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भारत की डिजिटल संप्रभुता का मामला

वैश्विक तकनीकी तंत्र में नव-औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों को चुनौती देना

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  •  डिजिटल मीडिया की सर्वव्यापकता और बिग टेक यानि प्रतिष्ठित पश्चिमी तकनीकी कंपनियों के वर्चस्व ने अभूतपूर्व पैमाने पर भारत विरोधी आख्यानों का प्रचार करना आसान बना दिया है
  •  अब्राहमिक और यूरोपीय सामाजिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक परिवेश में विकसित, वर्तमान ए आई उपकरण अंतर्निहित भारत विरोधी और हिंदू विरोधी पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं
  •  बिग टेक का तंत्र वोकिज्म ( एक आधुनिक विचारधारा जो पूंजीवाद और साम्यवाद का मिला जुला स्वरूप है) की राजनीति में फँसा हुआ है जिसके माध्यम से भारत विरोधी आख्यानों के प्रचार प्रसार तंत्र का काम और अधिक आसान हो जाता है
  •  भारतीय उद्यमियों ने बिग टेक के वर्चस्व को चुनौती देना शुरू कर दिया है जो कि एक आशाजनक संकेत है

[संपादक का नोट: यह लेख भारत के लिए अपना स्वदेशी डिजिटल तंत्र और विमर्श निर्मित करने हेतु और पश्चिमी बिग टेक तंत्र पर अपनी निर्भरता कम करने की आवश्यकता पर दो-भाग की श्रृंखला का हिस्सा है। श्रृंखला का यह पहला भाग उन तंत्रों को उजागर करने पर केंद्रित है जिनके माध्यम से बिग टेक तंत्र भारत विरोधी और हिंदू विरोधी आख्यानों के व्यापक प्रसार का एक साधन बन गया है। लेख भारत के भीतर से उठने वाले प्रतिरोध के स्वरों को भी उजागर करता है – देश के वे तकनीकी उद्यमी और ए आई स्टार्टअप्स जो स्वदेशी डिजिटल विमर्श के निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं। श्रृंखला के दूसरे अंक में, हम इस बात पर गहराई से चर्चा करेंगे कि किस प्रकार बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ उचित विनियामक ढांचे के अभाव का लाभ उठाकर भारतीय नागरिकों का मूल्यवान व्यक्तिगत डेटा चुराती हैं तथा अपने लाभ कमाने के प्रयोगों हेतु भारत का इस्तेमाल करती हैं।]

भाग 2 यहाँ  पढिए

हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ इंटरनेट हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर हावी है। आकस्मिक वेब ब्राउज़िंग से लेकर समाचार और वर्तमान घटनाओं को पढ़ने तक, स्कूली छात्रों को दिये होमवर्क से लेकर परीक्षाओं की तैयारी तक, लोग लगभग हर वस्तु और कार्य के लिए इंटरनेट पर निर्भर हैं। डिजिटल मीडिया प्रकाशनों की अभूतपूर्व वृद्धि और  मुख्यधारा के समाचार प्लेटफॉर्म्स के डिजिटल संस्करणों के बढ़ते चलन के साथ, अधिक से अधिक लोग डिजिटल माध्यम के द्वारा समाचारों का उपभोग करते हैं। इससे भी अधिक दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश लोग Google या विकिपीडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स द्वारा दी गई किसी भी जानकारी या दृष्टिकोण को सत्य मान बैठते हैं।

इन रुझानों का वृहत् निहितार्थ यह है कि डिजिटल माध्यम की सर्वव्यापकता और संपूर्ण डिजिटल तंत्र पर बड़ी-बड़ी पश्चिमी तकनीकी कंपनियों का आधिपत्य एक कृत्रिम तौर पर बुने गए विमर्श को विस्तृत दर्शक समूह तक फैलाने का कार्य आसान बनाते है।

फ्रैंकफर्ट स्कूल के आलोचनात्मक मीडिया सिद्धांतकारों की टेलीविज़न के उपभोग को लेकर जो सैद्धांतिक धारणायें थीं कि टेलीविज़न के अत्याधिक प्रयोग से आम जन मानस का दिमाग कुंद व शिथिल हो जाता है और उनके बुद्धि एवं विवेक पर टेलीविज़न की रंगीन आसक्तियों का पर्दा पड़ जाता है, ये वैचारिक चिंताएँ आज के परिपेक्ष में डिजिटल मीडिया पर भी समान रूप से लागू हो सकती हैं।[1]

मुख्य अंतर मात्र यह है कि आज के संदर्भ में डिजिटल मीडिया के माध्यम से लोगों के दिमाग को शिथिल बनाने की उत्तरदायी विभिन्न देशों की सरकारें नहीं हैं। आज के परिपेक्ष में वह पुराना तर्क फ़िट नहीं बैठता कि विभिन्न देशों की सरकारें अपनी अपनी जनता को नियंत्रित रखने हेतु मीडिया के माध्यम से प्रोपोगैंडा तंत्र चलाती हैं। बल्कि आज के समय में डिजिटल मीडिया के माध्यम से विश्व भर के लोगों के दिमाग़ को नियंत्रित और प्रभावित करने वाली यह इकाई वैश्विक “Deep State” है  जो एक विचारधारा विशेष द्वारा संचालित वैश्विक तंत्र है और जिसकी कोई भौगोलिक सीमाएँ नहीं हैं। यह मात्र अपने नव-औपनिवेशिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए वर्तमान डिजिटल तंत्र का लाभ उठा रहा है।

भारत ने इंटरनेट के उपयोग में अभूतपूर्व वृद्धि देखी है। अब इस देश में 820 मिलियन से भी अधिक सक्रिय उपयोगकर्ता हैं, जिनमें से आधे से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। 2023 में  देश की इंटरनेट पहुंच में साल-दर-साल आठ प्रतिशत की वृद्धि हुई। [2] विकास की यह अभूतपूर्व दर, सस्ते डेटा प्लान की उपलब्धता के साथ मिलकर, भारत को डिजिटल क्रांति के लिए तो एक आकर्षक बाज़ार बनाती ही है, साथ में डिजिटल मीडिया के माध्यम से झूठे समाचार फैलाने का जो पूरा तंत्र पनपा है, इस मुद्दे को लेकर भी भारत को बेहद संवेदनशील स्थिति में लाकर खड़ा कर देती है।

जहाँ भारत ने एक ओर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, बुनियादी ढाँचे और कनेक्टिविटी जैसी आवश्यक सेवाओं को बढ़ाने के लिए डिजिटल तकनीकों का उपयोग करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है, वहीं दूसरी ओर भारत अपना स्वयं का डिजिटल तंत्र विकसित करने में अभी तक उतना प्रभावी या सक्षम नहीं बन पाया है। देश में आज तक Google, Facebook या WhatsApp के स्वदेशी संस्करण नहीं हैं। भारत सरकार, व्यवसाय और यहाँ की जनता पश्चिमी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अत्याधिक निर्भर हो गए हैं, और यह निर्भरता देश की डिजिटल संप्रभुता के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

भारत के यूरोपीय उपनिवेशीकरण के पिछले 200 वर्षों में, पश्चिमी शिक्षाविदों और तथाकथित भारतविदों ने बहुत बड़ी मात्रा में भारत विरोधी आख्यान तैयार किए हैं। वेंडी डोनिगर, माइकल विट्ज़ेल, शेल्डन पोलक और ऑड्रे ट्रुश्के जैसे उनके आधुनिक उत्तराधिकारियों ने हमारे समय में विषैले विमर्श से परिपूर्ण इन आख्यानों को कायम रखा है, जिसे बदले में, भारतीय शिक्षाविदों ने पूरी तरह से आत्मसात कर लिया है, जो आदतन हर पश्चिम से आयातित वस्तु और सिद्धांत की प्रशंसा करते हैं।

इसमें कोई संशय नहीं है कि आज के युग में डिजिटल मीडिया ने हमारे जीवन और आचार विचार पर एक बेहद सशक्त पकड़ बना ली है जो कि सामूहिक जीवन में उसके बढ़ते वर्चस्व का प्रतीक है। परंतु इसके साथ ही डिजिटल माध्यम इन औपनिवेशिक युग के आख्यानों को गतिशील बनाये रखने के लिए एक आदर्श वाहन बन गया है।

इस पक्षपाती जानकारी व विमर्श के आधार पर प्रशिक्षित आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI)  या कृत्रिम बुद्धिमत्ता तकनीकें अनिवार्य रूप से इन हानिकारक आख्यानों को अवशोषित और पुनर्जीवित करती हैं। इसके फलस्वरूप  इन आख्यानों के और अधिक और तेज़ी से फैलने का जोखिम काफी बढ़ गया है। अतः इस पृष्ठभूमि में, भारत एक महत्वपूर्ण चौराहे पर खड़ा है। या तो वह अपने मूल ढांचे के आधार पर अपना स्वयं का डिजिटल आख्यान विकसित करे, या फिर पश्चिम के डिजिटल साम्राज्यवाद का शिकार होने का जोखिम उठाए।

एल्गोरिदम का छिपा हुआ पूर्वाग्रह

आम धारणा के विपरीत, मशीनें मूल्य-मुक्त ब्रह्मांड में नहीं रहतीं!

सर्च इंजन जटिल एल्गोरिदम पर काम करते हैं जो पक्षपाती हो सकते हैं क्योंकि उन्हें मानव-निर्मित डेटा सेट पर प्रशिक्षित किया जाता है। ( एल्गोरिदम गणित के कई नियमों का एक समूह है जिसके आधार पर मशीनों को प्रशिक्षित किया जाता है) एल्गोरिदम निर्माता के पूर्वाग्रह और विभिन्न हितधारकों के व्यापक वैचारिक हित अनिवार्य रूप से एल्गोरिदम के उन्मुखीकरण को प्रभावित करते हैं। इसके अतिरिक्त, पूर्वाग्रह विशिष्ट डेटा सेट से विरासत में मिल सकते हैं जो एल्गोरिदम के संपर्क में आते हैं।

इसी प्रकार ChatGPT, Facebook, Instagram, X  सरीखे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स  भी ए आई तंत्र द्वारा ही संचालित होते हैं। इसके परिणामस्वरूप डिजिटल मीडिया चैनलों से जुड़े कई निर्णय, जैसे कि कौन सी सामग्री Facebook के सामुदायिक मानकों का उल्लंघन करती है, एल्गोरिदम द्वारा तय किए जाते हैं। यदि Facebook सामुदायिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए कोई पोस्ट हटाता है या YouTube अपने मानदंडों के आधार पर कोई वीडियो हटाता है, तो ऐसे निर्णयों के पीछे के तर्क को समझने के लिए आप एक सोशल मीडिया उपयोगकर्ता के तौर पर इन कंपनियों के किसी कर्मचारी से बात करके यह पूछ नहीं सकते कि आपके पोस्ट या वीडियो को किस आधार पर प्रतिबंधित किया गया है।

इसी प्रकार शक्तिशाली तकनीकी कंपनियों की दुनिया में गूगल एक बेहद महत्वपूर्ण इकाई के रूप में उभरा है। निस्संदेह ही गूगल सरीखे प्लेटफार्म काफ़ी हद तक डिजिटल न्यूज़ एजेंडा निर्धारित करते हैं। लोगों को समाचार और अंतर्दृष्टि के रूप में क्या दिखाई देता है और वे इसे कैसे समझते हैं, इस पर गूगल महत्वपूर्ण रूप से प्रभाव डालता है। इसके पहले कुछ पृष्ठों पर दिखाई देने  वाले खोज परिणाम इसके एल्गोरिदमिक पूर्वाग्रह को प्रकट करते हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक शब्द या व्यक्तित्व की गूगल सर्च इंजन द्वारा खोज करता है, तो Google संभवतः उन संसाधनों को सबसे ऊपर दिखायेगा जिन्हें वह सबसे अधिक “विश्वसनीय” मानता है, दूसरों को कमतर आंकते हुए। स्वाभाविक रूप से, ऐसे सभी एल्गोरिदम-आधारित निर्णय Google की कॉर्पोरेट संस्कृति और सामाजिक-राजनीतिक पूर्वाग्रहों से प्रेरित होते हैं।

राजीव मल्होत्रा ​​की पुस्तक ‘ Artificial Intelligence and the Future of Power’  machine learning यानि मशीनों के ज्ञान अर्जित करने की प्रक्रिया के तौर-तरीकों और डेटा सेट के प्रशिक्षण के कई चरणों के दौरान पूर्वाग्रहों के बारे में जानकारी प्रदान करती है:

सोशल मीडिया द्वारा एकत्रित यूज़र्स डेटा एल्गोरिदम को प्रशिक्षित करता है, जो बदले में उपयोगकर्ता को वह दिखाता है जो वांछित प्रभाव उत्पन्न करने में सक्षम है। इस प्रकार यह प्रतिध्वनि कक्ष खुद को बनाए रखता है। Google के खोज इंजन ने व्यक्तिपरक मानदंडों द्वारा अनिवार्य रूप से प्रशिक्षित एल्गोरिदम का उपयोग करके एल्गोरिदम को एक पक्ष की तरफ़ झुकाकर उसे पक्षपातपूर्ण बना दिया है। फेसबुक अपनी “लाइक” अर्थव्यवस्था के माध्यम से शक्तिशाली बन गया है। Google के अन्तर्गत आने वाला व्हाट्सएप गलत सूचनाओं के सबसे बड़े प्रचारकों में से एक है।

इस सारी बात का मर्म यह है कि फेसबुक, गूगल, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स उपभोक्ताओं द्वारा पोस्ट की जा रही सामग्री की स्क्रीनिंग हेतु अपने मालिकाना ए आई एल्गोरिदम का उपयोग करते हैं, और इन एल्गोरिदम को कंपनी की नीतियों के उल्लंघन को चिह्नित करने के लिए  उचित व्यवहार पर प्रशिक्षित किया जा रहा है। ये एल्गोरिदम कंपनियों की आधिकारिक सेंसरशिप विचारधाराओं को आत्मसात कर लेते हैं कि किन पोस्ट्स  को प्रचार के लिए प्राथमिकता दी जाएगी, किन पर ध्यान नहीं दिया जाएगा या यहां तक ​​कि छाया प्रतिबंध भी लगाया जाएगा, किन मामलों में उपयोगकर्ताओं को उनके पोस्ट के बारे में चेतावनी दी जाएगी या कुछ सामग्री को हटाने के लिए कहा जाएगा, और किस आधार पर उपयोगकर्ताओं को ब्लॉक किया जाएगा। [3]

एआई मॉडल्स का भारत विरोधी पूर्वाग्रह

फरवरी 2024 में, Google के ए आई  चैटबॉट जेमिनी ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में एक प्रश्न के पक्षपातपूर्ण जवाब के कारण विवाद खड़ा कर दिया। जब एक उपयोगकर्ता ने पूछा, “क्या मोदी फासीवादी हैं?” जेमिनी ए आई ने कथित तौर पर जवाब दिया, “उन पर ऐसी नीतियों को लागू करने का आरोप लगाया गया है जिन्हें कुछ विशेषज्ञों ने फासीवादी बताया है।” चैटबॉट ने मोदी के कथित फासीवाद को भाजपा की हिंदू राष्ट्रवादी विचारधारा, असहमति पर उसके दमन और धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा के प्रयोग से जोड़ा। [4]

यद्यपि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के बारे में इसी तरह का प्रश्न पूछे जाने पर जेमिनी की प्रतिक्रिया बहुत अधिक सूक्ष्म थी: “चुनाव तेजी से बदलती जानकारी के साथ एक जटिल विषय है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके पास सबसे सटीक जानकारी है, Google खोज का प्रयास करें।” इसी प्रकार , जब ए आई चैटबाट से पूछा गया कि क्या यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की फासीवादी हैं, तो जेमिनी ने सावधानीपूर्वक और कूटनीतिक जवाब दिया: “क्या यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की फासीवादी हैं, यह एक जटिल और अत्याधिक विवादित प्रश्न है, जिसका कोई सरल उत्तर नहीं है।” [5]

भारत सरकार ने कथित तौर पर गूगल  को एक नोटिस जारी किया, जिसमें उससे जेमिनी चैटबॉट के भारत विरोधी पूर्वाग्रह के बारे में स्पष्टीकरण मांगा गया। जवाब में गूगल  ने जेमिनी ए आई प्लेटफ़ॉर्म की अविश्वसनीयता को स्वीकार करते हुए भारत सरकार से माफ़ी मांगी। [6]

गूगल की माफ़ी के बावजूद, तथ्य यह है कि जेमिनी भारत और हिन्दूओं के विरुद्ध प्रणालीगत पूर्वाग्रहों से भरा हुआ है।

अप्रैल 2024 में, डिज़ाइनर, उद्यमी और लेखिका सावित्री मुमुक्षु ने जेमिनी ए आई से पूछा, “क्या हिंदुत्व इस्लामोफ़ोबिक है?”  जिसके उत्तरस्वरूप गूगल चैटबॉट ने एक स्पष्ट हाँ के साथ जवाब दिया, “हाँ, हिंदुत्व विचारधारा को व्यापक रूप से इस्लामोफ़ोबिक ( इस्लाम-विरोधी) के रूप में देखा जाता है। और हिंदुत्व की इस तथाकथित इस्लाम विरोधी मानसिकता के पीछे गूगल जेमिनी ने निम्नलिखित कारण बताये, “मुसलमानों को एक अलग इकाई के रूप में चित्रित करना”, “नकारात्मक आख्यान”, “राजनीतिक लामबंदी” और “भेदभाव” आदि। [7]

अपने शोध के हिस्से के रूप में, मैंने भी जेमिनी ए आई से यह सरल प्रश्न पूछा: “क्या हिंदू धर्म और हिंदुत्व अलग-अलग हैं?” उसने दृढ़ता से ‘हां’ में उत्तर दिया और अपने दृष्टिकोण को उचित ठहराने हेतु अपने तर्क भी प्रस्तुत किए। जेमिनी ए आई के उत्तर के अनुसार  हिंदू धर्म दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है, जबकि हिंदुत्व एक राजनीतिक विचारधारा है जो “एक अधिक समरूप हिंदू संस्कृति की पैरवी करती है जिसे हिंदू धर्म की अंतर्निहित दिव्यता को चुनौती देने के रूप में देखा जा सकता है।” गूगल  चैटबॉट ने हिंदू धर्म को “आम तौर पर सभी लोगों के प्रति सहिष्णु” बताया, जबकि हिंदुत्व के विषय में सुझाव दिया  कि “हिंदुत्व गैर-हिंदुओं के प्रति बहिष्कारपूर्ण हो सकता है।”

OpenAI के ChatGPT को भी जनवरी 2023 में विवाद का सामना करना पड़ा था, जब इसने कथित तौर पर श्री कृष्ण और भगवान राम सहित हिंदू भगवानों  के बारे में चुटकुले बनाए थे, परंतु जब उसे ईसा मसीह और पैगंबर मुहम्मद के विषय में मजाक करने के लिए कहा गया तो उसने ऐसा करने से इनकार कर दिया।[8] हिंदू समुदाय की प्रतिक्रिया के कारण, हिंदू देवताओं के बारे में चुटकुले कथित तौर पर बंद हो गए हैं। हालाँकि, यह तथ्य कि चैटजीपीटी पहले हिंदू देवताओं के बारे में ऐसे चुटकुले बनाने के लिए तैयार था, लेकिन उसने अब्राहमिक धार्मिक हस्तियों के संदर्भ में ऐसा करना अनुचित समझा, यह दोहरे मानदंडों से भी कहीं अधिक परेशान करने वाली बात है। यह पश्चिमी तंत्र में गहराई से अंतर्निहित भारत विरोधी और हिंदू विरोधी आख्यानों को उजागर करता है, जिसे generative ए आई उपकरणों ने बिना किसी आलोचना या अंतर्द्वंद के आत्मसात कर लिया है।

यद्यपि चैटबॉट की प्रतिक्रियाएँ आम तौर पर अनिवार्य अस्वीकरणों के साथ आती हैं, परंतु  हिंदुओं और भारत के खिलाफ स्पष्ट पूर्वाग्रह के साथ वेब पर भेदभावपूर्ण सामग्री की प्रचुरता को देखते हुए, उनके संदर्भ में ऐसे अस्वीकरण निरर्थक हैं।

Swarajya पत्रिका में हाल ही में प्रकाशित एक लेख ने पूरी बात को परिप्रेक्ष्य में रखा, “चूँकि बॉट को यूरोपीय और अब्राहमिक सांस्कृतिक परिवेश में विकसित किया गया है, इसलिए यह उन संस्कृतियों के प्रति पक्षपाती होगा, जिनसे यूरोप और अमेरिका परिचित हैं – जिसका अर्थ है जूदेव-ईसाई और इस्लामी। यह हिंदू संवेदनाओं के प्रति उतना दयालु नहीं होगा, जैसा कि कई उपयोगकर्ताओं ने चैटजीपीटी का उपयोग करते समय पाया”। लेख में इस बात पर भी बल दिया गया है कि भले ही पक्षपात जानबूझकर न किया गया हो, लेकिन पश्चिमी तकनीकी तंत्र को इन आलोचनाओं को नकारने के बजाय इन्हें स्वीकार कर इनसे निबटना चाहिए। लेख में आगे कहा कहा गया है, “यह कहना उचित हो सकता है कि यह आवश्यक नहीं है कि पक्षपात जानबूझकर किया गया हो; कभी-कभी, पक्षपात इस तथ्य से भी आता है कि कोडिंग कौन कर रहा है, कोडर की सांस्कृतिक विरासत या झुकाव क्या है, और चैटजीपीटी के मुख्य सूत्रधार के सांस्कृतिक मूल्य क्या हैं, या फिर  स्वतंत्रता और अन्य मुद्दों को लेकर उसके मानदंड क्या हैं।” [9]

भारत और हिंदुओं के विरुद्ध स्थानिक पक्षपात प्रदर्शित करने के अतिरिक्त, ए आई चैटबॉट्स को राजनीतिक शुद्धता के लिए इतिहास को विकृत करने के आरोपों का भी सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, Google Gemini पर वाइकिंग्स, अमेरिकी संस्थापक पिता और यहां तक ​​कि नाजी सैनिकों के ब्लैक  और महिला संस्करण बनाने का भी आरोप लगाया गया है। The Telegraph में प्रकाशित एक लेख प्रतिष्ठित तकनीकी कंपनियों द्वारा विकसित ए आई एल्गोरिदम के व्यक्तिपरक पूर्वाग्रह के विषय में और जानकारी प्रदान करता है:

पूर्व कर्मचारियों ने सुझाव दिया है कि इन कंपनियों के एल्गोरिदम का उद्देश्य “घृणा करने वाले समूहों” को छांटना है, भले ही प्रोग्रामर को प्राय: “घृणा करने वाले समूहों” और उन लोगों के बीच अंतर करने में परेशानी होती है जो मात्र असहमतिपूर्ण लेकिन वैध विचार व्यक्त कर रहे हैं।

सर्वाधिक चिंताजनक बात यह है कि ये प्रतिष्ठित तकनीकी कंपनियाँ लगभग असीमित पूँजी और कनाडा, रूस, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और स्पेन के संयुक्त नेटवर्थ से भी अधिक आय और साधनों के साथ एक विशाल कुलीनतंत्र में परिवर्तित हो गयी हैं। हम पारंपरिक बाजार पूंजीवाद से इन फर्मों को नियंत्रित करने की उम्मीद नहीं कर सकते[10]

बिग टेक या बिग ब्रदर?

 टेक उद्यमी एलन मस्क ने  दिसंबर 2023 में माइक्रोसॉफ़्ट वर्ड द्वारा गैर-समावेशी के रूप में वर्गीकृत शब्दों के उपयोग की आलोचना किए जाने का मुद्दा उठाया। मस्क ने एक्स पर एक स्क्रीनशॉट साझा किया, जिसमें ‘पागल’ शब्द के नीचे एक टेढ़ी-मेढ़ी रेखा दिखाई दे रही थी, जिसमें माइक्रोसॉफ्ट वर्ड ने यह हवाला देते हुए कि पागल शब्द “मानसिक स्वास्थ्य पूर्वाग्रह के कथित निहितार्थ” से ग्रस्त है, इस शब्द का एक विकल्प सुझाया था।[11]

मस्क ने यह प्रदर्शित करने के लिए कई स्क्रीनशॉट साझा किए कि कैसे समावेशिता के नाम पर, माइक्रोसॉफ़्ट सरीखी टेक कंपनियाँ उपयोगकर्ताओं पर निगरानी रख रही थीं और उन्हें अति-सतर्कता के अधीन कर रही थीं। एमएस वर्ड की समावेशिता सुविधा कथित तौर पर उपयोगकर्ताओं को “सचेत” और “समावेशी” शब्दावली का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जो कि पक्षपाती माने जा सकने वाले वाक्यांशों की पहचान करके उचित समझे जाने वाले विकल्पों का सुझाव देती है। [12]

परंतु प्रश्न यह है कि यह कौन निर्धारित करेगा कि क्या आपत्तिजनक है और क्या नहीं?  इसके मानदंड क्या हैं?  चूँकि भाषा का उचित और अनुचित प्रयोग निर्धारित करने का कोई वस्तुनिष्ठ आधार नहीं है, इसलिए यह स्पष्ट है कि Microsoft Word  कुछ मनमाने मूल्य-आधारित मानदंडों के आधार पर अपने स्वयं के निर्णय लागू कर रहा है। आज के समय में यह केवल सुझाव देता है परंतु आने वाले समय में  यह उन शब्दों को पूर्णतया प्रतिबंधित भी कर सकता है जिन्हें यह अनुपयुक्त मानता है।

भाषा को लेकर इस प्रकार के मनमाने प्रतिबंधों और सिरफिरी निगरानी के परिणाम काफी गंभीर हो सकते हैं। यह आवश्यक नहीं है कि भारतीय संदर्भ में सामान्य माने जाने वाले सभी विचार, मुहावरे और शब्द “धर्मनिरपेक्षता” की अतिआधुनिक परिभाषा में फिट बैठें और इसलिए, भारतीय भाषा से जुड़ी बहुत सी शब्दावली इन टेक प्लेटफॉर्म्स द्वारा आपत्तिजनक मानी जा सकती है।

उदाहरण के लिए, शाकाहार पर की जा रही चर्चा को मांसाहारी लोगों के संदर्भ में  अपमानजनक माना जा सकता है। यह उदाहरण अतिशयोक्तिपूर्ण अवश्य लगेगा , लेकिन बड़ी बड़ी टेक कंपनियाँ जिस गति से  wokeism  की सिरफिरी विचारधारा को अपना रही हैं, (जो कि पूँजीवाद और साम्यवाद का एक मिला जुला रूप है), उस हिसाब से देखा जाये तो निकट भविष्य में ऐसा परिदृश्य देखा जा सकता है। भविष्य को लेकर इस प्रकार का भयावह और वीभत्स परिदृश्य भारत के लिए अपने स्वयं के डिजिटल तंत्र को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता को और भी अधिक बढ़ाता है, अन्यथा उसे अपने सभ्यतागत आख्यान के पश्चिम-जनित प्रतिनिधित्व में हमेशा के लिए फंसने का जोखिम उठाना होगा।

बिग टेक के वर्चस्व को चुनौती देना

ओला के संस्थापक और सीईओ भाविश अग्रवाल हाल ही में बिग टेक के wokeism को चुनौती देने के मामले में चर्चा में रहे। सोशल मीडिया प्लेटफार्म  LinkedIn के ए आई चैटबॉट द्वारा उन्हें अंग्रेज़ी के पुल्लिंग शब्द “He ” या “His” के माध्यम से संबोधित करने के बजाय “they” और “their” शब्दों के माध्यम से संबोधित किया गया जो कि gender neutral यानि लिंग के प्रति तटस्थ सर्वनाम हैं। यदि सीधी भाषा में इसे समझे तो हम कह सकते हैं कि अंग्रेज़ी भाषा के अति आधुनिक स्वरूप में पुरुषों को संबोधित करते समय पुल्लिंग शब्दों का उपयोग करने के बजाय ऐसे सर्वनामों का प्रयोग करने पर ज़ोर दिया जाता है जिससे पढ़ने वाले को व्यक्ति के लिंग के बारे में पता न चले। कथित तौर पर यह प्रयोग महिलाओं और समलैंगिकों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने के लिए किया जाता है। परंतु भावित अग्रवाल को बिग टेक का यह सिरफिरा प्रयोग बेतुका और आडंबरपूर्ण लगा। उन्होंने बिग टेक की इस “सर्वनाम बीमारी” के खिलाफ़ जोरदार आवाज़ उठाई।

ओला के सीईओ ने लिंक्डइन चैटबॉट से पूछा कि “भाविश अग्रवाल कौन हैं?” इसके जवाब में, ए आई चैटबॉट ने “He” या “His” जैसे पुल्लिंग शब्दों के बजाय “they” और “their” जैसे लिंग-तटस्थ सर्वनामों का इस्तेमाल किया। इसके बाद अग्रवाल ने लिंक्डइन पर एक पोस्ट लिखी जिसमें बिग टेक की “सर्वनाम बीमारी” और भारतीय उपयोगकर्ताओं पर उसके द्वारा अपनी राजनीतिक विचारधारा को थोपने की आलोचना की गई। कथित तौर पर लिंक्डइन ने उनकी पोस्ट हटा दी, जिसके पश्चात अग्रवाल ने एक्स पर एक लंबी पोस्ट लिखी जिसमें बिग टेक कंपनियों के पाखंड और मनमानी की आलोचना की गई। [13]

अपनी एक्स पोस्ट के माध्यम से, अग्रवाल ने माइक्रोसॉफ्ट के Azure के साथ संबंधों को समाप्त करने और ओला के संपूर्ण कार्यभार को उनके स्वदेशी रूप से विकसित Krutrim क्लाउड पर स्थानांतरित करने की अपनी योजना की भी घोषणा की:

यद्यपि हम लिंक्डइन के एकाधिकार के बारे में रातोंरात कुछ नहीं कर सकते, मैं एक DPI सोशल मीडिया फ्रेमवर्क बनाने के लिए भारतीय डेवलपर समुदाय के साथ काम करने की प्रतिबद्धता जता रहा हूँ। UPI, ONDC, Aadhar, आदि जैसे DPI विशिष्ट रूप से भारतीय विचार हैं और सोशल मीडिया की दुनिया में इनकी और भी अधिक आवश्यकता है। भारतीय टेक की दुनिया के सामुदायिक दिशा-निर्देशभारतीय कानून द्वारा ही निर्धारित होने चाहिए। किसी भी कॉर्पोरेट व्यक्ति को यह तय करने का अधिकार नहीं होना चाहिए कि क्या प्रतिबंधित किया जाएगा। डेटा का स्वामित्व उसके रचनाकर्ताओं के पास होना चाहिए, न कि उन कॉरपोरेट्स के पास जो हमारे डेटा का उपयोग कर पैसा कमाते हैं और फिर हमें सामुदायिक दिशा-निर्देशोंपर व्याख्यान देते हैं!

चूँकि लिंक्डइन का स्वामित्व माइक्रोसॉफ्ट के पास है और ओला Azure का एक बड़ा ग्राहक है, इसलिए हमने अगले सप्ताह के भीतर अपना संपूर्ण कार्यभार Azure से हटाकर अपने स्वयं के Krutrim Cloud पर स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है। (ओला के सीईओ भाविश अग्रवाल एक्स पर) [14]

ओला ने मई 2024 के अंत तक अपना संपूर्ण कार्यभार स्वयं के ए आई प्लेटफॉर्म, Krutrim पर स्थानांतरित कर दिया। दिसंबर 2023 में लॉन्च किया गया Krutrim एक माह के भीतर भारत का प्रथम ए आई यूनिकॉर्न बन गया। अप्रैल 2023  में भाविश अग्रवाल और एएनआई टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के बोर्ड सदस्य कृष्णमूर्ति वेणुगोपाल टेनेटी द्वारा स्थापित Krutrim एक बड़ा भाषा मॉडल (एलएलएम) है जो अपनी स्वयं की एलएलएम भाषा द्वारा संचालित है, जिसे कृत्रिम भी कहा जाता है – जो की अंग्रेज़ी शब्द “artificial” का संस्कृत रूप है।[15] कथित तौर पर इसे बातचीत में इस्तेमाल किए जाने वाले 2 ट्रिलियन से अधिक टोकन या उप-शब्दों पर प्रशिक्षित किया गया है। [16] [17]

अपने एक्स पोस्ट के बाद, ओला के सीईओ का साक्षात्कार प्रसिद्ध लेखक राजीव मल्होत्रा ​​ने लिया। साक्षात्कार में भाविश अग्रवाल ने इस बात पर ज़ोर  दिया कि भारत के भविष्य के तकनीकी विकास को इसकी सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत और भारतीय समाज के मूलभूत मूल्यों से प्रेरित होना चाहिये। उन्होंने आगे कहा कि भारत को एक ऐसे पुनर्जागरण की आवश्यकता है जो इसकी सांस्कृतिक विरासत को भविष्य के तकनीकी और आर्थिक विकास की आकांक्षाओं से जोड़े।[18]

अग्रवाल ने कहा कि चैटजीपीटी जैसे बड़े-तकनीकी ए आई मॉडल्स में भारतीय सांस्कृतिक आख्यानों की बारीकियों का अभाव है क्योंकि वे मुख्य रूप से पश्चिमी तंत्र में निहित अंग्रेजी डेटा पर प्रशिक्षित होते हैं। इसलिए  ए आई एल्गोरिदम को प्रशिक्षित करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय डेटा का होना आवश्यक है जिसे विकसित करने हेतु भारत के विशाल धार्मिक साहित्य को डिजिटल बनाना महत्वपूर्ण है। भाविश और राजीव दोनों ने इस बात पर बल दिया कि वेब पर उपयुक्त स्रोतों तक पहुँचने हेतु एल्गोरिदम का मार्गदर्शन करने के लिए इन ए आई मॉडल्स को विकसित करने के शुरुआती चरणों में धार्मिक विद्वानों की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। [19]

अग्रवाल द्वारा बिग टेक के Wokeism की कड़ी आलोचना और उनका  Krutrim AI का नवप्रवर्तन भारतीय उद्यमियों द्वारा बिग टेक के यूरोपीय संस्कृति-केंद्रित पूर्वाग्रहों का सीधा मुक़ाबला करने के दुर्लभ उदाहरण हैं। ओला के सीईओ ने तकनीकी परिदृश्य में एक संवेदनशील और बेहद प्रमुख मुद्दे पर विमर्श छेड़ दिया है – बिग टेक का वैश्विक आधिपत्य और इसके द्वारा अन्य समाजों पर अपनी सामाजिक-राजनीतिक विचारधाराओं को थोपे जाना। उम्मीद है कि इससे भारत द्वारा अपने स्वदेशी ए आई तंत्र को विकसित करने में निवेश करने की तत्काल आवश्यकता पर प्रासंगिक गलियारों में बातचीत शुरू होगी।

आई विकास में भारत की प्रगति

 Krutrim के अतिरिक्त, कई स्वदेशी स्टार्टअप इस प्रतिस्पर्धा में सम्मिलित हैं। आइए इनमें से कुछ प्रोजेक्ट्स के बारे में जानें।

Hanooman ए आई: Hanooman को हाल ही में सीता महालक्ष्मी हेल्थकेयर (एसएमएल) और अबू धाबी की 3 ए आई होल्डिंग द्वारा लॉन्च किया गया था। यह अनूठी भारतीय प्रणाली, कथित तौर पर भारतीय डेटा पर प्रशिक्षित की जा रही है, जो तमिल और हिंदी जैसी 12 भारतीय भाषाओं सहित उल्लेखनीय 98 भाषाओं का समर्थन करती है। पश्चिमी कंपनियों द्वारा विकसित किए गए एकभाषी चैटबॉट्स के विपरीत, Hanooman कई भाषाएँ बोलता है। अतः यह कई भाषाओं में अनुवाद करने और बातचीत करने में सक्षम है। Hanooman ए आई का यह विशिष्ट फ़ीचर इसे भारत के बहुभाषी बाज़ार में एक मजबूत प्रतिस्पर्धी लाभ प्रदान करता है। यह प्रणाली वर्तमान में उपयोग करने के लिए निःशुल्क है और इसे इंटरनेट या एंड्रॉइड ऐप के माध्यम से उपयोग में लाया जा सकता है। [20] [21]

प्रोजेक्ट Indus: अगस्त 2023 में लॉन्च की गई  टेक महिंद्रा की इस generative ए आई परियोजना का उद्देश्य कथित तौर पर एक स्वदेशी विशाल भाषा मॉडल (एलएलएम) का निर्माण करना है, जिसे कई भारतीय भाषाओं में बातचीत करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, और जो भारतीय सरकार द्वारा समर्थित ए आई टूल, भाषिनी से प्रेरित है। [22] टेक महिंद्रा के निवर्तमान प्रमुख, गुरनानी के अनुसार, Indus को हिंदी और इसकी कई बोलियों को ध्यान में रखते हुए विशिष्ट रूप से डिज़ाइन किया गया है। गुरनानी ने यह भी उल्लेख किया कि Indus बीटा परीक्षण चरण में था और इसमें हिंदी और इसकी बोलियों में 539 मिलियन पैरामीटर और 10 बिलियन टोकन शामिल थे: [23]

Indus सिंधु घाटी सभ्यता से उत्पन्न हुईं सभी भारतीय भाषाओं को सशक्त बनाने के लिए भारत के लिए तैयार की गई एक सभ्यतागत पहल है। इस परियोजना के मुख्यतया दो उद्देश्य हैं- 1. एक ऐसे भाषा मॉडल का निर्माण करना  जो पूर्णतया भारतीय संस्कृति के परिवेश में निहित हो, और 2.  जो प्रचलित मानदंडों में उत्कृष्टता प्राप्त करने में सक्षम हो। हम भारतीय भाषाओं के लिए एक ऐसा आधारभूत मॉडल बनाने का प्रयास कर रहे हैं जो पूरे देश में संचार को सक्षम और सरल बनाएगा तथा हमारी भाषाओं और बोलियों को संरक्षित करेगा। पहले चरण में, हम हिंदी और 37+ बोलियों के लिए एलएलएम बनाएंगे और फिर चरणबद्ध तरीके से अन्य भाषाओं और बोलियों को सम्मिलित करेंगे। [24]

BharatGPT: बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप CoRover.ai  द्वारा विकसित और मालिकाना संज्ञानात्मक ए आई तकनीक द्वारा संचालित,  BharatGPT को दिसंबर 2023 में लॉन्च किया गया था। इसके निर्माणकर्ता के अनुसार, भारतजीपीटी “वीडियो, वॉयस और टेक्स्ट के माध्यम से 14+ भारतीय भाषाओं में विभिन्न चैनलों पर उपलब्ध एकमात्र भारतीय स्वदेशी जनरेटिव ए आई प्लेटफ़ॉर्म है”। इसकी वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, BharatGPT 14 से अधिक भारतीय भाषाओं में वॉइस यानि मौखिक भाषा की उपयोगिता हेतु और 22 भाषाओं में टेक्स्ट यानि लिखित भाषा की उपयोगिता हेतु एकीकृत है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु, BharatGPT के निर्माताओं ने भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के अन्तर्गत एक राष्ट्रीय भाषा अनुवाद मिशन (एनएलटीएम) भाषिनी के साथ सहयोग किया है। इस प्रणाली की मुख्य विशेषताएं हैं:

  • यह भारत सरकार के “भारत में AI बनाएं, भारत की उन्नति और विकास के लिए AI उपयोग में लायें” के दृष्टिकोण के अनुरूप है। इसका बड़ा लाभ यह भी है कि इस परियोजना के माध्यम से  डेटा सुरक्षित रूप से भारत में ही बना रहता है।
  • वास्तविक समय में होने वाले लेन-देन को सुचारू रूप से चलाने के लिए अंतर्निहित payment मार्ग।
  • BharatGPT वर्तमान में केवल B2B खंड के लिए उपलब्ध है।
  • बहुभाषी (120+ भाषाएँ), बहु-प्रारूप (आवाज़, पाठ, वीडियो), ओमनीचैनल
  • जेनरेटिव AI वीडियो, संवादात्मक डिजिटल ट्विन [25]

BharatGPT का प्राथमिक ध्यान डेटा स्थानीयकरण पर है, जिसके परिणामस्वरूप बेहतर डेटा सुरक्षा मिलती है। हालाँकि, अपने समकक्ष, ChatGPT के विपरीत, BharatGPT को B2B खंड को ध्यान में रख के डिज़ाइन किया गया है। इसलिए, अपने वर्तमान स्वरूप में, यह ChatGPT जैसे निःशुल्क सार्वजनिक प्लेटफ़ॉर्म का भारतीय विकल्प तो बिलकुल प्रतीत नहीं होता। यद्यपि, चूँकि BharatGPT क्यूरेटेड प्रशिक्षण सामग्री/डेटासेट के आधार पर आउटपुट उत्पन्न करता है, इसलिए इसकी विश्वसनीयता और प्रतिक्रिया सटीकता Microsoft के CoPilot Designer और Google के Gemini जैसे अपने प्रतिस्पर्धियों की तुलना में काफी अधिक है, जिन्हें यादृच्छिक डेटासेट पर प्रशिक्षित किया जाता है। [26]

कुछ अन्य उल्लेखनीय स्वदेशी पहल हैं:

  • सर्वम एआई द्वारा ओपन हाथी (मेटा एआई के एलएलएएमए2 – 7बी आर्किटेक्चर पर निर्मित पहला हिंदी एलएलएम।
  • किसान एआई द्वारा धेनु (किसानों के लिए व्यक्तिगत, आवाज-आधारित एआई चैटबॉट)
  • आईआईटी मद्रास में एआई4भारत द्वारा इंडिकबर्ट (बहुभाषी अनुक्रम-से-अनुक्रम पूर्व-प्रशिक्षित मॉडल, 11 भारतीय भाषाओं का समर्थन करता है)।
अंत में…

हमने इस लेख में बिग टेक के विस्तृत तंत्र में व्याप्त भारत विरोधी और हिंदू विरोधी पूर्वाग्रह का गहन विश्लेषण किया है। साथ ही हमने भारत के लिए अपने स्वयं के स्वदेशी AI आख्यानों को विकसित करने की तत्काल आवश्यकता पर भी बल दिया है। हमने यह भी उजागर किया है कि कैसे पश्चिमी डिजिटल तंत्र पश्चिमी शिक्षाविदों, अकादमिक संस्थानों, और लोकप्रिय संस्कृति द्वारा निर्मित भारतीय विरोधी आख्यानों को बढ़ावा देता है।

यद्यपि, भारत के भीतर प्रतिरोध की उभरती आवाज़ों को देखना निश्चित रूप से एक सकारात्मक अनुभव है। भारतीय तकनीकी तंत्र के क्षेत्र में उभरती ये आवाज़ें बिग टेक की भारत विरोधी और हिंदू विरोधी विचारधारा को भरपूर चुनौती दे रही हैं। साथ ही भारत के तकनीकी तंत्र के तमाम सांझेदार वैदिक लोकाचार पर आधारित आख्यानों को विकसित करने के लिए उपक्रम शुरू कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त  भारत में विभिन्न स्वदेशी ए आई स्टार्टअप्स का उदय होना आशाजनक है, जिनमे ए आई के क्षेत्र में भारत की पश्चिम पर निर्भरता को कम करने की क्षमता है, विशेष रूप से क्लाउड कंप्यूटिंग और LLM मॉडल के संदर्भ में।

इस श्रृंखला के अगले भाग में, हम भारत की ए आई  क्रांति के लिए पश्चिमी  तंत्र पर अत्याधिक निर्भरता के संभावित खतरों और डिजिटल उपनिवेशीकरण के जोखिमों का पता लगाएंगे, कि भारत को किस प्रकार की विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है यदि यह अपने स्वयं के ए आई तंत्र को विकसित करने के प्रोजेक्ट को प्राथमिकता नहीं देता है।

संदर्भ

[1] The Frankfurt School (ucla.edu); https://pages.gseis.ucla.edu/faculty/kellner/papers/fs.htm

[2] Internet usage: How India is using the Internet – The Economic Times (indiatimes.com); https://economictimes.indiatimes.com/tech/technology/how-india-is-using-the-internet/articleshow/108354854.cms?from=mdr

[3] Artificial Intelligence and the Future of Power by Rajiv Malhotra, Ch 1. Overview of AI technologies, p.58

[4] Gemini’s answers vary when asked if Modi, Trump are fascists; MoS IT reacts | India News – Business Standard (business-standard.com); https://www.business-standard.com/india-news/gemini-s-answers-vary-when-asked-if-modi-trump-are-fascists-mos-it-reacts-124022300806_1.html

[5]  Government to send Google notice over AI reply to query on PM Modi | India News – Times of India (indiatimes.com); https://timesofindia.indiatimes.com/india/government-to-send-google-notice-over-ai-reply-to-query-on-pm-modi/articleshow/107953361.cms

[6] Ibid

[7] Google’s AI chatbot Gemini answers Hindutva is Islamophobic and that there is a huge difference between Hinduism and Hindutva; https://hindupost.in/dharma-religion/googles-ai-chatbot-gemini-answers-hindutva-is-islamophobic-and-that-there-is-a-huge-difference-between-hinduism-and-hindutva/

[8] ChatGPT, the Artificial Intelligent chatbot has an inherently biased nature, here is how; https://www.opindia.com/2023/01/chatgpt-artifical-intelligence-chatbot-biased-here-is-how/

[9] Does ChatGPT Have Anti-Hindu Bias? GiGo Principle Applies. Garbage In, Garbage Out (swarajyamag.com); https://swarajyamag.com/technology/does-chatgpt-have-anti-hindu-bias-gigo-principle-applies-garbage-in-garbage-out

[10] Woke Big Tech has launched a crusade against free speech (telegraph.co.uk); https://www.telegraph.co.uk/us/comment/2024/03/11/big-tech-google-gemini-california-silicon-valley-tik-tok/

[11] Elon Musk Criticises Microsoft Word’s Inclusivity Feature, Says Wokeism Has Infiltrated Everything (ndtv.com); https://www.ndtv.com/india-news/elon-musk-criticises-microsoft-words-inclusivity-feature-says-wokeism-has-infiltrated-everything-4679015

[12] Ibid

[13]  Bhavish Aggarwal on X: “On @Linkedin, @Microsoft and their wokeness; https://x.com/bhash/status/1789217759378993611?lang=en

[14] Ibid

[15] Bhavish Aggarwal’s AI startup Krutrim launches Android app; to unveil developer offerings (moneycontrol.com); https://www.moneycontrol.com/technology/bhavish-aggarwals-ai-startup-krutrim-launches-android-app-to-unveil-developer-offerings-article-12714321.html

[16] Ola Completes Transition from Azure to Krutim AI, Promises Support for Other Developers (outlookindia.com); https://business.outlookindia.com/corporate/ola-completes-transition-from-azure-to-krutim-ai-promises-support-for-other-developers

[17] Meet Krutrim, ‘India’s own AI’ developed by Ola CEO Bhavish Aggarwal-led venture – Hindustan Times; https://www.hindustantimes.com/technology/meet-krutrim-india-s-own-ai-developed-by-ola-ceo-bhavish-aggarwal-led-venture-101702638061355.html

[18] Meet Krutrim, ‘India’s own AI’ developed by Ola CEO Bhavish Aggarwal-led venture – Hindustan Times; https://www.hindustantimes.com/technology/meet-krutrim-india-s-own-ai-developed-by-ola-ceo-bhavish-aggarwal-led-venture-101702638061355.html

[19] Get To The Deepest Root With A Free Discovery Session From Bridgewater’s Leading PT Clinic; https://www.youtube.com/watch?v=pHopjZybaEA&t=6s

[20] Hanooman, India’s free GenAI chatbot emerges fluent in 98 languages; Bharat’s gift to the world  (organiser.org); https://organiser.org/2024/05/11/237037/bharat/hanooman-indias-free-genai-chatbot-emerges-fluent-in-98-languages-bharats-gift-to-the-world/#google_vignette

[21] Hanooman, India’s free GenAI chatbot emerges fluent in 98 languages; Bharat’s gift to the world  (organiser.org); https://organiser.org/2024/05/11/237037/bharat/hanooman-indias-free-genai-chatbot-emerges-fluent-in-98-languages-bharats-gift-to-the-world/#google_vignette

[22] Tech Mahindra’s Indigenous Gen AI project Indus now in Beta mode: CP Gurnani (techcircle.in); https://www.techcircle.in/2023/12/21/launched-in-beta-within-company-cp-gurnani-on-techm-s-indigenous-genai-project

[23] Tech Mahindra Completes Project Indus, to Launch Soon  – AIM (analyticsindiamag.com); https://analyticsindiamag.com/tech-mahindra-completes-project-indus-to-launch-soon/

[24] The Indus Project | Tech Mahindra; https://www.techmahindra.com/makers-lab/indus-project/

[25] BharatGPT, India’s own Generative AI by CoRover.ai.; https://corover.ai/bharatgpt/

[26] How BharatGPT’s Indic-First LLM Is Bridging Language Barriers (inc42.com); https://inc42.com/features/how-bharatgpts-indic-first-llm-is-bridging-language-barriers-empowering-enterprises/

Rati Agnihotri

Rati Agnihotri

Rati Agnihotri is an independent journalist and writer currently based in Dehradun (Uttarakhand). Rati has extensive experience in broadcast journalism, having worked as a Correspondent for Xinhua Media for 8 years. She has also worked across radio and digital media and was a Fellow with Radio Deutsche Welle in Bonn. Rati regularly contributes articles to various newspapers, journals and magazines. Her articles have been recently published in "Firstpost", "The Sunday Guardian", " Organizer", OpIndia", "Hindupost", "Garhwal Post", "Sanatan Prabhat", etc.Rati writes extensively on issues concerning politics, geopolitics, Hindu Dharma, culture, society, etc. The points of intersection between geopolitics and culture are of special interest to her. A lot of her work explores issues concerning Bharat's civilizational and cultural ethos from a global perspective.She obtained her master’s degree in International Journalism from the University of Leeds, UK and a BA (Hons) English Literature from Miranda House, Delhi University. Rati is also a bilingual poet (English and Hindi) with two collections of English poetry to her credit. Her first poetry collection "The Sunset Sonata" has been published by Sahitya Akademi, India's National Academy of Letters. Her second poetry book "I'd like a bit of the Moon" has been published by Red River.

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