- भारत में हिंदू धर्म के अनुयायी विश्व के एकमात्र ऐसे धार्मिक बहुसंख्यक हैं जो अल्पसंख्यक धर्म में परिवर्तित किए जाने के निरंतर भय में जीते हैं।
- हिंदुओं का अवैध धर्म परिवर्तन अक्सर एक सुव्यवस्थित धर्मांतरण उद्योग द्वारा समर्थित तंत्रों के माध्यम से सुगम बनाया जाता है जिससे इसकी पहचान करना और इसके खिलाफ़ एक मजबूत मामला बनाना मुश्किल हो जाता है।
- भारत में हिंदुओं के मुद्दों को क़ानूनी तौर पर उठाने वाले संगठन और हिन्दू अधिकार कार्यकर्ता लंबे समय से एक अखिल भारतीय धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की मांग कर रहे हैं।
- जबकि कुछ भारतीय राज्यों ने अपने स्वयं के धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किए हैं, फिर भी देश भर में अवैध धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के लिए अभी भी कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है।
- भारत की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की राजनीति और धर्मनिरपेक्षता के प्रति पक्षपाती दृष्टिकोण सरकार को हिंदू धर्मांतरण के मुद्दे को गंभीरता से लेने से रोकते है।
- विभिन्न भारतीय राज्यों में होने वाले धर्मांतरण पर निर्णायक डेटा की कमी राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने में एक बड़ी बाधा है।
भारत शायद विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ बहुसंख्यक धार्मिक समुदाय के सिर पर अल्पसंख्यक धर्मों में परिवर्तित किए जाने का ख़तरा हमेशा मंडराता रहता है। भारत में हिंदुओं का धर्म परिवर्तन धड़ल्ले से चल रहा है; उन्हें प्रलोभन देकर, डरा धमका कर या छल कपट के माध्यम से ईसाई या इस्लाम धर्म में जबरन परिवर्तित करने का ट्रेंड ज़ोरों पर है। परंतु आश्चर्य की बात तो यह है कि मीडिया इस मुद्दे को न के बराबर कवर करता है। अतः: भारत में हिंदुओं के तेज़ी से हो रहे धर्मांतरण के मुद्दे को मीडिया एक गोपनीय रहस्य की तरह छुपाकर रखता है, और इससे जुड़ी भयावह सच्चाइयों को जनता के सामने उजागर नहीं होने देता।
हिंदुओं के जबरन या धोखे से धर्मांतरण के प्रति इस उदासीनता का पता कई संकेतों से लगाया जा सकता है। एक प्रमुख कारण यह है कि ये धर्मांतरण अक्सर सामाजिक, सांस्कृतिक, या विकास कार्यों के बहाने होते हैं, जिससे समस्या को स्पष्ट रूप से पहचानना और उसका समाधान करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे मामलों में जहाँ हिंदू इस्लाम में परिवर्तित होते हैं, “लव जिहाद” जैसे हथकंडों के माध्यम से, भावनात्मक प्रोपोगंडा की कूटनीति के तहत हिंदुओं का धर्म परिवर्तन किया जाता है। इसके अतिरिक्त, हिंदुओं पर “धर्मनिरपेक्षता” का भारी बोझ और अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की सरकारी पालिसी इस मुद्दे को मीडिया की सुर्खियों से बाहर कर देते हैं।
हिंदुओं के मुद्दों को क़ानूनी रूप से उठाने वाले संगठन और स्वतंत्र कार्यकर्ता देश भर में वर्षों से धर्मांतरण विरोधी कानून की माँग कर रहे हैं। जबकि कई भारतीय राज्यों- जैसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़- में जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून हैं, इन कानूनों का अक्सर कम इस्तेमाल किया जाता है और लोगों में इन्हें लेकर जागरूकता बहुत कम है।
इस लेख में तर्क दिया गया है कि भारत सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करना चाहिए। हम इस तरह के कानून की मांग की पृष्ठभूमि का पता लगाएंगे और इस बात पर प्रकाश डालेंगे कि कैसे पश्चिम अक्सर इस मुद्दे को पक्षपातपूर्ण तरीके से पेश करता है। भारत में हिंदुओं के धड़ल्ले से चल रहे धर्म परिवर्तन के मुद्दे को पश्चिमी मीडिया भी अधिकतर कवर नहीं करता। इसके पीछे उसके छिपे स्वार्थ और पूर्वाग्रह हैं। शायद इसलिए पश्चिमी मीडिया और बुद्धिजीवी संस्थान हिंदू प्रतिरोध को “धार्मिक स्वतंत्रता” और “अल्पसंख्यक अधिकारों” पर हमले के रूप में पेश करते हैं।
अखिल भारतीय धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता को संदर्भ में रखते हुए
जुलाई 2024 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने चिंता व्यक्त की कि यदि गैरकानूनी धर्मांतरण अनियंत्रित रूप से जारी रहा, तो भारत में बहुसंख्यक आबादी अंततः अल्पसंख्यक बन सकती है। यह टिप्पणी उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में धोखाधड़ी से धर्मांतरण के एक मामले की सुनवाई के दौरान आई। इस मामले में आरोप लगाया गया था कि आरोपी उत्तर प्रदेश के ग्रामीणों को दिल्ली में एक “कल्याण” सभा में ले गए थे, जो एक ईसाई धर्मांतरण कार्यक्रम निकला, जहाँ ग्रामीणों को कथित तौर पर ईसाई धर्म में धर्मांतरित करने के लिए लालच दिया गया था। अदालत ने ऐसे समारोहों को रोकने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया जो भारतीय नागरिकों के धर्मांतरण को बढ़ावा देते हैं। [1] [2]
अदालत ने यह भी कहा कि भारतीय नागरिकों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लोगों का ईसाई धर्म में अवैध धर्मांतरण पूरे उत्तर प्रदेश में खतरनाक दर पर हो रहा है। महत्वपूर्ण रूप से, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बताया कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 नागरिकों को अपने धर्म को मानने, उसका पालन करने और प्रचार करने का अधिकार देता है, लेकिन यह एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण के अधिकार तक विस्तारित नहीं है। न्यायालय ने कहा कि इस तरह के गैरकानूनी धर्मांतरण सीधे अनुच्छेद 25 के तहत गारंटीकृत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ संघर्ष करते हैं। [3]
ये प्रतीत होता है कि इस प्रकार की सामाजिक और सांस्कृतिक सभाएँ, जो प्रथम दृष्टि में किंचित् मात्र भी चिंताजनक नहीं जाना पड़तीं, भारत में गैरकानूनी धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देने के लिए कुख्यात होती जा रही हैं। हालाँकि, मुख्यधारा का मीडिया शायद ही कभी ऐसी घटनाओं को कवर करता है, जिससे जनता को केवल राष्ट्रवादी प्रकाशनों की रिपोर्ट्स के माध्यम से ही इन घटनाओं के बारे में जानने को मिलता है। अगर मुख्यधारा के आउटलेट इन सभाओं पर रिपोर्ट करते भी हैं, तो धर्मांतरण के पहलू को अक्सर कम करके आंकते हैं, जिससे जनता को मुद्दे के पूरे दायरे को समझने से रोका जाता है।
जुलाई 2024 में, राजस्थान के भरतपुर जिले में पुलिस ने एक संगठित जबरन धर्म परिवर्तन कार्यक्रम की शिकायत मिलने के बाद एक घर से 20 महिलाओं सहित 28 व्यक्तियों को हिरासत में लिया। कथित तौर पर लगभग 100 लोगों को इस धार्मिक सभा में शामिल होने के लिए लालच दिया गया था, जिसे कथित तौर पर एक चर्च फाउंडेशन के बैनर तले आयोजित किया गया था। OpIndia के अनुसार, ईसाई मिशनरी कथित तौर पर हिंदुओं को धर्मांतरित करने के लिए क्षेत्र में एक केंद्र चला रहे थे। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वहाँ उपस्थित लोगों को इस आयोजन में भाग लेने के लिए 500 रुपये देने का वादा किया गया था, साथ ही ईसाई धर्म अपनाने पर 10,000 रुपये प्रति माह देने का वादा किया गया था। [4]
फरवरी 2024 में सनातन प्रभात द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि भरतपुर में लगभग 20,000 हिंदुओं को पहले ही इसी तरह के तरीकों से ईसाई धर्म में परिवर्तित किया जा चुका है। ईसाई मिशनरीज़ सत्संग (आध्यात्मिक मण्डली) आयोजित करने की आड़ में सामूहिक धर्मांतरण कार्यक्रम आयोजित कराती थीं, जहाँ उपस्थित लोगों को पैसे और अन्य प्रलोभनों के माध्यम से धर्मांतरण के लिए लुभाया जाता था। रिपोर्ट के अनुसार, धर्मांतरण को प्रोत्साहित करने के लिए प्रार्थना सभाएँ आयोजित की गईं, जिसके दौरान राशन वितरित किया गया और उपस्थित लोगों को आश्वासन दिया गया कि उनकी बीमारियाँ ठीक हो जाएँगी और उनकी वित्तीय समस्याएँ दूर हो जाएँगी। वहाँ उपस्थित गरीब लोगों को सीधे उनके बैंक खातों में बड़ी रकम जमा करने का वादा किया गया था। ये धर्मांतरण कार्यक्रम, जो छोटी प्रार्थना सभाओं से शुरू हुए, अंततः फार्महाउस, रिसॉर्ट और होटलों जैसे बड़े स्थानों तक फैल गए, जहाँ बड़े पैमाने पर धर्मांतरण किया जाने लगा। [5]
OpIndia ने भी इन दावों की पुष्टि की, यह रिपोर्ट करते हुए कि भरतपुर में धर्मांतरण रैकेट का पर्दाफाश होने के बाद, यह स्पष्ट हो गया कि शहर में कम से कम 20,000 गरीब और कमज़ोर लोग इस प्रकार के धोखाधड़ी से कराये गये धर्म परिवर्तन के शिकार हुए थे। [6]
मई 2023 में Organizer द्वारा प्रकाशित एक लेख में मिशनरी समूहों द्वारा हिंदुओं को ईसाई धर्म में धोखाधड़ी से धर्मांतरित करने के लिए सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग पर प्रकाश डाला गया। लेख में “येशु सत्संग” नामक हैंडल द्वारा पोस्ट किए गए एक वायरल फेसबुक वीडियो का हवाला दिया गया। 47 सेकंड की क्लिप में, एक व्यक्ति खुद को एक हिंदू ब्राह्मण के रूप में पेश करता है और साझा करता है कि कैसे उसका जीवन तब तक उलझन से भरा था जब तक कि उसने यीशु के मार्ग पर चलने का फैसला नहीं किया। लेख के अनुसार इस प्रकार का सोशल मीडिया कंटेंट धर्मांतरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए एक औज़ार के रूप में काम करता है। [7]
सोशल मीडिया वास्तव में उन लोगों के लिए एक शक्तिशाली साधन बन गया है जो हिंदुओं को ईसाई धर्म और इस्लाम जैसे अब्राहमिक धर्मों में परिवर्तित करना चाहते हैं। इस्लाम के मामले में, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का उपयोग युवा हिंदू लड़कियों को छल फ़रेब के माध्यम से झूठे रिश्तों में फंसाने के लिए किया जा रहा है, जो अंततः जबरन धर्मांतरण की ओर ले जाते हैं। आम रणनीति में एक मुस्लिम व्यक्ति हिंदू होने का दिखावा करके संभावित शिकार के साथ ऑनलाइन दोस्ती या रोमांटिक संबंध शुरू करता है। जब लड़की भावनात्मक रूप से जुड़ जाती है, तो उसे “प्यार” और “शादी” की आड़ में धर्मांतरण के लिए मजबूर किया जाता है।
ईसाई धर्म के मामले में, सोशल मीडिया का दृष्टिकोण अधिक सूक्ष्म और परिष्कृत है। हिंदुओं को विभिन्न युक्तियों के माध्यम से लक्षित किया जाता है, जिसमें धर्मांतरित लोगों की मानवीय रुचि की कहानियाँ शामिल हैं जिनके जीवन में कथित रूप से परिवर्तन हुआ है, यीशु की “चमत्कारी” उपचार शक्तियों के अतिरंजित विवरण और हिंदू परंपराओं और लोकप्रिय संस्कृति के ढांचे के भीतर यीशु की पुनर्व्याख्या करने वाला प्रचार।
“यीशु भजन” के नाम से अगर आप एक साधारण YouTube खोज करें तो भारी संख्या में इस तरह के परिणाम सामने आने लगते हैं, जिनमें लगभग हर भारतीय भाषा में यीशु भजन के वीडियो उपलब्ध हैं। YouTube जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर “जीज़स भजन”, “जीज़स गरबा”, “जीज़स कृष्ण”, “जीज़स शिव” और अन्य सनसनीखेज सामग्री की बाढ़ आ गई है, जो बेखबर हिंदुओं को ईसाई धर्म की और आकर्षित करने के लिए विशिष्ट रूप से डिज़ाइन की गई है। ये वीडियो अक्सर हिंदू संस्कृति और परंपरा के तत्त्वों को ईसाई धर्म के परिवेश और रीति रिवाजों के साथ जबरन जोड़ कर प्रस्तुत करते हैं ताकि हिंदू दर्शकों को और अधिक लुभाया जा सके।
एक उल्लेखनीय YouTube चैनल, CBN India के लगभग 134,000 सब्सक्राइबर्स हैं और यह भारतीयों के बीच ईसाई धर्म प्रचारित करने के उद्देश्य से ईसाई प्रचार वीडियोज़ से भरा हुआ है।[8] चैनल में गढ़वाली क्रिसमस, छत्तीसगढ़ी क्रिसमस, गुजराती क्रिसमस गीत, मलयाली क्रिसमस गीत, नेपाली क्रिसमस वीडियो और बहुत कुछ ऐसी सामग्री है। ये वीडियो अक्सर विभिन्न भारतीय राज्यों के स्थानीय कलाकारों के सहयोग से पेशेवर रूप से बनाए जाते हैं, जो उनकी अपील और प्रभावशीलता को बढ़ाता है। चिंताजनक बात यह है कि हिंदू चाहे जानबूझकर या अनजाने में, इन प्रस्तुतियों में अपनी भागीदारी के माध्यम से ईसाई धर्म परिवर्तन तंत्र में सक्रिय भागीदार बन रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि CBN India एक वेबसाइट भी संचालित करता है, जो पहली नज़र में खुद को एक ईसाई संगठन के रूप में प्रस्तुत नहीं करती है। उनके “हमारे बारे में” अनुभाग में संगठन का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि इसका उद्देश्य “मुख्य रूप से मीडिया के माध्यम से वास्तविक जीवन की कहानियों और प्रतिकूल परिस्थितियों में आशा के संदेशों का दस्तावेजीकरण करके आशा के समुदायों का निर्माण करता है।” हालाँकि, निकटता से जाँचने- परखने पर पता चलता है कि यह वास्तव में एक ईसाई प्रचारक संगठन है जिसका प्राथमिक एजेंडा भारत में ईसाई धर्मांतरण को बढ़ावा देना है।[9] ईसाई धर्मांतरण उद्योग में एक आम रणनीति व्यापक दर्शकों को आकर्षित करने के लिए प्रेरक और प्रेरणादायक कहानी कहने का उपयोग करना है। इन तथाकथित “प्रेरक कहानियों” के माध्यम से ही बड़ी धूर्तता से धर्म परिवर्तन का प्रोपोगंडा जाल बिछाया जाता है और हिंदू मानसिक रूप से “brainwash” या भ्रमित हो ख़ुद ही इस जाल में फँसते चले जाते हैं।
मिशनरी तंत्र का एक बेहद महत्वपूर्ण स्तंभ The Joshua Project है, जो अपने उद्देश्य को प्रकट करने में कोई समय बर्बाद नहीं करता है। उनकी वेबसाइट के “हमारे बारे में” अनुभाग में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि “दुनिया भर में यीशु के अनुयायियों को ‘सभी राष्ट्रों के लोगों को शिष्य बनाने’ के लिए नियुक्त किया गया है (मैथ्यू 28:19)।” The Joshua Project एक व्यापक डेटाबेस के रूप में कार्य करता है, जो उन क्षेत्रों और समुदायों पर ध्यान केंद्रित करता है, जहाँ ईसाई धर्म अभी तक अपनी जड़ें नहीं जमा पाया है। अनिवार्य रूप से, यह विश्व स्तर पर ईसाई धर्म से जुड़े धर्मांतरण संगठनों के लिए एक संसाधन केंद्र के रूप में कार्य करता है, जिससे उन्हें उन क्षेत्रों में लक्षित धर्मांतरण प्रयासों में तेज़ी लाने में मदद मिलती है, जहां ईसाई धर्म की पहुँच सीमित है।[10]
The Joshua Project की वेबसाइट में एक देश-विशिष्ट अनुभाग शामिल है जो प्रत्येक राष्ट्र के भीतर ईसाई धर्म के प्रसार को ट्रैक करता है। वे हिंदू धर्म के भीतर विभिन्न जातियों और उप-जातियों, जैसे ब्राह्मण, कायस्थ और अन्य की रूपरेखा बनाकर आगे बढ़ते हैं। इनमें से प्रत्येक प्रोफ़ाइल के भीतर, वे और भी अधिक विस्तृत माइक्रो-प्रोफ़ाइलिंग करते हैं। उदाहरण के लिए, ब्राह्मण समुदाय के भीतर, वे भूमिहार ब्राह्मण और भट्ट ब्राह्मण जैसे विभिन्न वर्गों को वर्गीकृत करते हैं।[11]
भारत में, ईसाई धर्मांतरण उद्योग ने शुरू में दक्षिणी क्षेत्रों में एक मजबूत उपस्थिति स्थापित की, द्रविड़ आंदोलन के माध्यम से अपने प्रभाव को और मजबूत किया, जिसने तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में दलितों का बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ। आंध्र प्रदेश एक और राज्य है जहाँ बड़े पैमाने पर ईसाई धर्मांतरण ने स्थानीय जनसांख्यिकी को काफी हद तक बदल दिया है। हालाँकि कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं है, लेकिन विशेषज्ञ बताते हैं कि आज के समय में आंध्र प्रदेश में पूरे-पूरे गाँव “क्राइस्ट विलेज” के नाम से जाने जाते हैं। Sanatan Prabhat द्वारा जनवरी 2021 में प्रकाशित एक लेख में इस घटना पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें हिंदू देवताओं की मूर्तियों का कथित रूप से अपमान करने के आरोप में आंध्र प्रदेश के गुंटूर से पादरी प्रवीण चक्रवर्ती की गिरफ़्तारी की रिपोर्ट दी गई है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि पादरी ने राज्य में 699 क्राइस्ट विलेज स्थापित किए। [12]
भारत के पूर्वोत्तर भाग में, चर्च ने स्वदेशी समुदायों को विस्थापित करते हुए जनसांख्यिकी को नाटकीय रूप से बदल दिया है। खासी समुदाय को, विशेष रूप से, अथक मिशनरी प्रयासों का सामना करना पड़ा है।[13]]हाल ही में, भारत के उत्तरी क्षेत्र मिशनरियों के लिए एक केंद्र बिंदु बन गए हैं, पिछले कुछ वर्षों में पंजाब में ईसाई धर्मांतरण में उछाल देखा गया है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राज्यों को भी धर्मांतरण उद्योग द्वारा आक्रामक रूप से निशाना बनाया जा रहा है।
हिंदुओं के इस्लाम में धर्मांतरण के संबंध में, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों में “भूमि जिहाद” और “लव जिहाद” की कई रिपोर्टें आई हैं। भूमि जिहाद इस्लामवादियों द्वारा किसी क्षेत्र की जनसांख्यिकी संरचना को बदलने के इरादे से भूमि अधिग्रहण करने के समन्वित प्रयास को संदर्भित करता है। इस मुद्दे ने पिछले एक दशक में ध्यान आकर्षित किया है, और असम के मुख्यमंत्री ने हाल ही में राज्य में मुसलमानों को भूमि की बिक्री पर अंकुश लगाने के लिए उपाय शुरू करने की योजना की घोषणा की है, जो इस तरह की प्रथाओं के जनसांख्यिकीय प्रभावों के बारे में बढ़ती चिंताओं को दर्शाता है।[14]
राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून पर विचार-विमर्श
स्वतंत्र भारत का पहला धर्मांतरण विरोधी कानून 1967 में मध्य प्रदेश द्वारा लागू किया गया था। मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम, 1967 (एमपी अधिनियम) के नाम से जाना जाने वाला यह कानून बल, धोखाधड़ी या प्रलोभन के माध्यम से किए गए धर्मांतरण को दंडित करता है। इसके बाद, उड़ीसा (अब ओडिशा) ने 1968 में उड़ीसा धर्म स्वतंत्रता अधिनियम पारित किया, जिसमें गैरकानूनी धर्मांतरण की पहचान के लिए एक अतिरिक्त मानदंड के रूप में “प्रलोभन” को जोड़ा गया।[15]
इन उदाहरणों से प्रेरित होकर, भारत के कई अन्य राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों के अपने संस्करण बनाए। वर्तमान में, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और ओडिशा जैसे राज्यों में ऐसे कानून हैं। 2022 में, कर्नाटक ने भी अवैध धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए राज्य के धर्म की स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण अधिनियम पारित किया। हालाँकि, कांग्रेस पार्टी द्वारा कर्नाटक में 2023 के विधानसभा चुनाव जीतने के बाद, नवगठित सरकार ने इस कानून को निरस्त कर दिया।[16]
राज्य स्तर पर इन प्रयासों के बावजूद, पूरे भारत में छल कपट और धोखाधड़ी से किए गए धर्मांतरण को रोकने के लिए कोई राष्ट्रीय कानून नहीं है। राज्य-स्तरीय कानून अक्सर भारत की “धर्मनिरपेक्ष राजनीति” में उलझे रहते हैं, जहाँ लगातार सरकारें अधिकांश अपने पूर्ववर्तियों द्वारा पारित धर्मांतरण विरोधी कानूनों को पलट देती हैं। ऐसा प्रायः अल्पसंख्यक समुदायों के तुष्टिकरण हेतु किया जाता है। इसके अतिरिक्त, विशेषज्ञों का कहना है कि ज़मीनी स्तर पर इन कानूनों के बारे में जागरूकता की कमी है, जो उनकी प्रभावशीलता को कम करती है।
राष्ट्रवादी समाचार पोर्टल India Speaks Daily के साथ एक साक्षात्कार में, धर्मांतरण विरोधी कार्यकर्ता और राजनीतिक-धार्मिक पर्यवेक्षक Jerome Anto ने इस बात पर बल दिया कि जबकि विभिन्न राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं, धर्मांतरण को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए कोई व्यवस्थित योजना नहीं बनाई गई है। उन्होंने बताया कि नौकरशाही को अक्सर इन कानूनों के बारे में विस्तृत जानकारी नहीं होती है। उन्होंने साथ ही इस बात को रेखांकित किया कि ज़मीनी स्तर पर धर्मांतरण विरोधी क़ानूनों के कार्यान्वयन के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करने में विशेषज्ञों को शामिल करने की आवश्यकता है।[17]
भारत में धर्मांतरण का मुद्दा एक जटिल समस्या है जो राज्य की सीमाओं से परे है। धर्मांतरण के तंत्र में प्रायः कई प्रकार की राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इकाइयों का हस्तक्षेप रहता है। जबकि राज्य-स्तरीय धर्मांतरण विरोधी कानून सही दिशा में एक अच्छा कदम हैं, एक अखिल भारतीय धर्मांतरण विरोधी कानून ही इस समस्या का आदर्श समाधान है। ऐसा कानून धर्मांतरण तंत्र के विभिन्न तत्त्वों की अधिक प्रभावी ढंग से पहचान सकता है, और इस समस्या का सबसे उपयुक्त समाधान भी कर सकता है, जिससे देश भर में इस मुद्दे से निपटने के लिए एक समान और मजबूत ढांचा उपलब्ध हो पाएगा।
जैसे ही भारतीय राज्यों ने स्वतंत्रता के बाद अपने-अपने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करना शुरू किया, संसद में राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश करने के कई प्रयास हुए। दुर्भाग्य से, ये सभी प्रयास विफल रहे। ऐसा पहला प्रयास 1954 का भारतीय धर्मांतरण (विनियमन और पंजीकरण) विधेयक था, जिसका उद्देश्य मिशनरियों को लाइसेंस देने और सरकारी अधिकारियों के साथ धर्मांतरण को पंजीकृत करने की प्रणाली स्थापित करना था। हालाँकि, इस विधेयक को लोकसभा में पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। इसके बाद, पिछड़ा समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक 1960 में प्रस्तुत किया गया, जिसका उद्देश्य हिंदुओं के ईसाई और इस्लाम जैसे गैर-भारतीय धर्मों में धर्मांतरण को रोकना था। यह विधेयक भी पारित नहीं हो सका। 1979 में प्रस्तुत किए गए धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक का उद्देश्य “अंतर-धार्मिक धर्मांतरण पर आधिकारिक अंकुश लगाना” था, लेकिन इसे भी आवश्यक राजनीतिक समर्थन नहीं मिला।[18]
भारत में धर्म परिवर्तन एक राजनीतिक रूप से संवेदनशील मुद्दा है। यही वजह है कि हिंदुओं के मुद्दों को क़ानूनी तौर पर उठाने वाले संगठनों और स्वतंत्र हिंदू अधिकार कार्यकर्ताओं की असंख्य मांगों के बावजूद, भारत सरकार हाल के वर्षों में राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी विधेयक पेश करने में हिचकिचा रही है। ये समूह हिंदुओं के ईसाई और इस्लाम में व्यापक धर्मांतरण को संबोधित करने के लिए एक राष्ट्रीय कानून की मांग कर रहे हैं।
जबकि भारत सरकार ने समान नागरिक संहिता जैसे मुद्दों पर सक्रिय रूप से ध्यान केंद्रित किया है, बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की समस्या को दरकिनार कर दिया गया है। यह आंशिक रूप से पश्चिमी संगठनों, बुद्धिजीवी संस्थानों और मीडिया तंत्र के कड़े विरोध के कारण है, जो अक्सर धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण को रोकने के भारत के प्रयासों को “अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर हमला” के रूप में चित्रित करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय ने बार-बार हिंदुओं के गैरकानूनी धर्मांतरण का मुद्दा उठाया है, और शीर्ष अदालत में कई याचिकाएँ दायर की हैं। उन्होंने मांग की है कि अदालत केंद्र सरकार को धोखाधड़ी के माध्यम से किए जाने वाले धर्मांतरण को रोकने के लिए एक विधेयक पेश करने का निर्देश दे। नवंबर 2022 में, सुप्रीम कोर्ट ने उपाध्याय की याचिका पर ध्यान दिया और माना कि जबरन धर्मांतरण वास्तव में एक बेहद गंभीर मुद्दा था। उनकी याचिका में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि भारत में एक भी ऐसा जिला नहीं है जो धर्मांतरण से मुक्त हो और इस तरह के धर्म परिवर्तन अक्सर डराने-धमकाने, धोखे, उपहार, मौद्रिक लाभ और यहां तक कि काले जादू, अंधविश्वास और तथाकथित चमत्कारों के माध्यम से किए जाते हैं।
इस याचिका में इस बात पर भी बल दिया गया कि जबरन धर्मांतरण का शिकार हुए अधिकांश लोग आर्थिक और सामाजिक रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों से आते हैं, जिससे यह प्रथा उन्हें संविधान के अन्तर्गत दिये गये मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत भी शामिल है। उपाध्याय ने केंद्र सरकार से इस प्रथा को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने का आह्वान किया।[19]
इस याचिका के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने कथित तौर पर भारत में जबरन धर्मांतरण की स्थिति पर केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय और केंद्रीय कानून मंत्रालय से जवाब मांगा। अदालत ने केंद्र सरकार से, प्रलोभन, बल या धोखाधड़ी के माध्यम से किए गए धर्मांतरण को रोकने के लिए उठाए जा सकने वाले कदमों का विवरण देने का अनुरोध किया।
हालांकि, 2023 में उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच बदल दी गई। नई पीठ ने उपाध्याय को सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाई कोर्ट की अलग-अलग पीठों के समक्ष कई याचिकाएँ दायर करने को लेकर चेतावनी जारी की। कथित तौर पर अदालत ने उन्हें अपनी याचिका से कुछ अंश हटाने का निर्देश दिया, जिनमे कोर्ट के अनुसार अल्पसंखकों को लेकर कुछ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ शामिल थीं।
2023 में Jerome Anto, जो कि ईसाई धर्म के अनुयायी हैं, और साथ ही धर्मांतरण विरोधी प्रचारक व राजनीतिक-धार्मिक पर्यवेक्षक हैं, ने धोखाधड़ी से किए जाने वाले धर्मांतरण के मुद्दे को संबोधित करते हुए एक याचिका दायर की। उनकी याचिका में हिंदुओं और नाबालिग बच्चों के कथित जबरन धर्मांतरण के बारे में चिंता जताई गई और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार को भारत में जबरन धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए एक कानून बनाने का निर्देश देने का अनुरोध किया।[20]
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका (पीआईएल) को उचित ठहराने वाली “लाइव चुनौती” की अनुपस्थिति का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने आगे कहा कि केंद्र सरकार या भारत के विधि आयोग को धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने का निर्देश देना उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है। Jerome Anto ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि धर्मांतरण एक प्रकार का सांस्कृतिक आतंकवाद है जो स्वदेशी लोगों और उनकी सांस्कृतिक विरासत को निशाना बनाता है। उन्होंने कथित तौर पर अदालत से अनुरोध किया कि वह भारत के विधि आयोग को संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 के सिद्धांतों के साथ संरेखित करते हुए तीन महीने के भीतर धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण को नियंत्रित करने के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने और विधेयक का मसौदा तैयार करने का निर्देश दे।[21]
संक्षेप में, कानूनी व्यवस्था और केंद्र सरकार दोनों ने हिंदुओं के गैरकानूनी धर्मांतरण के मुद्दे को काफी हद तक खारिज कर दिया है। अदालतें ठोस प्रमाण माँगती हैं, और ईसाई धर्म और इस्लाम जैसे अब्राहमिक धर्मों में धोखाधड़ी से किए जाने वाले धर्मांतरण के मामले में, प्रमाणों की ख़ासा कमी है। हालाँकि सोशल मीडिया अकाउंट, व्यक्तिगत गवाहियाँ और चुनिंदा राष्ट्रवादी मीडिया आउटलेट्स में धर्मांतरण की घटनाओं से जुड़ी रिपोर्टें मौजूद हैं, लेकिन मुख्यधारा का मीडिया शायद ही कभी इस मुद्दे को व्यापक रूप से कवर करता है। इसके अलावा, इस घटना पर गहन अध्ययन की अनुपस्थिति धर्मांतरण विरोधी कार्यकर्ताओं के लिए एक मजबूत मामला बनाना चुनौतीपूर्ण बनाती है।
राष्ट्रीय स्तर पर धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने में बाधाएँ
भारत में राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने में सबसे बड़ी बाधा हिंदुओं के धोखाधड़ी वाले धर्मांतरण के मुद्दे पर निर्णायक डेटा की कमी है।
वैश्विक मीडिया और बुद्धिजीवी संगठनों का मिला जुला तंत्र अक्सर भारत में हिंदुओं के बड़े पैमाने पर किए जाने वाले धर्मांतरण को कम करके आंकता हैं। या फिर इसे पूरी तरह से अनदेखा कर देता है। ये संस्थाएँ ऐसे कथानक गढ़ने में भी सिद्धहस्त हैं जो भारतीय संदर्भ में अल्पसंख्यकों को शोषित के रूप में बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करते हैं। नतीजतन, वे उन अध्ययनों का समर्थन करने में बहुत कम रुचि रखते हैं जो हिंदुओं को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उजागर करें, क्योंकि ऐसे निष्कर्ष उनके निहित एजेंडे का खंडन करेंगे। मीडिया का ध्यान आकर्षित करने वाले अधिकांश प्रभावशाली शोध अध्ययन अक्सर उसी वामपंथी-उदारवादी तंत्र द्वारा प्रायोजित होते हैं जो हिंदू समुदाय से संबंधित चिंताओं को अनदेखा या खारिज करता है। इसलिए, यह उम्मीद करना बेमानी है कि भारत में गैरकानूनी धार्मिक धर्मांतरण पर एक व्यापक अध्ययन इस ढांचे के भीतर से निकलेगा।
तो, विकल्प क्या है? भारत सरकार को भारत में स्थित स्वतंत्र बुद्धिजीवी और अकादमिक संगठनों के साथ मिलकर इस मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर का अध्ययन कराने की पहल करनी चाहिए। वास्तव में, जो संगठन भारत में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं के मुद्दों को निरंतर उजागर कर रहे हैं, उन्हें इस प्रकार की शोध रिपोर्ट्स तैयार करने की पहल करनी होगी। भारत सरकार को इस मुद्दे को मुख्यधारा के मीडिया और अकादमिक चर्चा में लाने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है, जिससे इसे हाशिये से ऊपर उठाया जा सके।
जब भारत में स्थित बुद्धिजीवी संस्थान हिंदुओं के धोखाधड़ी से किए जाने वाले धर्मांतरण को लेकर मात्रात्मक और गुणात्मक, दोनों तरह के अध्ययन शुरू कर देंगे, तो मुख्यधारा का मीडिया इन मुद्दों को कवर करने हेतु बाध्य हो जाएगा। इससे धीरे-धीरे एक मजबूत आख्यान का निर्माण हो सकता है जो राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून की आवश्यकता को वृहत स्तर पर उजागर करे। एक ठोस साक्ष्य आधार का निर्माण करके और सार्वजनिक जागरूकता पैदा करके, इस तरह के कानून की आवश्यकता के लिए प्रभावी ढंग से तर्क देना संभव हो जाता है, यह सुनिश्चित करते हुए कि इस मुद्दे को नीति निर्माण के उच्चतम स्तरों पर संबोधित किया जाये।
निष्कर्ष
कई आलोचकों का तर्क है कि एक अखिल भारतीय धर्मांतरण विरोधी कानून इस मुद्दे को पूर्णतया संबोधित नहीं कर सकता है, यह देखते हुए कि हिंदुओं का धोखाधड़ी से किया जाने वाला धर्म परिवर्तन एक अच्छा ख़ासा उद्योग है जो “धर्मनिरपेक्ष” भारत के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने में गहराई से समाया हुआ है। भारत में धर्म परिवर्तन की जटिलता अक्सर “जबरन” बनाम “स्वैच्छिक” धर्मांतरण के सरलीकृत द्विआधारी से परे होती है। अधिकांश धर्मांतरण “ग्रे ज़ोन” यानी बीच की स्थिति में फ़िट बैठते हैं, जिसमें प्रलोभन, सूक्ष्म प्रोपोगैंडा, भय-प्रचार और अन्य प्रकार की मनोवैज्ञानिक रणनीतियाँ शामिल होती हैं। इस प्रकार, इन मुद्दों से प्रभावी ढंग से निपटना कानून के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, यह देखते हुए कि कानूनी प्रणाली अक्सर स्थितियों को काले और सफेद के सरलीकृत द्विआधारी परिपेक्ष्य में देखती है। आलोचकों का यह भी सुझाव है कि जबरन धर्मांतरण की जटिल प्रकृति को किसी भी कानून के लिए पूरी तरह से संबोधित करना मुश्किल हो सकता है।
यद्यपि ये चिंताएँ वैध हैं, इन्हें आवश्यकता से अधिक तवज्जो देने के प्रलोभन से बचना होगा। इन चिंताओं पर अत्यधिक ध्यान देने के चक्कर में अगर हमने हिंदुओं के जबरन धर्मांतरण के संवेदनशील मामले को ही नज़रअंदाज़ कर दिया, तो यह अच्छा नहीं होगा। भारत में हिंदुओं का धोखाधड़ी से किया जाने वाला धर्म परिवर्तन खतरनाक स्तर पर पहुँच गया है, जिसके लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। कानूनी हस्तक्षेप इस स्थिति को प्रभावी ढंग से संबोधित करने का सबसे ठोस समाधान प्रतीत होता है।
अंततः: यह ध्यान में रखने की ज़रूरत है कि भारत में कोई भी राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून अपने दृष्टिकोण में सरलीकृत नहीं हो सकता। केंद्र सरकार को सभी संबंधित हितधारकों के साथ गहन परामर्श और विचार-विमर्श के बाद संसद में एक व्यापक विधेयक पेश करना चाहिए। इस तरह के विधेयक में व्यापक धर्मांतरण उद्योग को खत्म करने के लिए एक रूपरेखा भी स्थापित की जानी चाहिए, जिसमें ईसाई मिशनरियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले धर्मार्थ और सामाजिक कल्याण मोर्चों को लक्षित किया जाना चाहिए, साथ ही इस्लामवादियों द्वारा अपनाई गई “लव जिहाद” और “भूमि जिहाद” रणनीतियों को संबोधित किया जाना चाहिए।
यह कोई आसान काम नहीं है, और अकेले कानून से सभी समस्याओं का समाधान नहीं होगा। एक सख्त कानूनी ढांचे के साथ-साथ, हिंदू समाज को धर्मांतरण उद्योग द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली रणनीतियों के प्रति अधिक सतर्क और जागरूक होना चाहिए। हालाँकि, जब तक कानून हिंदू समुदाय को इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने के लिए सशक्त नहीं बनाता, तब तक इनमें से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। एक अच्छी तरह से तैयार किया गया राष्ट्रीय धर्मांतरण विरोधी कानून, सामाजिक जागरूकता को बढ़ाने के साथ, इस व्यापक मुद्दे पर अंकुश लगाने के लिए महत्वपूर्ण है।
संदर्भ
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[2] On Religious Conversion, Major Remark by Allahabad High Court: ‘Majority Population May Become Minority If’…| India News | Zee News; https://zeenews.india.com/india/on-religious-conversion-major-remark-by-allahabad-high-court-majority-population-may-become-minority-if-2762485.html
[3] Ibid
[4] 28 detained on complaint of holding a forced religious conversion event in Bharatpur, Rajasthan; https://www.opindia.com/2024/07/28-detained-religious-conversion-christianity-bharatpur-rajasthan/
[5] 20,000 Hindus lured and converted to Christianity in Bharatpur, Rajasthan – Sanatan Prabhat; https://sanatanprabhat.org/english/94469.html
[6] Rajasthan: new details emerge in Bharatpur Christian conversion racket; https://www.opindia.com/2024/02/bharatpur-conversion-racket-funds-recieved-from-italian-organisation-conversion-centres-operating-in-many-villages-in-rajasthan/
[7] Religious Conversion: Now Missionaries using ‘Social Media’ to convert innocent Hindus to Christianity; https://organiser.org/2023/05/22/175090/bharat/religious-conversion-now-missionaries-using-social-media-to-convert-innocent-hindus-to-christianity/
[8] CBN India -YouTube; https://www.youtube.com/@cbnindia/videos
[9] Home – CBN INDIA; https://cbnindia.org
[10] Vision, Mission, History, Beliefs, Values | Joshua Project; https://www.joshuaproject.net/about/details
[11] Search | Joshua Project; https://www.joshuaproject.net/search?term=brahmin&limit=0
[12] Andhra Pradesh pastor that converted Hindus and created 699 Christ villages arrested – Sanatan Prabhat; https://sanatanprabhat.org/english/32163.html
[13] Conversion and Superstition: How Church has uprooted Khasi community in North East; https://organiser.org/2023/03/16/165026/bharat/conversion-and-superstition-how-church-has-uprooted-khasi-community-in-north-east/
[14] Will curb land sale to Muslims, law soon for life term in ‘love jihad’ cases: CM Himanta Biswa Sarma | India News – The Indian Express; https://indianexpress.com/article/india/assam-law-love-jihad-domicile-policy-govt-jobs-himanta-biswa-sarma-9494734/
[15] LawBeat | A Legal History of Anti-Conversion Laws in India; https://lawbeat.in/columns/legal-history-anti-conversion-laws-india
[16] Karnataka to scrap anti-conversion law, reverse textbook changes – The Hindu; https://www.thehindu.com/news/national/karnataka/karnataka-cabinet-scraps-anti-conversion-law-introduced-by-bjp/article66971858.ece
[17] https://www.youtube.com/watch?v=ZCPMr11PEHY&t=2024s; https://www.youtube.com/watch?v=ZCPMr11PEHY&t=2024s
[18] Anti-conversion law: What it is and how various state implement it | India News – Business Standard; https://www.business-standard.com/india-news/anti-conversion-law-what-it-is-and-how-various-states-implement-it-123060600648_1.html
[19] The Wire: The Wire News India, Latest News, News from India, Politics, External Affairs, Science, Economics, Gender and Culture; https://thewire.in/law/sc-forced-conversions-notice-to-centre
[20] SC warns BJP leader Ashwini Upadhyay against filing multiple pleas on ‘forced’ conversions; https://scroll.in/latest/1041995/sc-warns-bjp-leader-ashwini-upadhyay-against-filing-multiple-pleas-on-forced-conversions
[21] ‘What kind of PIL is this,’ SC on a plea for enacting anti-conversion law; https://www.deccanherald.com/india/what-kind-of-pil-is-this-sc-on-a-plea-for-enacting-anti-conversion-law-2674925#