- नालंदा विश्वविद्यालय एक जमाने में एक प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्थान था। 12वीं शताब्दी में इस्लामी आक्रमणकारी मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने इसे नष्ट कर दिया था। असंख्य विद्वानों का नरसंहार हुआ। इसमें आग लगा दी गयी। नतीजतन, यहां लाखों अमूल्य पांडुलिपियाँ नष्ट हो गईं।
- 2010 में, भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय के पुनरुद्धार की योजना बनाई। भारी-भरकम बजट जारी हुआ। इस काम के लिए अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को कुलाधिपति नियुक्त किया गया।
- सेन के नेतृत्व में, इस पुनरुद्धार परियोजना पर कुप्रबंधन, भाई-भतीजावाद, वित्तीय अनियमितता और धीमी गति से काम करने के आरोप लगे। इस सब की वजह से यह परियोजना तकरीबन असफल होता गया।
- विश्वविद्यालय में प्रमुख पदों पर सेन के सहयोगियों और राजनेताओं के रिश्तेदारों को नियुक्त किया गया। इस वजह से भाई-भतीजावाद और पारदर्शिता की कमी के आरोप लगे।
- आलोचकों का कहना है कि सेन ने नालंदा के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को पुनर्जीवित करने की जगह व्यक्तिगत लाभ को महत्व दिया, जिससे प्राचीन भारतीय शिक्षा के केंद्र के रूप में इसकी गरिमा नहीं उभर पाई।
नालंदा विश्वविद्यालय को दो बार बर्बाद किए जाने का दुर्भाग्य प्राप्त है। पहली बार, 12वीं शताब्दी में इस्लामी आक्रमणकारी मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने बहुत बेरहमी से इसका विनाश किया।[1] इसकी नौ मंजिला ऊंची लाइब्रेरी, जिसमें 90 लाख अमूल्य पुस्तकें और पांडुलिपियाँ थीं, को जला दिया गया। सैकड़ों बौद्ध भिक्षुओं सहित कई विद्वानों का नरसंहार कर दिया गया। इस घटना को भारतीय इतिहास में सांस्कृतिक बर्बरता के सबसे भयानक उदाहरणों में से एक माना जाता है।
21वीं सदी में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को इसके पुनरुद्धार की जिम्मेदारी दी गयी। उनके नेतृत्व में लालची मार्क्सवादियों के झुंड ने इस पर कब्जा कर लिया। परिणामस्वरूप इस विश्वविद्यालय को दूसरी बार बर्बादी का सामना करना पड़ा। भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत, 2000 करोड़ रुपये के बजट के साथ 2010 में विश्वविद्यालय को पुनर्जीवित करने की परियोजना शुरू की।[2] यह परियोजना पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का विचार था। इसे 16 देशों के पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन द्वारा समर्थन दिया गया था। सरकार ने सेन को नालंदा मेंटर ग्रुप (एनएमजी) का अध्यक्ष और विश्वविद्यालय का कुलाधिपति नियुक्त किया। इनका मूल वेतन 80,000 अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष था।[3] (ऐसी मोटी तनख्वाह पाने के बावजूद, सेन एयर इंडिया की मुफ्त यात्रा का लाभ उठाने वाले एकमात्र भारत रत्न पुरस्कार विजेता हैं, जिन्होंने 2015 और 2019 के बीच 21 बार यात्रा की।)
अंततः यह परियोजना एक बोझ बन गया। विश्वविद्यालय के गवर्निंग बोर्ड में शामिल मार्क्सवादी शिक्षाविदों पर कुप्रबंधन और वित्तीय धोखाधड़ी का आरोप लगा। परियोजना की कार्य प्रगति इतनी धीमी थी कि शैक्षणिक पाठ्यक्रम चार साल बाद, 2014 में ही शुरू हो सका। 19 जून 2024 को, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के राजगीर में विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन करते हुए कहा,”नालंदा की बर्बादी ने भारत को अंधकार में धकेल दिया।”
सेन का विवादित कार्यकाल
सेन का कार्यकाल सदैव विवादों से भरा हुआ रहा। नालंदा विश्वविद्यालय की देखरेख कर रहे विदेश मंत्रालय ने “लीक हुए आंतरिक पत्र, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट, कर-मुक्त वेतन, अनाधिकृत विदेश यात्राएं, आलीशान आवास में आयोजित बैठकें और अपारदर्शी नियुक्ति प्रथाओं” की कठोर आलोचना की है।”[4]
भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने फिजूलखर्ची और विवादास्पद नियुक्तियों को सार्वजनिक किया। राष्ट्रपति कलाम ने भी इस बात की आलोचना की थी। 4 जुलाई, 2011 को विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को भेजे एक पत्र में उन्होंने लिखा:
“अगस्त 2007 से नालंदा विश्वविद्यालय की विभिन्न शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्यवाहियों में शामिल होने के बाद, मेरा मानना है कि कुलाधिपति और कुलपति के पद पर चुने/नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति में शैक्षणिक और प्रबंधन विशेषज्ञता को असाधारण बुद्धिमान होने की आवश्यकता है। कुलाधिपति और कुलपति, दोनों को बिहार में पूर्णकालिक रूप से व्यक्तिगत रूप से रहना चाहिए, ताकि एक मजबूत अंतरराष्ट्रीय संस्थान का निर्माण हो सके।”[5]
कलाम का साफ़-साफ़ इशारा था कि सेन किस तरह से नालंदा विश्वविद्यालय में अपने जानकारों, साथियों और राजनेताओं के रिश्तेदारों की नियुक्तियां कर रहे थे। उदाहरण देखें:[6]
- गोपा सभरवाल: लेडी श्रीराम कॉलेज में समाजशास्त्र विभाग की एक साधारण रीडर, जिन्हे बौद्ध अध्ययन का जरा भी ज्ञान नहीं था।
- उपिंदर सिंह, दमन सिंह, अमृत सिंह: ये तीनों तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटियाँ हैं। उनमें से दो ने नालंदा विश्वविद्यालय से वेतन लेते हुए भी अमेरिका में रह रही थीं।
- अंजना शर्मा और नयनजोत लाहिड़ी: दोनों गोपा सभरवाल और उपिंदर सिंह की दोस्त हैं।
कलाम का सुझाव था कि कुलाधिपति और कुलपति को बिहार में रहते हुए पूर्णकालिक काम करना चाहिए, जबकि सेन ने लगभग एक दशक लंबे कार्यकाल के दौरान न्यूयॉर्क, दिल्ली, टोक्यो और सिंगापुर जैसे शहरों में एनएमजी की बैठकों मे भाग लेते रहे, और कभी-कभार नालंदा आ जाते थे। इस लिए ये कोई आश्चर्य नहीं है कि नालंदा विश्वविद्यालय उनके कार्यकाल में जरा भर भी विकास नहीं कर सका।
सितंबर 2011 में, सेन के कृत्यों से परेशान हो कर कलाम ने खुद को इस परियोजना से अलग कर लिया।[7] जिस तरीके से विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही थी, उससे सीएजी (CAG) भी असहमत था। सीएजी की रिपोर्ट से खुलासा हुआ, “विश्वविद्यालय समय पर स्कूल स्थापित करने में विफल रहा और विश्वविद्यालय परिसर का निर्माण कार्य शुरू नहीं कर सका।”[8] 2021 में, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने सेन के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज करने की मांग करते हुए, केंद्रीय जांच ब्यूरो में शिकायत दर्ज कराई।[9] स्वामी के अनुसार, “धन के दुरुपयोग और चोरी, जवाबदेही की कमी, आपराधिक विश्वासघात, सार्वजनिक धन के आपराधिक दुरुपयोग और करदाताओं के लगभग 3000 करोड़ रुपये के गबन के लिए सीएजी ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज की जा सकती है।”
जानबूझकर किया गया भ्रष्टाचार?
मार्क्सवादी हिंदू धर्म के खिलाफ हैं, यह जानने के लिए किसी बड़ी बुद्धिमानी की जरूरत नहीं है। 2024 में बने राम मंदिर की तरह ही नालंदा विश्वविद्यालय में भी एक अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा वाला संस्थान आसानी से बनाने की भारत मे क्षमता थी और है। यह एक ऐसा संस्थान बन सकता है, जो भारतीय संस्कृति के विकास में योगदान दे सकता है। शुरू से ही यह साफ़ था कि नालंदा विश्वविद्यालय को प्राचीन भारतीय शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित करने में सेन की दिलचस्पी नहीं थी। इस्लामी आक्रमणकारियों द्वारा नालंदा के विनाश के आठ सौ साल बाद, इस प्रतिष्ठित संस्थान के भव्य उद्घाटन में भी सेन उपस्थित नहीं थे। ऐसी हरकत को उपेक्षा छोड़ कर और किस रूप में देखा जा सकता है? “कुछ पर्यवेक्षकों का मानना था कि विश्विद्यालय में छात्रों की बहुत ही कम संख्या के कारण सेन ने इसके उद्घाटन में भाग लेना ठीक नहीं समझा। लेकिन आज अगर वे इतनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं, तो उस वक्त यह दिलचस्पी कहाँ चली गयी थी?”[10]
सेन के लिए, नालंदा विश्वविद्यालय केवल एक आत्म-प्रशंसा का अभियान था। “अगर अमर्त्य सेन ने घोषणा की होती कि एक शिक्षाविद के रूप में उन्होंने अब सब कुछ पा लिया है और अब नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण करना उनके जीवन का मिशन है और वह इस मिशन के लिए बिहार में बस जाएंगे, तो कोई भी इसकी सराहना करता। लेकिन, सेन नालंदा विश्वविद्यालय को लगातार यात्राओं (भारतीय करदाताओं के पैसे पर) और लच्छेदार भाषण देने के अवसर के रूप में देखते थे।”[11]
भारतीय इतिहास में नकारात्मकता
सेन की नियुक्ति शुरू से ही विवादास्पद थी। भारत पर इस्लामी आक्रमणों पर उनके विचारों ने आक्रमणकारियों के लिए ही एक बौद्धिक रक्षा कवच तैयार कर दिया था।[12] उन्होंने मुस्लिम आक्रमणकारियों की बर्बर हिंसा और मूर्तिभंजन को सही बताया, यह कह कर कि “यह स्वभाव उनके खून में है।” लेखक संदीप बालाकृष्णन के अनुसार, “अमर्त्य सेन की ज्ञान से भरी थीसिस हिंदुओं को इस अकारण हिंसा का बदला लेने के अधिकार से वंचित करती है।” सेन नकारात्मक इतिहासकारों के समूह का हिस्सा हैं, क्योंकि ऐसे इतिहासकार इस्लामी आक्रमणकारियों के अपराधों को धोना चाहते हैं। यह विडंबनापूर्ण है। नालंदा के मामले में, मुस्लिम इतिहासकार मौलाना मिन्हाजुद्दीन ने अपने तबकात-ए-नासिरी में लिखा है कि कैसे मोहम्मद बख्तियार खिलजी और उसके कट्टरपंथी गिरोहों ने विश्वविद्यालय पर हमला किया।[13] फिर भी डीएन झा जैसे मार्क्सवादी इतिहासकार इस बर्बर कृत्य के लिए हिंदुओं को दोषी ठहराते हैं।
मिन्हाजुद्दीन लिखते हैं कि 1197 इस्वी में नालंदा पर हमला के दौरान, खिलजी की मुस्लिम सेना ने क्या देखा:
“उस जगह के ज़्यादातर निवासी ब्राह्मण थे। उन सभी ब्राह्मणों के सिर मुंडे हुए थे और वे सभी मारे गए। वहां बहुत सारी किताबें थीं। जब ये किताबें मुसलमानों को दिखी, तो उन्होंने हिंदुओं को बुलाया ताकि वे बता सके कि इन किताबों में क्या है। लेकिन सभी हिंदू मारे जा चुके थे। बाद में, खिलजी को पता चला कि वह पूरा किला और शहर एक विश्विद्यालय था और हिंदू भाषा में वे विश्वविद्यालय को बिहार [विहार] कहते हैं।”
अब देखिये कि डीएन झा इस प्रकरण के बारे में क्या कहते हैं? 2004 में, झा भारतीय इतिहास कांग्रेस के अध्यक्ष थे। अपने अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने दावा किया कि “हिंदू कट्टरपंथियों” ने नालंदा को जला दिया था:
“तिब्बती परंपरा के अनुसार, कलचुरी राजा कर्ण (11वीं शताब्दी) ने मगध में कई बौद्ध मंदिरों और मठों को नष्ट कर दिया था और तिब्बती ग्रंथ पैग सैम जॉन जांग में कुछ ‘हिंदू कट्टरपंथियों’ द्वारा नालंदा के पुस्तकालय को जलाने का उल्लेख है।”
हालांकि, पैग सैम जॉन जांग के अनुवादक और संपादक शरत चंद्र दास ने नालंदा के विनाश का विवरण दिया है:
“जब मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान हो रहा था, जिसे उन्होंने (मगध के राजा के मंत्री काकुटा सिद्ध) नालंदा में करवाया था, तो कुछ युवा भिक्षुओं ने दो तीर्थिका भिखारियों पर गंदा पानी फेंक दिया। भिखारियों ने क्रोधित होकर नालंदा के बौद्ध विश्वविद्यालय के धर्म गंज के तीन मंदिरों-रत्न सागर, रत्न रंजक, और रत्नदधि नामक नौ मंजिला इमारत (पुस्तकालय) को आग लगा दी।” (पृष्ठ 92) मार्क्सवादी इतिहासकार इस बेशर्मी से झूठ बोलते हैं। बेल्जियम के इंडोलॉजिस्ट कोएनराड एल्स्ट के अनुसार, “ब्राह्मणों और बौद्धों के बीच कोई लंबी दुश्मनी नहीं थी।” अधिकांश बौद्ध लेखक ब्राह्मण पैदा हुए थे और ब्राह्मणवादी संस्कृति का हिस्सा थे। “भारत में बौद्ध संस्थाएँ 16 शताब्दियों तक हिंदू शासन के तहत फलती-फूलती रही। ऐसा नहीं होता तो मुस्लिम आक्रमणकारियों के पास नष्ट करने के लिए कुछ भी नहीं बचता। इसके विपरीत, जब इस्लाम फैलता है तभी जा कर बौद्ध धर्म नष्ट होना शुरू होता है। ऐसे में दो तीर्थिका भिक्षुओं को दोष देना कहाँ तक जायज है? बौद्धों और ब्राह्मणों के बीच विवाद का हवाला दिया जा सकता है। विभिन्न ब्राह्मणवादी स्कूलों और विभिन्न बौद्ध संप्रदायों के बीच विवाद हो सकते है। लेकिन यह सब केवल राय की स्वतंत्रता की बात तक सीमित थी। राय की भिन्नता को मध्य और दक्षिण एशिया में बौद्ध धर्म का इस्लाम द्वारा किए गए विनाश से तुलना नहीं की जा सकती।”[14]
निष्कर्ष
अमर्त्य सेन ने नियमों की घोर अवहेलना की। अनियमितताएं की और विश्वविद्यालय के विकास में कोई दिलचस्पी नहीं ली। इस वजह से पुनरुद्धार परियोजना रास्ता भटक गई। जुलाई 2015 में उनाका कार्यकाल ख़त्म हुआ। नरेंद्र मोदी सरकार ने उनके कार्यकाल को बढ़ाने में कोई रुचि नहीं दिखाई, तो उन्होंने मीडिया का सहारा लिया और बेशर्मी से “शिक्षा में राजनीतिक हस्तक्षेप” का दावा किया।
हालांकि, पत्रकार आर जगन्नाथन के अनुसार, सेन के तर्कों में कोई दम नहीं है। वे कहते हैं,“आश्चर्य है कि उन्हें क्यों नहीं लगा कि नालंदा विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में उनकी नियुक्ति राजनीतिक ही थी। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमर्त्य सेन सोनिया गांधी की कई सामाजिक व्यय (सोशल स्पेंडिंग) योजनाओं के बौद्धिक जनक थे। सेन खुद मनमोहन सिंह के समर्थन में राजनीतिक बयान देते रहे थे। सेन ने कहा था कि वे मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहेंगे।[15] इतने घोर राजनीतिक व्यक्ति के लिए यह शिकायत करना दिलचस्प है कि राजनेता अकादमिक संस्थानों में हस्तक्षेप कर रहे हैं।”
मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार को सेन द्वारा लीपा पोती करना बताता है कि वे हिंदुओं और भारतीय संस्कृति से नफरत करते हैं। जाहिर है, वे एक प्रतिष्ठित धार्मिक-शैक्षणिक संस्थान को पुनर्जीवित करने के लिए सही व्यक्ति नहीं थे। 80 साल की उम्र में कुलाधिपति के रूप में उनकी नियुक्ति मनमोहन सिंह-सोनिया गांधी सरकार के सबसे मूर्खतापूर्ण निर्णयों में से एक माना जाएगा।
मार्क्सवाद का विचार जिस तेजी से ढह रहा है और दूसरी तरफ, जिस तेजी से हिंदू पुनरुत्थान हो रहा है, उसे देखते हुए मार्क्सवादी प्रासंगिक बने रहने के लिए बेताब हैं। झूठ ही उनका एकमात्र हथियार है। ऐसे में सत्य की खोज कर रहे लोगों को चाहिए कि वे मार्क्सवादियों को विश्वविद्यालय परिसरों, सरकार और संस्थानों में काम करने की अनुमति न दें।
Citations
[1] https://www.opindia.com/2024/06/pm-modi-inaugurates-new-nalanda-university-campus-in-rajgir-visits-unesco-site-where-bakhtiyar-khilji-burned-down-the-ancient-nalanda/
[2] Nalanda University: APJ Abdul Kalam dissociates himself from Rs 2000 crore Nalanda University project – The Economic Times (indiatimes.com); https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/apj-abdul-kalam-dissociates-himself-from-rs-2000-crore-nalanda-university-project/articleshow/10000086.cms?from=mdr
[3] Crores spent but no glory for Nalanda University | RTI story – India Today; https://www.indiatoday.in/india/story/crores-spent-but-no-glory-for-nalanda-university-rti-mea-1782204-2021-03-22
[4] Nalanda University: What went wrong? | Economy & Policy Top Features – Business Standard (business-standard.com); https://www.business-standard.com/article/economy-policy/nalanda-university-what-went-wrong-115030400031_1.html
[5] Nalanda University is ailing at childbirth – Indiafacts; https://www.indiafacts.org.in/nalanda-university-ailing-childbirth/
[6] Nalanda University, Amartya Sen and the massive fraud in reconstruction (shwetankspad.com); https://shwetankspad.com/2014/08/26/ancient-nalanda-university-resumes-after-800-year-break-a-massive-fraud-in-the-making/comment-page-1/
[7] Nalanda University: APJ Abdul Kalam dissociates himself from Rs 2000 crore Nalanda University project – The Economic Times (indiatimes.com); https://economictimes.indiatimes.com/news/politics-and-nation/apj-abdul-kalam-dissociates-himself-from-rs-2000-crore-nalanda-university-project/articleshow/10000086.cms?from=mdr
[8] How Amartya Sen Nearly Crippled Nalanda University’s Revival (swarajyamag.com); https://swarajyamag.com/politics/how-amartya-sen-nearly-crippled-nalanda-universitys-revival
[9] Swamy asks CBI to file FIR against Amartya Sen – The Hindu; https://www.thehindu.com/news/national/swamy-asks-cbi-to-file-fir-against-amartya-sen/article6938374.ece
[10] Amartya Sen – Victim of Vendetta or a clever plot at Attempted Martyrdom (opindia.com); https://www.opindia.com/2015/02/amartya-sen-victim-of-vendetta-or-a-clever-plot-at-attempted-martyrdom/
[11] Nalanda University, Amartya Sen and the massive fraud in reconstruction (shwetankspad.com); https://shwetankspad.com/2014/08/26/ancient-nalanda-university-resumes-after-800-year-break-a-massive-fraud-in-the-making/comment-page-1/
[12] How Amartya Sen Nearly Crippled Nalanda University’s Revival (swarajyamag.com); https://swarajyamag.com/politics/how-amartya-sen-nearly-crippled-nalanda-universitys-revival
[13] How history was made up at Nalanda; https://hindupost.in/history/how-history-was-made-up-at-nalanda/
[14]Koenraad Elst: An “eminent historian” attacks Arun Shourie; https://koenraadelst.blogspot.com/2014/08/an-eminent-historian-attacks-arun.html
[15] Amartya Sen quits Nalanda University but his sour exit does him no credit; https://www.firstpost.com/india/amartya-sen-quits-nalanda-university-but-his-sour-exit-does-him-no-credit-2110977.html