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बांग्लादेश  के हिंदू नरसंहार का पश्चिमी मीडिया द्वारा छुपाया जाना

कैसे चुनिंदा न्यूज़ कवरेज और पक्षपातपूर्ण विमर्श बांग्लादेश में चल रहे हिंदू नरसंहार की वैश्विक धारणा को आकार देते हैं।

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  • पश्चिमी मीडिया बांग्लादेश संकट का जेन ज़ेड क्रांति के रूप में महिमामंडन करता है और बांग्लादेश में चल रहे हिंदू नरसंहार पर शर्मनाक चुप्पी साध लेता है।
  •  मीडिया बांग्लादेश में चल रही सांप्रदायिक हिंदू विरोधी हिंसा को शेख हसीना और उनकी पार्टी के समर्थकों को निशाना बनाकर अंजाम दिये जाने वाली घटनाओं के रूप में चित्रित करता है।
  •  मीडिया तंत्र बांग्लादेश में हिंदुओं पर चल रहे हमलों के संदर्भ में सोशल मीडिया के माध्यम से प्रसारित तथाकथित फर्जी समाचारों” के घटनाक्रम को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है।
  •  यह बांग्लादेश मुद्दे पर रिपोर्टिंग की आड़ में भारत विरोधी प्रचार करता है; कई मीडिया रिपोर्ट्स में यह संकेत दिया गया है कि भारत शायद बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा के पैमाने को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने वाली फर्जी खबरेंफैलाने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हिंदूछवि का इस विकृतिके साथ बहुत कुछ लेना-देना है।

हिन्दूद्वेष या हिंदू विरोधी नफ़रत और घृणा समाज में पूरी तरह से घुसपैठ कर चुके हैं। बल्कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि इसने समाज की जड़ों को ही खोखला कर दिया है। पश्चिमी मीडिया और शैक्षणिक संस्थानों ने हिंदूद्वेष को समाज में व्यापक स्तर पर फैलाने के लिए ज़हरीले विमर्श का एक पूरा जाल फैलाया। नतीजन, नागरिक समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से ने (जिसमें हिंदू समुदाय के कई लोग शामिल हैं), हिंदू विरोधी मानसिकता को इस हद तक आत्मसात कर लिया है कि इस प्रक्रिया को पहचानना लगभग असंभव हो गया है। हिंदू विरोधी भावना के इस विषम चक्रव्यूह ने राजनीति, संस्कृति और समाज को पूरी तरह से अपनी चपेट में ले लिया है।

हिंदू पीड़ा के इस दमन का सबसे प्रासंगिक उदाहरण मीडिया परिदृश्य से हिंदू मुद्दों को मिटाने का वैश्विक घटनाक्रम है। यदि मीडिया हिंदुओं के मुद्दों की पक्षतापूर्ण कवरेज करे या इन्हें कुछ तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करे, बात तब भी समझ में आती है। आख़िर हिंदू अपने आप को यह मानकर सांत्वना दे सकते हैं कि कमसकम कुछ रिपोर्टिंग तो हो रही है। परंतु पश्चिमी मीडिया ने तो हिंदुओं के मुद्दों को पूरी तरह से मीडिया मानचित्र से ग़ायब ही कर दिया है। हिंदू उत्पीड़न और नरसंहार जैसे अति संवेदनशील और महत्वपूर्ण मामलों से  संबंधित समाचार, रिपोर्ट्स और विश्लेषण तक को पश्चिमी मीडिया जानबूझकर कवर नहीं करता। इससे अधिक दयनीय स्थिति भला हिंदुओं की और क्या हो सकती है।

अब दर्शकों की हिंदू उत्पीड़न और नरसंहार के इन स्थलों तक सीधी पहुंच तो है नहीं। अतः इन संवेदनशील घटनाओं से जुड़ी जानकारी हासिल करने के लिए वो पूर्णतया मीडिया पर ही निर्भर हैं। अब ऐसे में जब लोकतंत्र का तथाकथित चौथा स्तंभ ही यह दिखाएगा कि हिंदुओं पर कभी अत्याचार हुआ ही नहीं, और इस पर होने वाली किसी भी चर्चा को “हिंदुत्व बहुसंख्यकवादी” विचारकों द्वारा किया जाने वाला मनगढ़ंत प्रोपोगैंडा बताकर खारिज कर देगा, तो जनता भी धीरे-धीरे स्वतः: ही हिंदूद्वेष को आत्मसात करने लगेगी। इसके परिणामस्वरूप एक भयावह स्थिति उत्पन्न होती है जहाँ हिंदू खुद ही सार्वजनिक मंचों पर हिंदू मुद्दों को उठाने के लिए साथी हिंदुओं को खरी खोटी सुनाना शुरू कर देते हैं। इस प्रकार हिंदुओं से जुड़े मुद्दों को जबरन मनगढ़ंत करार दे दिया जाता है।

इस लेख में, हम बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा और घृणा की घटनाओं के मीडिया द्वारा दबाये जाने पर चर्चा करेंगे, जो बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम के दिग्गजों के रिश्तेदारों के लिए उच्च वेतन वाली सरकारी नौकरियों को आरक्षित करने वाली एक विवादास्पद योजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर छात्र विरोध प्रदर्शनों के बीच पूर्व बांग्लादेशी प्रधान मंत्री शेख हसीना के निष्कासन के बाद होना शुरू हुई थीं।

5 अगस्त, 2024 [1] को बांग्लादेश की प्रधान मंत्री के रूप में शेख हसीना के इस्तीफे और उसके बाद के प्रस्थान के बाद से, हिंदू अल्पसंख्यकों ने, जो देश की 170 मिलियन आबादी का बमुश्किल 7.5 प्रतिशत है, हिंसा और उत्पीड़न की लहर का सामना किया है। बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा के तहत हिंदुओं को तेज़ी से निशाना बनाया जा रहा है, जिसमें मंदिरों में तोड़फोड़ और आगजनी, घरों और व्यवसायों पर हमला और विनाश, और कई व्यक्तियों पर हमला किए जाने की घटनायें शामिल हैं।

दुख की बात यह है कि अशांति के इस दौर में हिंदू महिलाओं को भी यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है। बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद ने हाल ही में एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें शेख हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश के 52 जिलों में अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से हिंदुओं के खिलाफ हिंसा की 205 घटनाओं पर प्रकाश डाला गया। यह रिपोर्ट मुहम्मद यूनुस को संबोधित एक खुले पत्र में सार्वजनिक की गई, जिन्होंने 8 अगस्त, 2024 को बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार की भूमिका संभाली। रिपोर्ट में हसीना के निष्कासन के बाद से शुरू होने वाली व्यापक हिंसा को रेखांकित किया गया है, जिसमें कई हत्याएं, अल्पसंख्यक समुदायों की महिलाओं पर हमले, हजारों परिवारों को प्रभावित करने वाली व्यापक भूख और आग से कई हिंदू मंदिरों को नष्ट किए जाने की घटनाओं का उल्लेख किया गया है। [2]

बांग्लादेश संकट का युवा क्रांति के रूप में महिमामंडन

मीडिया इस बात पर बहुत असर डालता है कि लोग किसी मुद्दे को किस नज़रिए से देखते हैं। क्या शामिल करना है या क्या नहीं, इस चुनाव प्रक्रिया में मीडिया कहानी के कुछ हिस्सों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत कर सकता है जबकि अन्य को कमतर दिखा या पूरी तरह से अनदेखा कर सकता है। बांग्लादेश की घटनाओं के बारे में हाल ही में पश्चिमी मीडिया द्वारा की गयी कवरेज में, हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर रिपोर्टिंग की कमी देखी गई है। इसके बजाय, बांग्लादेश के “हिंसक आंदोलन ” पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित किया है, जिसे देश के युवा वर्ग के नेतृत्व में होने वाले प्रगतिशील आंदोलन के रूप में चित्रित किया गया है।

“‘हमने इस शासन को हटा दिया है और फिर से ऐसा करेंगे’: बांग्लादेश में बदलाव लाने वाले छात्र,” The Guardian की हेडलाइन कहती है। “जनरेशन ज़ेड बांग्लादेशियों का कहना है कि उनका विरोध भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन राष्ट्र के प्रति उनका कर्तव्य अभी भी बना हुआ है, जो पुराने हमवतन लोगों को प्रेरित करता है”,  लेख की भूमिका में कहा गया है। लेख में उल्लेख किया गया है कि ऐसी भी रिपोर्टें देखने को मिली जिनमें बताया गया है कि अल्पसंख्यक हिंदू आबादी के घरों और व्यवसायों पर सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी के कार्यालयों के साथ-साथ हमला किया जा रहा था। हालाँकि, लेख, लेखक या प्रकाशन शायद हिंदुओं के जीवन को इससे अधिक चर्चा या विमर्श के योग्य नहीं मानते, शायद इसलिए, लेख का बाकी हिस्सा अल्पसंख्यक उत्पीड़न के मुद्दे पर विस्तार से नहीं बताता है और इसके बजाय बांग्लादेश के “छात्र क्रांतिकारियों” की भूरी भूरी प्रशंसा करने में जुट जाता है। [3]

लेख बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों के बारे में कोई विवरण नहीं देता है, लेकिन यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे छात्र इन हमलों के जवाब में हिंदुओं की रक्षा हेतु समूह बना रहे हैं। जहां यह एक तरफ़ छात्र नेताओं की गिरफ़्तारियों और मौतों की निंदा करता है, वहीं दूसरी तरफ़ जब बात  हिंदू अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न और नरसंहार की आती है, तो यह उस मुद्दे को गंभीरता से लेता नहीं दिखाई देता। लेख यह सुझाव देता प्रतीत होता है कि हिंदुओं के खिलाफ़ हिंसा एक अन्यथा सराहनीय छात्र क्रांति का एक साइड इफ़ेक्ट यानि अतिरिक्त असर मात्र है।

“बांग्लादेश के छात्रों ने दुनिया की पहली जेन ज़ेड क्रांति कैसे की,” The Independent की हेडलाइन कहती है। लेख उसी घिसे पिटे पश्चिमी कथानक का अनुसरण करता है, जिसमें बांग्लादेश के छात्रों को “तानाशाह” शेख हसीना सरकार को उखाड़ फेंकने की ज़बर्दस्त मुहिम में नेतृत्व करने वाले बहादुर नागरिकों के रूप में चित्रित किया गया है। [4] लेख दंगाइयों द्वारा शेख हसीना के आलीशान आधिकारिक आवास पर धावा बोले जाने वाली हिंसक घटना का अतिशयोक्तिपूर्ण साहित्यिक और काव्यात्मक चित्रण करता है! परंतु तथाकथित “छात्र क्रांतिकारियों” की हिंसक और बर्बर कार्यवाहियों को लेकर चुप्पी साध लेता है। इन कार्यवाहियों में शेख हसीना के अंतर्वस्त्रों को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करना, बेशर्मी से उनका सारा सामान लूटना और बांग्लादेश के संस्थापक और शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर रहमान की मूर्ति को बुरी तरह से तोड़ना शामिल था।

जैसे ही शेख हसीना के निष्कासन की खबर सार्वजनिक हुई, ढाका में प्रदर्शनकारी शेख मुजीबुर रहमान की एक बड़ी मूर्ति पर चढ़ गए और कुल्हाड़ी से मूर्ति के सिर पर वार करने लगे। मूर्ति को तोड़ना न केवल शेख हसीना और उनकी पार्टी के खिलाफ नफरत का काम था, बल्कि वास्तव में हिन्दू विरोधी नफ़रत का एक भौंडा प्रदर्शन था – प्रदर्शनकारियों पर कथित तौर पर कट्टरपंथी नेताओं द्वारा दिए गए मूर्ति-विरोधी बयानों का प्रभाव था। इस प्रकार, मूर्ति पर हिंसक तरीके से चोट करने का कार्य “मूर्ति” की अवधारणा के खिलाफ एक कट्टरपंथी इस्लामी विमर्श का सार्वजनिक प्रदर्शन था।[5] लेकिन The Independent सरीखे  मीडिया प्रकाशन घटनाक्रम के इस चिंताजनक पक्ष को रिपोर्ट करने में कम से कम दिलचस्पी रखते हैं। लेख में प्रदर्शनकारियों के प्रति प्रशंसात्मक लहजा अपनाया गया है, इस प्रकार लूट, हिंसा, बर्बरता और शायद हिंदू विरोधी घृणा को भी परोक्ष रूप से उचित ठहराया गया है:

जब वह अपनी बेटी और बहन के साथ भारत भाग गयीं, तो प्रदर्शनकारियों ने सड़कों पर खुशी मनाई, जो अभी भी छात्रों, सुरक्षा बलों और सत्तारूढ़ पार्टी अवामी  लीग के छात्र विंग के प्रदर्शनकारियों के बीच हुई हिंसक झड़पों के फलस्वरूप  खून से रंगी हुई थीं। [6]

कोई सोच सकता है कि अगर पश्चिमी देश में भी ऐसी ही “छात्र क्रांति” हुई होती और लोगों पर इस प्रकार से हिंसा की गई होती, तो क्या इस लेख का लहज़ा ऐसा ही होता। पूरी संभावना है कि उस परिदृश्य में पश्चिमी मीडिया ने हिंसा की निंदा करते हुए एक अलग ही रुख अपनाया होता और इसे “लोकतंत्र पर हमला” करार दे दिया होता। हालांकि, विडंबना यह है कि बांग्लादेश जैसे “तीसरी दुनिया” के देश के मामले में, अनियंत्रित हिंसा को “छात्र क्रांति” के रूप में पेश किया जाता है, जबकि हिंदू अल्पसंख्यकों पर लक्षित हमले, जो एक खतरनाक कट्टरपंथी इस्लामवादी विचारधारा से प्रेरित हैं, को पश्चिमी मीडिया तंत्र द्वारा सुविधाजनक रूप से ढक दिया जाता है, जैसे कुछ हुआ ही न हो।

बांग्लादेश में हुए छात्र विरोध आंदोलन के बाद से पश्चिमी प्रेस में ऐसे कई लेख लगातार प्रकाशित हो रहे हैं। Open Democracy द्वारा प्रकाशित एक लेख की हेडलाइन है, “छात्रों ने प्रधानमंत्री को तो सत्ता छोड़ने के लिए विवश कर दिया, लेकिन बांग्लादेश के लिए आगे क्या?”[7] Digital Journal की हेडलाइन कहती है, “कैसे जेन ज़ेड की महिलाओं और सेना ने बांग्लादेश को बदल के रख दिया”। [8]रॉयटर्स की हेडलाइन कहती है, “पीएम शेख हसीना को हटाने के अभियान के छात्र नेता नाहिद इस्लाम कौन हैं?”[9] “बांग्लादेश की ‘जनरेशन ज़ेड क्रांति’ ने एक वरिष्ठ नेता को सत्ता से हटा दिया। वे सड़कों पर क्यों उतरे और अब क्या हुआ?”, CNN की हेडलाइन कहती है। [10]

खतरनाक रूप से हिंसक विरोध प्रदर्शनों के स्पष्ट महिमामंडन के अलावा – जिनकी शुरुआत तो शायद छात्र आंदोलन के रूप में ही हुई, लेकिन बाद में कट्टरपंथी इस्लामी चरमपंथियों ने इस तथाकथित आंदोलन पर क़ब्ज़ा कर लिया – इन पश्चिमी मीडिया रिपोर्टों में एक और परेशान करने वाली विशेषता है: बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर की गई हिंसा से संबंधित खबरों को ये मीडिया प्रकाशन जानबूझकर कवर नहीं करते। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के  पद से हटने के बाद हुए हमलों का खामियाजा हिंदू समुदाय को भुगतना पड़ा। पश्चिमी मीडिया इन विरोध प्रदर्शनों के बाद हुई तथाकथित “छात्र क्रांति”  का तो खूब गुणगान करता है, परंतु उसी अवधि के दौरान हुई हिंदुओं के उत्पीड़न की असंख्य घटनाओं पर चुप्पी साध लेता है। उल्लेखनीय बात यह है कि बांग्लादेशी मीडिया ने भी हिंदू अल्पसंख्यकों पर हुए हमलों की निष्पक्ष रिपोर्टिंग की, लेकिन पश्चिमी मीडिया ने, अज्ञात कारणों से, बांग्लादेश तख्ता पलट कथानक के इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम को नजरअंदाज करना चुना।

हिंदू विरोधी नरसंहार का राजनीतिक प्रतिक्रियाके रूप में चित्रण

जैसा कि पिछले खंड में बताया गया है, पश्चिमी मीडिया ने बांग्लादेश में चल रही हिंदू उत्पीड़न की घटनाओं पर लगभग न के बराबर रिपोर्टिंग की है। यहाँ ध्यान देने लायक़ बात यह है कि जब ये मीडिया प्रकाशन हिंदू विरोधी अत्याचारों की रिपोर्ट करते भी हैं, तो हिंदू अल्पसंख्यकों पर होने वाले सांप्रदायिक हमलों को शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के समर्थकों पर किए जाने वाले हमलों के रूप में चित्रित किया जाता है। यानि पश्चिमी मीडिया यह विमर्श बुनने की कोशिश करता है कि देश में हिंदू अल्पसंखकों के विरुद्ध हो रही हिंसा का इस्लामिक कट्टरपंथ से कोई लेना देना नहीं है, बल्कि कुछ हिंदुओं पर सिर्फ़ इसीलिए हमले किए जा रहे हैं क्योंकि वह शेख़ हसीना की पार्टी के समर्थक हैं।

कुछ दिनों पहले,  New York Times ने बांग्लादेश में हिंदू उत्पीड़न पर एक कहानी छापी। “प्रधानमंत्री के जाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर बदले की भावना से हमले किए गए”, यह इस कहानी का शीर्षक था। यानि हिंदू विरोधी नरसंहार को बदले की भावना से किए गए हमलों के रूप में पेश किया गया। हालाँकि, सोशल मीडिया पर कड़ी प्रतिक्रिया का सामना करने के बाद उन्होंने कथित तौर पर शीर्षक बदल दिया। [11]

प्रकाशन ने शीर्षक बदलकर “प्रधानमंत्री के जाने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं पर बदले की भावना से हमले किए गए” कर दिया। अर्थशास्त्री और लेखक संजीव सान्याल ने पिछले शीर्षक पर टिप्पणी की और अपने एक्स अकाउंट के माध्यम से एक स्क्रीनशॉट साँझा किया। उन्होंने लिखा, “इसलिए NYT का सुझाव है कि हिंदुओं पर हमले “बदला” है…दूसरे शब्दों में, उन्होंने इसे शुरू करने के लिए कुछ बुरा किया होगा और इसका बदला लिया जाना चाहिए।” [12]

हेडलाइन में बदलाव के बावजूद, NYT की कहानी बांग्लादेश में चल रहे हिंदू विरोधी नरसंहार को छिपाने का बेहद घृणित कार्य करती है। लेख की भूमिका पाठक को बांग्लादेश के हिंदुओं के खिलाफ़ पूर्वाग्रह से ग्रसित करती है और पाठक के मन में उनके प्रति उत्पन्न होने वाली किसी भी प्रकार की सहानुभूति को जड़ से नष्ट करने की कोशिश करती है। परिचय में कहा गया है, “लंबे समय से यह धारणा रही है कि हिंदू अल्पसंख्यक शेख हसीना का समर्थन करते हैं, जिन्होंने एक लोकप्रिय विद्रोह के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया और देश छोड़कर भाग गईं।”

लेख में बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि अवामी लीग के कार्यालयों और उसके सदस्यों के घरों के साथ-साथ, शेख हसीना के सहयोगी माने जाने वाले लोगों के घरों पर, “हिंदू अल्पसंख्यकों सहित” प्रदर्शनकारियों ने हमला किया। यह कथन बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न को स्पष्ट रूप से उचित ठहराता है, यह सुझाव देकर कि उनके खिलाफ होने वाली हिंसा शेख हसीना की पार्टी के लिए उनके कथित समर्थन का परिणाम है, यह लेख हिंदुओं के ख़िलाफ़   चल रहे अत्याचारों को तर्कसंगत ठहराता है। [13]

बांग्लादेश की स्थिति से दूर-दूर तक परिचित किसी भी व्यक्ति के लिए, यह झूठा तर्क किसी भद्दे मज़ाक़ से कम नहीं है। बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय को देश की स्थापना के बाद से ही व्यवस्थित रूप से निशाना बनाया गया है और उनका लगातार नरसंहार किया गया है। जबकि शेख हसीना को कट्टरपंथी बांग्लादेश इस्लामिस्ट पार्टी और उसके सहयोगी जमात-ए-इस्लामी की तुलना में कुछ हद तक “धर्मनिरपेक्ष” और “अल्पसंख्यक समर्थक” माना जाता था, फिर भी उनके कार्यकाल के दौरान हिंदुओं पर हमले और हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़ की कई घटनाएँ हुईं। इस प्रकार, यह दावा कि बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक अब शेख हसीना की पार्टी के लिए उनके कथित समर्थन के कारण हमलों का सामना कर रहे हैं, पूरी तरह से हास्यास्पद है।

इसके अलावा, पश्चिमी मीडिया शेख हसीना और उनकी पार्टी के समर्थकों पर हिंसक हमलों को परोक्ष रूप से उचित ठहराकर एक खतरनाक मिसाल कायम कर रहा है। यह विडंबना है कि पश्चिम, जो खुद को लोकतंत्र और अल्पसंख्यक अधिकारों के संरक्षक के रूप में दुनिया भर में स्थापित करता है, खुले तौर पर एक संकीर्ण और पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण का प्रचार कर रहा है जो एक विदेशी देश में राजनीतिक पार्टी के समर्थकों पर क्रूर हमलों को सही ठहराता है। यह पूरा कथानक न केवल बेतुका है, बल्कि पश्चिमी मीडिया तंत्र के गहरे पाखंड और खोखलेपन को भी उजागर करती है।

The Guardian द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक अन्य लेख की हेडलाइन में लिखा है, “बांग्लादेश के नेता के रूप में शपथ लेने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने शांति का आग्रह किया।” लेख में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों के मुद्दे का उल्लेख किया गया है, लेकिन फिर से, इन हमलों को शेख हसीना की पार्टी के समर्थकों के रूप में बांग्लादेशी हिंदुओं की स्पष्ट स्थिति से जोड़ने की कोशिश की गई है। लेख में कहा गया है कि बांग्लादेश, जो मुख्य रूप से मुस्लिम देश है, इस में 13 मिलियन से अधिक हिंदू हैं – आबादी का लगभग 8%, और इनमें से कई पारंपरिक रूप से हसीना की पार्टी आवामी लीग के समर्थक हैं।” [14]

लेख में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि “एक हिंदू मंदिर को हिंसक भीड़ से बचाने के लिए मुस्लिम अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े थे।” [15] सोशल मीडिया विमर्श में भी इस एकमात्र उदाहरण का यह दिखाने के लिए बार बार इस्तेमाल किया जाता है कि बांग्लादेश के मुस्लिम बहुसंख्यक वहाँ के हिन्दू अल्पसंखकों के हितैषी हैं। यह अलग-थलग घटना, जहाँ बांग्लादेश में मुसलमानों ने तथाकथित रूप से हिंदू मंदिरों के चारों ओर एक सुरक्षात्मक दीवार बनाई, सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित की गई है और इसका उपयोग देश में हिंदुओं के चल रहे उत्पीड़न को दर्शाते ठोस प्रमाणों को झूठा ठहराने के लिए किया जा रहा है।

ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी मीडिया उस सोशल मीडिया कथानक को ही दोहरा रहा है, जो बांग्लादेश में मुसलमानों को हिंदू घरों और मंदिरों के परोपकारी रक्षकों के रूप में चित्रित करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहा है, बजाय इसके कि ज़मीनी स्तर पर हिंदुओं को प्रभावित करने वाली भयावह स्थिति का यथार्थवादी विवरण दिया जाए। यदि यह चित्रण सटीक होता तो ज़मीनी स्तर पर हमें निश्चित तौर पर ठोस बदलाव देखने को मिलता। फिर भी, ऐसे बदलाव का कोई ठोस प्रमाण मौजूद नहीं है। बांग्लादेश के किसी भी प्रमुख “मुस्लिम युवा नेता” ने सार्वजनिक रूप से और स्पष्ट रूप से चल रहे हिंदू विरोधी नरसंहार की निंदा नहीं की है। इसके बजाय, हिंदू परिवारों के साथ दुर्व्यवहार और अत्याचार की दर्दनाक कहानियां सामने आती रहती हैं, जिससे सोशल मीडिया और पश्चिमी मीडिया दोनों द्वारा प्रचारित किए जा रहे इस कथानक पर गंभीर सवाल उठते हैं।

यहां तक ​​कि अपनी कवरेज में आमतौर पर निष्पक्ष रहने वाला Reuters भी इस बात पर ज़ोर देता दिखता है कि बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय हसीना की अवामी लीग का समर्थक है। शीर्षक, “बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को लेकर ढाका में सैकड़ों लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया,” शुरू में स्थिति का सीधा और तथ्यात्मक विवरण प्रस्तुत है। हालांकि, रिपोर्ट में जल्दी ही एक अनावश्यक विवरण जोड़ दिया जाता है, जिसमें कहा जाता है, “बांग्लादेश की 170 मिलियन की आबादी में लगभग 8% हिंदू हैं, जो पारंपरिक रूप से हसीना की अवामी लीग पार्टी का समर्थन करते रहे हैं, जिसने पिछले महीने आरक्षण विरोधी प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पों के बाद लोगों के गुस्से को भड़का दिया।” यह प्रविष्टि सूक्ष्म रूप से कथानक को बदल देती है, हिंदू समुदाय की राजनीतिक संबद्धता और उनके द्वारा अनुभव की जा रही हिंसा के बीच संबंध का संकेत देती है। ऐसा करके, रिपोर्ट अनिवार्य रूप से हमलों को उचित ठहराती है, यह सुझाव देते हुए कि हिंदुओं के खिलाफ गुस्सा उनके कथित राजनीतिक समर्थन का परिणाम है। यह ज़ोर मुख्य मुद्दे-कमजोर अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा-से ध्यान हटाता है और इसके बजाय उनके कथित राजनीतिक गठबंधन पर ध्यान केंद्रित करता है, जो इस संदर्भ में, उनके द्वारा सामना किए जाने वाले उत्पीड़न को तर्कसंगत ठहराने के बराबर है। [16]

बांग्लादेश की मौजूदा स्थिति के बारे में पश्चिमी मीडिया कवरेज एक तयशुदा ढर्रे पर चलती है जो हिंदुओं के संदर्भ में प्रचलित उसी घिसे पिटे वैश्विक विमर्श को आगे बढ़ाती है जो बड़े पैमाने पर हिंदू विरोधी घृणा और नफ़रत को कायम रखता है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के उत्पीड़न के मामले में, मुख्यधारा के मीडिया और सोशल मीडिया दोनों एक ही कथानक का प्रचार करते हैं, बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रही लक्षित सांप्रदायिक हिंसा को शेख हसीना की राजनीतिक पार्टी के समर्थकों पर होने वाले हमलों के रूप में चित्रित किया जाता है। पश्चिमी मीडिया द्वारा दिए गए तर्कों और बांग्लादेश में चल रहे हिंदू नरसंहार को लेकर लीपा पोती करने वाले इस्लामवादी सोशल मीडिया अकाउंट्स के बीच की समानताएं चौंकाने वाली हैं।

इस घटनाक्रम से यह जानने को मिलता है कि हिंदूद्वेष, या हिंदू विरोधी घृणा कोई यादृच्छिक या अलग-थलग घटनाक्रम नहीं है। अपितु  यह एक व्यवस्थित विमर्श है जिसे परस्पर जुड़े विभिन्न तंत्रों के नेटवर्कों के माध्यम से सावधानीपूर्वक निर्मित और कायम रखा जाता है। ये प्रणालियाँ, जिनमें मीडिया और सामाजिक मंच दोनों शामिल हैं, हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को कमतर आंकने या उसे उचित ठहराने के लिए मिलकर काम करती हैं, तथा एक व्यापक आख्यान को मजबूत करती हैं जो उनके उत्पीड़न की गंभीरता को कमतर आंकता है।

हिंदू विरोधी हिंसा को ऑनलाइन गलत सूचनाके रूप में पेश करना

पश्चिमी मीडिया बांग्लादेश में हिंदुओं के चल रहे उत्पीड़न को कवर करने में तो कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं दिखाता, लेकिन वह इन हमलों के बारे में सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाली संभावित “फर्जी खबरों” के बारे में पाठकों को चेतावनी देने में विशेष रुचि लेता है। इससे हमें यह पता चलता है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की दयनीय स्थिति की ज़मीनी स्तर पर कवरेज करने की बजाय पश्चिमी मीडिया हिंदू उत्पीड़न से जुड़े तथाकथित “फ़ेक न्यूज़” विमर्श का खंडन करने में ज़्यादा दिलचस्पी रखता है।

इसका एक प्रमुख उदाहरण France 24 की हेडलाइन है, “हमले और ऑनलाइन गलत सूचना बांग्लादेश के हिंदुओं को डराती है।” जबकि कहानी स्पष्ट रूप से हिंदुओं पर चल रहे हमलों को संबोधित करती है, यह इस बात पर ज़ोर देकर  कि बड़े पैमाने पर फैलाई जा रही फ़ेक न्यूज़ बांग्लादेशी हिंदुओं के बीच दहशत में योगदान दे रही है, शुरुआत से ही मुद्दे की गंभीरता को कम करनी की चेष्टा करती है। शुरुआती पंक्तियाँ कहती हैं, “हालांकि वे डर जायज हैं, लेकिन हिंदू-बहुल पड़ोसी भारत में मीडिया द्वारा ऑनलाइन माध्यम से फैलाई जा रही और बढ़ाई जा रही अन्य, घातक हमलों की झूठी अफवाहों की लहर से उन्हें बढ़ावा मिल रहा है।” [17]

ऐसा करते हुए, लेख इस विमर्श को विस्तार देता है कि हिंदू बहुल भारत शायद बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों के बारे में गलत सूचना फैला रहा है, जिससे हिंदू विरोधी हिंसा का असली मुद्दा दरकिनार हो जाता है। यह दृष्टिकोण उत्पीड़न से ध्यान हटाता है और इसके बजाय रिपोर्टों की वैधता पर सवाल उठाता है, संदेह पैदा करता है और स्थिति की गंभीरता को कम करके आंकता है। यह पत्रकारिता के सबसे अनैतिक रूप का सबसे स्पष्ट उदाहरण है।

जब दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इसी प्रकार के अत्याचार वहाँ की मुस्लिम आबादी पर हो रहे होते हैं, तो उस संदर्भ में आपको इस प्रकार की खबरें कितनी बार देखने को मिलती हैं? ऐसे मामलों में तो मीडिया के सुर बिलकुल बदले हुए होते हैं। जहां शोषित मुस्लिम समुदाय के होते हैं, वहाँ यही मीडिया अति  संवेदनशील कवरेज करता है और पीड़ितों के पक्ष को खुलकर सामने रखता है, कभी-कभी तो उनके पीड़ित होने की सीमा को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है। लेकिन  जब पीड़ित रक्षाहीन हिंदू होते हैं, तो वही मीडिया यह सुझाव देने के लिए किसी भी उपलब्ध औचित्य को हथियाने के लिए उत्सुक दिखता है कि इन हिंदुओं ने ही कुछ ऐसा वैसा कर के हिंसा को अपने घर न्यौता दिया होगा।

France 24  की रिपोर्ट आगे दावा करती है कि बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हमलों की झूठी न्यूज़ ऑनलाइन प्रसारित की जा रही थी, और कथित तौर पर हिंसा के पैमाने को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा था। फिर भी, लेख “फर्जी समाचार” के अपने दावों को पुष्ट करने के लिए कोई ख़ास ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं करता। इसके बजाय, यह सामान्य व  निराधार बयानों का हवाला देते हुए  केवल यह उल्लेख करता है कि इनमें से कई कथित “फर्जी समाचार” पोस्ट भारत के  सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं द्वारा पोस्ट किए गए हैं, एक ऐसा देश जिसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को “हिंदू धर्म के बेबाक चैंपियन” और हसीना के शासन के कट्टर समर्थक के रूप में वर्णित किया गया है। [18]

रिपोर्ट में बांग्लादेश में हिंदू विरोधी नरसंहार के लिए भारतीय प्रधानमंत्री को दोषी ठहराते हुए परोक्ष रूप से लेकिन बेशर्मी से कहा गया है कि उनकी मजबूत हिंदू पहचान कथित तौर पर भारतीयों को मुसलमानों के खिलाफ पूर्वाग्रही बनाती है और इसी कारण वे बांग्लादेश में हिंदू विरोधी हिंसा के पैमाने को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने वाले झूठे सोशल मीडिया पोस्ट प्रसारित करते हैं।

France 24 की रिपोर्ट में फर्जी खबरों का एकमात्र उदाहरण भारत से एक एक्स पोस्ट है, जिसमे लेख के अनुसार यह दावा किया गया है कि बांग्लादेश में 500 हिंदुओं की हत्या की गई, सैकड़ों हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और दर्जनों हिंदू मंदिरों को जला दिया गया। हालांकि, रिपोर्ट में कथित एक्स पोस्ट का हिंदी में स्क्रीनशॉट भी साझा नहीं किया गया है। यह चूक फ्रांस 24 द्वारा किए गए दावों की प्रामाणिकता पर संदेह पैदा करती है, खासकर तब जब उनके दावों का समर्थन करने के लिए कोई प्रमाण नहीं दिया गया है। या शायद यह तथ्य कि यह दावे फ्रांस 24 का रहा है, इसे जांच से छूट देता है?

अगर एक बार को आप इस संभावना को स्वीकार भी लें कि इस प्रकार के सोशल मीडिया पोस्ट प्रसारित किए जा रहे थे,  तो भी 500 हत्याओं का अनुमान, अधिकांश मानकों के अनुसार, बेहद मामूली है। बांग्लादेश में कानून और व्यवस्था की पूरी तरह से धज्जियाँ उड़ने के कारण, जिसमें पुलिस तंत्र का पतन भी शामिल है, हिंसा के वास्तविक पैमाने या हताहतों की संख्या का पता लगाने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है। नागरिकों की सुरक्षा के लिए पुलिस की मौजूदगी न होने के कारण, हिंदुओं के पास एफ़आईआर दर्ज करने या कानूनी मदद लेने का कोई तंत्र नहीं है।

ऐसी स्थिति में, सोशल मीडिया सूचना का प्राथमिक स्रोत बन जाता है, जहाँ कई हिंदू संगठन बांग्लादेश के हिंदुओं द्वारा दिया गया ब्यौरा सीधे तौर पर साझा करते हैं। अब ये स्वाभाविक है कि इस प्रक्रिया में कुछ फ़र्जी खबरें भी प्रसारित हो सकती हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि पश्चिमी मीडिया ख़ुद को न्यायपालिका की भूमिका में बिठा बांग्लादेशी हिंदुओं पर हमलों का विवरण देने वाले सभी सोशल मीडिया पोस्ट्स को ‘फ़र्ज़ी ख़बर’ करार दे ख़ारिज कर दे। यह सत्य है कि बांग्लादेश में कई मंदिरों को जला दिया गया है, और कई हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया है – सटीक संख्या निर्धारित करने का कोई तरीका नहीं है। तो प्रश्न यह उठता है कि कौन तय करेगा कि कौन सी ख़बर फ़र्ज़ी है और कौन सी प्रामाणिक?

कई भारतीय मीडिया प्रकाशन भी इस मुहिम में शामिल हो गए हैं और बांग्लादेश में चल रही हिंदू विरोधी हिंसा के संदर्भ में प्रसारित की जा रही तथाकथित “फ़र्ज़ी ख़बरों” को उजागर करने में व्यस्त हैं। Business Standard ने बांग्लादेश में हिंदुओं के उत्पीड़न पर कई सोशल मीडिया पोस्ट्स के BBC बांग्ला द्वारा सत्यापन के बारे में बात की और आगे दावा किया कि BBC बांग्ला विश्लेषण ने इनमें से कई पोस्ट्स को फर्जी पाया और यह भी पाया कि इनमें से कई सोशल मीडिया पोस्ट भारत से आए थे।

इस लेख में कहा गया है, “बीबीसी के तथ्य-जांच विभाग, बीबीसी वेरिफाई ने सोशल मीडिया पर तेज़ी से प्रसारित हो रही पोस्ट्स की जांच की। इसने पाया कि शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद अल्पसंख्यकों पर कुछ हमले हुए, लेकिन इनमें से कई हमले अतिरंजित या मनगढ़ंत थे।” [19]

The Wire द्वारा प्रकाशित एक हालिया लेख में बांग्लादेश में हिंदुओं के चल रहे उत्पीड़न के संदर्भ में प्रसारित की जा रही फर्जी खबरों के समान दावे किए गए हैं और इस खोज का श्रेय जर्मन प्रसारक Deutsche Welle (DW) द्वारा की गई तथ्य-जांच को दिया गया है। “तथ्यों की जांच: बांग्लादेश में हिंसा पर झूठे दावे वायरल हो गए,” खबर का शीर्षक कहता है। [20]

Anadolu Agency द्वारा एक और लेख में इसी प्रकार के दावे किए गए हैं। शीर्षक में लिखा है, “राजनीतिक, सांप्रदायिक नहीं: बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमलों को लेकर भारत में गलत सूचनाएँ व्याप्त हैं।” लेख एक कदम और आगे जाता है और भारतीय मीडिया आउटलेट्स पर बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा को धार्मिक रूप से प्रेरित बताकर गलत तरीके से पेश करने का आरोप लगाता है। [21]

इस प्रकार, लेख भारतीय मीडिया पर खुलेआम हमला करता है और उसे एक प्रकार से धमकाता है, उन्हें अपना विश्लेषण करने और अपनी राय बनाने के बुनियादी अधिकार से भी वंचित करता है! Al Jazeera अपने शातिर प्रोपेगैंडा में और भी आगे चला जाता है। शीर्षक में लिखा है, ‘इस्लामोफोबिक, अलार्मिस्ट: कुछ भारतीय आउटलेट्स ने बांग्लादेश संकट को कैसे कवर किया। [22] यह लेख तो तर्क को ही कहीं पीछे छोड़ देता है! अगर लेख में निहित तर्क के अनुसार चलें तो यह मानना पड़ेगा कि जो कोई भी इस्लाम का पालन करने वाले लोगों द्वारा किए जा रहे आतंक या हिंसा के कृत्यों की आलोचना करता है, वह अनिवार्य रूप से इस्लाम विरोधी है। इस प्रकार, विस्तार से, इसका तात्पर्य यह है कि कोई भी व्यक्ति किसी मुस्लिम द्वारा या इस्लाम के नाम पर किए गए किसी भी कृत्य की आलोचना नहीं कर सकता है!

निष्कर्ष

इस बात पर जितना भी ज़ोर दिया जाए कम है कि मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और शिक्षा जगत का पूरा तंत्र हिंदुओं के दुखों और संघर्षों को नकारने के लिए एक भयावह षडयंत्र के अन्तर्गत मिलकर काम करता है। भारत की अपनी  बॉलीवुड हस्तियाँ, जिनका दिल गाजा या यूक्रेन जैसे दूर के देशों में कोई भी घटना होने पर एकदम से पसीज उठता है, अपने ही घर में हो रहे हिंदुओं के निर्मम सामूहिक उत्पीड़न के प्रति उदासीन बनी हुई हैं।

उदाहरण के लिए, मई 2024 में राफा में इज़राइल की कार्रवाई की निंदा करते हुए “ऑल आइज़ ऑन राफा” हैशटैग को लगभग सभी प्रमुख बॉलीवुड हस्तियों के साथ-साथ सीने जगत की कई अन्य हस्तियों ने सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया। हालाँकि, जब बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की निंदा करने की बात आती है, तो केवल तीन बॉलीवुड हस्तियाँ- प्रीति ज़िंटा, रवीना टंडन और भारतीय टेलीविज़न अभिनेत्री हिना खान- ने आवाज़ उठाई है। इनमें से भी केवल हिना खान ने अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में “हिंदू” शब्द का विशेष रूप से उल्लेख किया है। यह स्पष्ट विरोधाभास लोकप्रिय संस्कृति तंत्र के भीतर गहरी जड़ें जमाए हुए हिंदूद्वेष को उजागर करता है, जहां संभावित प्रतिक्रिया के डर से सेलिब्रिटी भी हिंदू मुद्दों को सीधे संबोधित करने से कतराते हैं।

हम इस भयावह स्थिति को कैसे बदल सकते हैं? इसका कोई आसान उत्तर नहीं है। हालाँकि, सबसे महत्वपूर्ण पहला कदम यह है कि हम में से प्रत्येक व्यक्ति  वैश्विक राजनीति, संस्कृति और नागरिक समाज में व्याप्त हिंदूद्वेष की गहरी परतों को समझने और उजागर करने में अपनी भूमिका निभाये। हम इस व्यापक पूर्वाग्रह का सामना करके और उसे संबोधित करके ही सार्थक बदलाव लाने की उम्मीद कर सकते हैं।

संदर्भ 

[1] Bangladesh Hindus were attacked in ‘revenge’, screams New York Times header, changes it after furor – South Asia News;  https://www.wionews.com/south-asia/bangladesh-hindus-were-attacked-in-revenge-screams-new-york-times-header-changes-it-after-furore-748268

[2] 205 incidents of persecution of Hindus and other minorities since August 5: Bangladesh Hindu Buddhist Council Oikya Parishad;  https://www.opindia.com/2024/08/205-incidents-of-persecution-of-hindus-other-minorities-since-aug-5-bangladesh-hindu-buddhist-council/

[3]  ‘We’ve ousted this regime and will do so again’: the students bringing change to Bangladesh | Global development | The Guardian; https://www.theguardian.com/global-development/article/2024/aug/07/bangladesh-gen-z-revolution-students-protest-change-sheikh-hasina-awami-dhaka

[4] How Bangladesh’s students carried out world’s first Gen Z revolution | The Independent; https://www.independent.co.uk/asia/south-asia/bangladesh-protesters-gen-z-sheikh-hasina-overthrown-b2591824.html

[5] Bangladesh protestors attack the nation’s founding heritage: How Pakistan went down the same path to erase its own past;  https://www.opindia.com/2024/08/bangabandhu-museum-destroyed-sheikh-mujibur-rehmans-residence-burned-to-ashes-islamists-bangladesh-are-wiping-out-nations-history/

[6] How Bangladesh’s students carried out world’s first Gen Z Revolution | The Independent;  https://www.independent.co.uk/asia/south-asia/bangladesh-protesters-gen-z-sheikh-hasina-overthrown-b2591824.html

[7] Bangladesh student protests topple PM: What now? | openDemocracy;  https://www.opendemocracy.net/en/students-protests-revolution-prime-minister-sheikh-hasina-bangladesh/

[8] How Gen Z women and the military transformed Bangladesh – Digital Journal; https://www.digitaljournal.com/world/how-gen-z-women-and-the-military-transformed-bangladesh/article

[9] Who is Nahid Islam, student leader of campaign to oust PM Sheikh Hasina | Reuters; https://www.reuters.com/world/asia-pacific/soft-spoken-sociology-student-led-campaign-oust-bangladeshs-hasina-2024-08-06/

[10]  Bangladesh ‘Gen Z revolution’ toppled PM Sheikh Hasina. Why did they hit the streets and what happens now? | CNN;  https://edition.cnn.com/2024/08/06/asia/bangladesh-protests-hasina-resignation-explainer-intl-hnk/index.html

[11] NYT calls violence against Hindus in Bangladesh ‘revenge attacks’: How Western media gets the India story wrong – Firstpost;  https://www.firstpost.com/explainers/nyt-violence-against-hindus-bangladesh-revenge-attacks-how-western-media-gets-the-india-story-wrong-13802799.html

[12] Sanjeev Sanyal on X; https://x.com/sanjeevsanyal/status/1821392342051418614?ref_src=twsrc%5Etfw%7Ctwcamp%5Etweetembed%7Ctwterm%5E1821392342051418614%7Ctwgr%5Efab62d854820bd0554e6406296650d41d2329f34%7Ctwcon%5Es1_&ref_url=https%3A%2F%2Fwww.firstpost.com%2Fexplainers%2Fnyt-violence-against-hindus-bangladesh-revenge-attacks-how-western-media-gets-the-india-story-wrong-13802799.html

[13] Hindus in Bangladesh Face Revenge Attacks After Hasina’s Ouster | The New York Times;  https://www.nytimes.com/2024/08/07/world/asia/bangladesh-politics-unrest.html

[14]  Nobel laureate Muhammad Yunus urges peace as he is sworn in as Bangladesh leader | Bangladesh | The Guardian;  https://www.theguardian.com/world/article/2024/aug/07/nobel-laureate-muhammad-yunus-urges-peace-ahead-of-return-to-bangladesh

[15] Ibid

[16] Hundreds protest in Dhaka over violence against Hindus in Bangladesh | Reuters; https://www.reuters.com/world/asia-pacific/hundreds-protest-dhaka-over-violence-against-hindus-bangladesh-2024-08-09/

[17] Attacks and online misinformation frighten Bangladeshi Hindus;  https://www.france24.com/en/live-news/20240811-attacks-and-online-misinformation-frighten-bangladeshi-hindus

[18] Ibid

[19] ‘Persecution’ of Hindus in Bangladesh: Fake posts uncovered by BBC | The Business Standard; https://www.tbsnews.net/bangladesh/persecution-hindus-bangladesh-fake-posts-uncovered-bbc-914141

[20] The Wire: The Wire News India, Latest News, News from India, Latest News, News from India, Politics, External Affairs, Science, Economics, Gender and Culture;  https://thewire.in/south-asia/fact-check-bangladesh-violence-false-claims

[21] Political, not communal: Misinformation runs rife in India over attacks on Hindus in Bangladesh; https://www.aa.com.tr/en/asia-pacific/political-not-communal-misinformation-runs-rife-in-india-over-attacks-on-hindus-in-bangladesh/3300650

[22] Islamophobic, alarmist’: How some India outlets covered Bangladesh crisis | Media News | Al Jazeera; https://www.aljazeera.com/news/2024/8/8/islamophobic-alarmist-how-some-india-outlets-covered-bangladesh-crisis

Rati Agnihotri

Rati Agnihotri

Rati Agnihotri is an independent journalist and writer currently based in Dehradun (Uttarakhand). Rati has extensive experience in broadcast journalism, having worked as a Correspondent for Xinhua Media for 8 years. She has also worked across radio and digital media and was a Fellow with Radio Deutsche Welle in Bonn. Rati regularly contributes articles to various newspapers, journals and magazines. Her articles have been recently published in "Firstpost", "The Sunday Guardian", " Organizer", OpIndia", "Hindupost", "Garhwal Post", "Sanatan Prabhat", etc.Rati writes extensively on issues concerning politics, geopolitics, Hindu Dharma, culture, society, etc. The points of intersection between geopolitics and culture are of special interest to her. A lot of her work explores issues concerning Bharat's civilizational and cultural ethos from a global perspective.She obtained her master’s degree in International Journalism from the University of Leeds, UK and a BA (Hons) English Literature from Miranda House, Delhi University. Rati is also a bilingual poet (English and Hindi) with two collections of English poetry to her credit. Her first poetry collection "The Sunset Sonata" has been published by Sahitya Akademi, India's National Academy of Letters. Her second poetry book "I'd like a bit of the Moon" has been published by Red River.

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