने को मिल जाएँगे। यह सामूहिक भोज आयोजन सामाजिक स्तर पर कार्य करते हैं जहाँ वर्ग या आर्थिक स्थिति की कोई अवधारणा नहीं होती है। हिंदू मंदिरों में आयोजित ऐसे सामूहिक भोजों में, सभी पृष्ठभूमि और आर्थिक व सामाजिक वर्गों के लोग एक साथ भोजन करते हैं।
नीता अंबानी के नेतृत्व में रिलायंस फाउंडेशन के माध्यम से मुकेश अंबानी परिवार की परोपकारी गतिविधियों का समन्वय किया जाता है। EdelGive Hurun India Philanthropy List 2023 के अनुसार, मुकेश अंबानी और उनका परिवार सर्वाधिक दान पुण्य करने वाले भारतीय अरबपतियों की सूची में तीसरे नंबर पर हैं, जिन्होंने वित्त वर्ष 23 में 376 करोड़ रुपये दान किए। रिलायंस फाउंडेशन के माध्यम से उन्होंने अपने परोपकारी प्रयासों को आम जन मानस तक पहुँचाया। रिपोर्ट के अनुसार अंबानी परिवार के परोपकारी प्रयास स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा क्षेत्र पर केन्द्रित रहे। [8]
शाही वैभव की भूरी भूरी प्रशंसा, अंबानी परिवार के ऐश्वर्य और समृद्धि की कड़वी आलोचना
पश्चिमी मीडिया भारत जैसे देशों में अत्याधिक धनी और प्रसिद्ध व्यक्तियों के परिवार से जुड़े विवाह समारोहों की रिपोर्टिंग करने हेतु पश्चिमी देशों के शाही विवाहों से अलग मानक रखता है। यह विडंबना है कि मीडिया, जो स्वयं को “प्रगतिशील” बताता नहीं थकता, मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपतियों द्वारा अपने पुत्र के विवाह समारोह में खर्च की गई धनराशि की अत्यधिक आलोचना करता है। जबकि अंबानी सरीखे भारतीय उद्योगपतियों को इस प्रकार का वैभव और ऐश्वर्य किसी विरासत में नहीं प्राप्त हुए। उन्होंने कठोर परिश्रम के आधार पर इस धन और प्रतिष्ठा को हासिल किया है। इसके विपरीत, पश्चिमी मीडिया ब्रिटेन के राजकुमार चार्ल्स (जो अब किंग चार्ल्स III हैं) और लेडी डायना और प्रिंस विलियम और केट मिडलटन जैसे राजसी विवाह समारोहों की धूमधाम और भव्यता का गुणगान करते नहीं थकता। जबकि इन शाही परिवारों को यह सब धन दौलत विरासत में मिली है, इसीलिए तर्क के आधार पर तो अधिक उचित यह होता कि पश्चिमी मीडिया अंबानी विवाह के बजाय इन शाही ख़ानदानों के व्यर्थ के आडम्बर की आलोचना करता।
मुकेश अंबानी को अपने पिता से अपने व्यापारिक साम्राज्य का एक हिस्सा विरासत में अवश्य मिला हो सकता है, परंतु अंबानी परिवार किसी भी दृष्टिकोण से “राजसी” नहीं है। मुकेश अंबानी के पिता धीरूभाई अंबानी, गुजराती गाँव चोरवाड़ के एक बेहद गरीब परिवार में जन्मे थे। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, परिवार की कठिन परिस्थितियों के चलते, उन्हें अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए कम आयु में ही स्कूली शिक्षा से वंचित होना पड़ा और छोटे-मोटे काम करने पड़े। कथित तौर पर गैस स्टेशन पर काम करते समय उनका पहला वेतन मात्र 300 रुपये (4 अमेरिकी डॉलर से भी कम) था। [9]
इसकी तुलना ब्रिटिश राजघरानों से करें, जिन्हें असीम वैभव बिना कोई श्रम किए विरासत में मिलता है और वे पूरी तरह से वंशानुगत आधार पर संपत्ति प्राप्त करते हैं। ब्रिटिश शाही परिवार के साथ अंबानी की संपत्ति का तुलनात्मक विश्लेषण इस लेख के दायरे से बाहर है, लेकिन मुकेश अंबानी की संपत्ति ब्रिटेन के शाही परिवार की तुलना में बहुत कम है। फिर भी पश्चिमी मीडिया का पाखंड शाही विवाह समारोहों के यश गान गाते नहीं थकते, और एक स्व-निर्मित भारतीय उद्योगपति के पुत्र के विवाह समारोह को अश्लील और दिखावटी करार देने का दुस्साहस रखते हैं। इससे बड़ी विडंबना भला और क्या होगी।
ब्रिटिश शाही परिवार के राजकुमार विलियम और केट मिडलटन का विवाह समारोह इतनी अधिक सुर्ख़ियों में रहा कि विवाह के औसतन 13 वर्ष बाद भी मीडिया इस पर खबरें करते नहीं थकता! “प्रिंस विलियम, प्रिंसेस केट ने 13वीं शादी की सालगिरह मनाई: देखें उनकी शादी का पुराना फोटो।”[10], USA Today की हेडलाइन में लिखा है। “प्रिंस विलियम और केट मिडलटन ने अपनी शादी की सालगिरह के लिए कोई मौजूदा फोटो क्यों जारी नहीं की,” Cosmopolitan की हेडलाइन कहती है।[11] “केट मिडलटन की शादी की पोशाक के बारे में वो सब जो आपके जानने लायक़ है,” British Heritage Travel की एक हेडलाइन में लिखा है।[12] “मैं शाही शादी में शामिल होने के लिए रोमांचित हूं: यहां तक कि इस रिपब्लिकन को भी यह शाही समारोह पसंद है”, 2018 की The Guardian की हेडलाइन में कहा गया है।[13] मुद्दा यह है कि स्तंभकार “परंपरा” और “पर्यटन” के नाम पर शाही विवाहोत्सवों के धूमधाम और आडम्बर को उचित ठहराने के प्रयास में बावरे से जो जाते हैं। परंतु जब भारत जैसे “तीसरी दुनिया” के देशों के धनी और प्रसिद्ध उद्योगपतियों से जुड़े विवाह समारोहों की बात आती है, तो पूरा पश्चिमी मीडिया तंत्र एकाएक साम्यवाद का राग अलापने लगता है और इस बात को लेकर रुदन करता है कि इस प्रकार के आलीशान विवाह समारोहों से तो सामाजिक और आर्थिक विषमताएँ और अधिक गहराती हैं।
अंबानी विवाह में पश्चिम का अनुसरण करने वाले बॉलीवुड के अत्याधुनिक विवाह समारहों से इतर हिंदू रीति-रिवाजों का पालन किया गया
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हाल ही में संपन्न अंबानी विवाह हिंदू परंपराओं और रीति-रिवाजों के अनुसार पूरा हुआ। यह बॉलीवुड में आमतौर पर होने वाली चकाचौंध से परिपूर्ण एवं पश्चिम का अनुसरण करने वाली शादियों से बिलकुल अलग रहा।
अंबानी विवाह से जुड़ी हर वस्तु – विवाह के निमंत्रण पत्र और आयोजन स्थल की सजावट से लेकर रीति-रिवाजों की सूची तक – सभी भारतीयता और हिंदू संस्कृति के धागे में पिरोए गये मोतियों की भाँति थे और इस धागे का उद्देश्य वैश्विक पटल पर हिंदू संस्कृति और सभ्यता का भव्य और अलौकिक चित्रण प्रस्तुत करना था।
The New Indian Express में हाल ही में प्रकाशित एक लेख में इस बात का सटीक वर्णन किया गया है कि किस प्रकार अंबानी विवाह समारोह वैश्विक स्तर पर भारत के सांस्कृतिक वर्चस्व का एक स्थायी प्रतीक बन गया है। लेख इस बात पर भी प्रकाश डालता है कि कैसे दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने फिल्मों, सौंदर्य उत्पादों और के-पॉप जैसी संगीत विधाओं के माध्यम से अपनी संस्कृति का वैश्विक स्तर पर सफलतापूर्वक मंचन किया है और इस सांस्कृतिक ब्रांडिंग के ज़रिये अपने सांस्कृतिक उत्पादों को विश्व भर में निर्यात किया है।
लेख में आगे चर्चा की गई है कि कैसे इन सांस्कृतिक उत्पादों की वैश्विक लोकप्रियता ने पर्यटन को बढ़ावा देकर और निर्यात बढ़ाकर दक्षिण कोरियाई अर्थव्यवस्था के विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इसके बाद यह तर्क दिया गया है कि अंबानी विवाह जैसे भव्य और प्रतिष्ठित आयोजन भारत के लिए भी कुछ इस प्रकार की सांस्कृतिक ब्रांडिंग करने में सक्षम हो सकते हैं, व देश के लिए आर्थिक लाभ ला सकते हैं, सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दे सकते हैं, रोजगार पैदा कर सकते हैं और भारतीय संस्कृति के इर्द-गिर्द बहुत जरूरी प्रचार करके वैश्विक बाजार में कुछ भारतीय उत्पादों की मांग बढ़ा सकते हैं।[14]
नीता अंबानी ने हिंदू विवाह संस्कार (विवाह परंपरा) में “कन्यादान” की प्रथा के प्रतीकात्मक महत्व के बारे में बात की। मेहमानों को संबोधित करते हुए, उन्होंने हिंदू संस्कृति में बेटियों के महत्व पर अपने भावपूर्ण वक्तव्य के माध्यम से प्रकाश डाला। उन्होंने हिंदू धर्म और दर्शन की आत्म-सुधार प्रकृति के बारे में बताया, जिसने महिलाओं को सदियों से सम्मान दिया है। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि हिंदू शास्त्र हमें सिखाते हैं कि जहाँ भी बेटियाँ होती हैं, वहाँ शुभता होती है और बेटियों के पास ईश्वर प्रदत्त उच्च शक्ति होती है। उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय विवाह संस्कार वर और वधू और उनके परिवारों के बीच पूर्ण समानता की नींव पर टिका होता है।[15]
मुकेश अंबानी ने मेहमानों का स्वागत करते हुए हिंदू विवाह अनुष्ठानों के महत्व पर भी चर्चा की। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि इस प्रकार के समारोह व्यक्ति के जीवन के सबसे महत्वपूर्ण संस्कारों में से एक हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक प्रथाओं, सामाजिक कर्तव्यों और व्यापक समुदाय से जोड़ते हैं। मेहमानों का स्वागत करते हुए, उन्होंने हिंदू विवाह के सार के बारे में विस्तार से बताया और वर-वधू को पोषण और शक्ति प्रदान करने के लिए पंच तत्व (हिंदू दर्शन के अनुसार ब्रह्मांड के आवश्यक पांच तत्व) या माँ प्रकृति के पांच मूलभूत तत्वों का आह्वान किया। [16]
अंबानी परिवार द्वारा वैश्विक मंच पर हिंदू विवाह परंपराओं और रीति-रिवाजों को उजागर करना वास्तव में महत्वपूर्ण है। हिंदू विवाह की सात फेरे (विवाह को पवित्र अग्नि के सात फेरे) और कन्यादान (एक प्रतीकात्मक प्रथा जिसमें एक परिवार की बेटी को दूसरे परिवार को सौंपा जाता है क्योंकि वह अपनी पवित्र उपस्थिति से एक नए घर को प्रकाशमय करने हेतु जीवन की एक नई यात्रा पर निकलती है) जैसी प्रथाओं को लेकर कई गलत धारणाएँ और रूढ़ियाँ हैं। इन सुंदर और भावपूर्ण परंपराओं को प्राय: पश्चिमी तंत्र द्वारा नकारात्मक दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया जाता है। हिंदू विवाह संस्कार से जुड़े रीति रिवाजों की व्याख्या अब्राहमिक चश्मे के माध्यम से की जाती है। वस्तुत: पश्चिमी मीडिया भारतीय विवाह संस्कार की इन प्रतीकात्मक परंपराओं का बेहद सतही चित्रण करता है। इस प्रकार कन्यादान को एक शोषणकारी अनुष्ठान के रूप में दर्शाया जाता है, जिससे इस परंपरा को लेकर इस प्रकार की भ्रांतियाँ पनपती हैं कि हिंदू विवाह में इस परंपरा के माध्यम से माता पिता अपनी बेटी को निष्कासित कर उसे एक प्रकार का वनवास जीने पर बाधित कर देते हैं। जबकि वास्तविकता में कन्यादान की इससे अधिक मूर्खतापूर्ण व्याख्या कोई हो ही नहीं सकती। यह एक प्रतीकात्मक परंपरा है जो वधू के शुभ आगमन के माध्यम से विवाह के पश्चात दो परिवारों के पारस्परिक मिलन को दर्शाती है।
यह महत्वपूर्ण है कि इस हिंदू विरोधी तंत्र को वैश्विक स्तर पर चुनौती दे जाए , और ऐसा करने का सबसे उपयुक्त तरीका हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं को एक “भव्य ” दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना और अंतरराष्ट्रीय मंच पर उनके महत्व को उजागर करना है। धनी और प्रसिद्ध लोगों की जीवनशैली और उसके प्रदर्शन हेतु रचे गये कौतुक स्वाँग विश्व भर के लोगों के लिए रुझान निर्धारित करते हैं। अब यह प्रचलन अच्छा है या बुरा, ये अपने आप में ही एक अलग मुद्दा है लेकिन वास्तविकता यही है और इस बात से हम मुँह नहीं मोड़ सकते। इस प्रकार जब अंबानी परिवार अपने पारिवारिक विवाह समारोहों में हिंदू रीति-रिवाजों और परंपराओं को बेबाकी से प्रदर्शित करते हैं, तो यह मध्यम वर्ग के भारतीयों को एक बड़ा संदेश देता है, जो पश्चिमी संस्कृति के अंधाधुंध अनुकरण के चलते अपनी हिंदू सांस्कृतिक जड़ों से दूर होता जा रहा है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अंबानी विवाह विश्व विख्यात बॉलीवुड सितारों के अत्याधुनिक विवाह समारोहों से बिल्कुल विपरीत है, जहाँ हिंदू रीति-रिवाज तेजी से कम होते जा रहे हैं और धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू विवाह संस्कार में जबरन ईसाई परंपराओं को जोड़ा जा रहा है।
बॉलीवुड अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा और राजनेता राघव चड्ढा का विवाह समारोह बड़ी धूमधाम से 2023 में संपन्न हुआ । समारोह की तस्वीरों को देखकर कोई भी सरलता से यह भाँप सकता है कि वे एक ईसाई विवाह समारोह की परंपराओं को हिंदू विवाह संस्कार के साथ मिलाने का प्रयास कर रहे हैं। वर और वधू श्वेत रंग के परिधान धारण किए हुए हैं और श्वेत फूलों की पंक्तियों और जयकारे लगाने वाली भीड़ से घिरे गलियारे से होकर चलते हैं। यह पूरा दृश्य एक पारंपरिक ईसाई विवाह समारोह का स्मरण दिलाता है। [17]
भारत की कई हाई-प्रोफ़ाइल शादियाँ कॉकटेल पार्टियों की भाँति होती हैं। अपने आप को अधिक से अधिक आधुनिक दिखाने की होड़ में ये तथाकथित हिन्दू परिवार अपने पारिवारिक विवाह समारोहों से हिंदू विवाह संस्कार की आत्मा को ही जड़ से नष्ट कर देते हैं। लोकप्रिय संस्कृति भी यही मानक स्थापित करती है कि हिंदू जड़ों से रहित ये “धर्मनिरपेक्ष” शादियाँ ही इन प्रतिष्ठित भारतीय परिवारों के लिए आदर्श हैं। Amazon Prime पर स्ट्रीम होने वाली मेड इन हेवन नामक एक वेब सीरीज़ भारत के अति-धनी लोगों की कई ऐसी शादियों को दिखाती है, जो हिंदू रीति-रिवाज़ों और परंपराओं से रहित लगती हैं। ऐसे लोकप्रिय सांस्कृतिक उत्पादों का निहित संदेश यह है कि स्वयं को आधुनिक दिखाने के लिए अपनी हिंदू पहचान को छिपाना या पूर्णतया मिटा देना ही श्रेयस्कर है।
परंतु अनंत अंबानी-राधिका मर्चेंट के विवाह समारोह में ठीक इसके उलट हुआ। अंबानी परिवार बेधड़क अपनी हिंदू पहचान का प्रदर्शन कर रहा था। इस विवाह को मिली अभूतपूर्व मीडिया कवरेज को देखते हुए, हिंदू परंपरा और आधुनिक विलासिता का दुर्जेय विलय सोशल मीडिया पर छा गया। हिंदू विवाह को अभूतपूर्व पैमाने पर सांस्कृतिक उत्पाद के रूप में प्रचारित किया गया। इससे पश्चिमी मीडिया और अकादमिक तंत्र का भारत विरोधी और हिंदू विरोधी प्रोपेगैंडा भी कुछ फीका सा पड़ता दिखाई दिया! आख़िर इस पश्चिमी तंत्र ने हिंदूद्वेष को विभिन्न स्तरों पर बनाए रखने के लिए भारी संसाधन और समय खर्च किया है।
निष्कर्ष
अंत में, ये ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है कि हिंदू विरोधी पश्चिमी तंत्र के लिए हिंदूद्वेष और भारतद्वेष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
मुकेश अंबानी जैसे भारतीय उद्योगपतियों का पश्चिम द्वारा जो बेहद नकारात्मक और वीभत्स प्रस्तुतीकरण किया जाता है, इसका सीधा संबंध उनकी हिंदू पहचान और उनकी सांस्कृतिक जड़ों के गौरवपूर्ण प्रदर्शन से है। यह विडंबनापूर्ण है क्योंकि प्रतिष्ठित पश्चिमी शैक्षणिक संस्थान अंबानी सरीखे विश्व विख्यात भारतीय उद्योगपतियों से भारी फ़ंडिंग यानी आर्थिक सहायता की भी अपेक्षा रखते हैं। वे इन हिंदू उद्योगपतियों द्वारा दी गयी फंडिंग का तो बाँहे फैलाकर स्वागत करते हैं, परंतु वे ये भी चाहते हैं कि ये भारतीय उद्योगपति कम से कम सार्वजनिक रूप से अपनी हिन्दू पहचान और सांस्कृतिक जड़ों को से कम प्रदर्शित करें या इससे भी बेहतर, उसे पूर्णतया नष्ट कर दें।
संदर्भ
[1] AD’s English Literature: Some Critical Issues from Rudyard Kipling’s “Kim”; https://ardhendude.blogspot.com/2023/06/some-critical-issues-from-rudyard.html#:~:text=One%20of%20the%20primary%20criticisms,backdrop%20for%20the%20protagonist’s%20adventures
[2] List of Top 10 Richest People in India 2024; https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/top-richest-person-in-india-1717848970-1#
[3] Ambani Wedding Shows Off India’s New Gilded Age – The New York Times; https://www.nytimes.com/2024/07/12/world/asia/india-ambani-wedding-billionaire.html
[4] Indian wedding of Anant Ambani spurs working-class frustration – The Washington Post; https://www.washingtonpost.com/world/2024/07/16/india-wedding-anant-ambani-mumbai/
[5] Ambani event exposes the vulgarity of India’s plutocracy – The Leaflet; https://theleaflet.in/ambani-event-exposes-the-vulgarity-of-indias-plutocracy/
[6] The Story of Two Indias & The Performative Art of Wealth & Power | Madras Courier; |https://madrascourier.com/opinion/the-story-of-two-indias-the-performative-art-of-wealth-power/
[7] Ambani family hosts mass wedding for 50 underprivileged couples – The Hindu; https://www.thehindu.com/news/cities/mumbai/ambani-family-hosts-mass-wedding-for-50-underprivileged-couples/article68362452.ece
[8] Shiv Nadar donated Rs 5.6 cr day, up from Rs 3 cr per day in FY22: EdelGive Hurun India List 2023 – BusinessToday; https://www.businesstoday.in/latest/corporate/story/shiv-nadar-donated-rs-56-cr-a-day-up-from-rs-3-cr-per-day-in-fy22-edelgive-hurun-india-list-2023-404332-2023-11-02
[9] Dhirubai Ambani: Mukesh Ambani’s father’s first salary was Rs 300; lesser-known facts about Reliance Founder; https://www.dnaindia.com/business/report-dhirubhai-ambani-mukesh-ambani-s-father-s-first-salary-was-rs-300-lesser-known-facts-about-reliance-founder-3036139#
[10] Kate Middleton Prince William Wedding: Royals toast 13th anniversary; https://www.usatoday.com/story/entertainment/celebrities/2024/04/29/prince-william-princess-kate-wedding-anniversary-photo/73497606007/
[11] Why Prince William and Kate Middleton Didn’t Release a New Anniversary Pic; https://www.cosmopolitan.com/entertainment/celebs/a60646613/why-prince-william-kate-middleton-didnt-release-new-photo-wedding-anniversary/
[12] Kate Middleton’s wedding dress; https://britishheritage.com/royals/kate-middletons-wedding-dress
[13] I’m thrilled to be at the royal wedding: even this republican loves a royal knees-up | Hadley Freeman | The Guardian; https://www.theguardian.com/commentisfree/2018/may/19/at-royal-wedding-republican-knees-up-hadley-freeman
[14] Ambani Wedding: Where India’s soft power and economy said ‘I do’ – The New Indian; https://www.newindian.in/ambani-wedding-where-indias-soft-power-and-economy-said-i-do/#google_vignette
[15] Anant-Radhika Wedding: Nita Ambani Explains ‘Kanyadaan’ Ceremony in Hindu Weddings In A Heartfelt Video; https://news.abplive.com/lifestyle/anant-radhika-wedding-nita-ambani-explains-kanyadaan-ceremony-in-hindu-weddings-in-a-heartfelt-video-watch-1703384
[16] Mukesh Ambani talks about the Hindu traditional wedding, credits this person for curating grand ceremony; https://www.dnaindia.com/viral/report-mukesh-ambani-talks-about-hindu-traditional-wedding-credits-nita-ambani-3097491
[17] Unraveling the subtle secularization and wokeization of the Hindu Vivaah Sanskar; https://hindupost.in/dharma-religion/unraveling-the-subtle-secularization-and-wokeization-of-the-hindu-vivaah-sanskar/