- इस लेख में भारत और हिंदू विरोधी रिपोर्टिंग में हाल के दिनों में आई तेजी के कारणों की पड़ताल की गई है। इसके जरिये विभिन्न ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर भारत के खिलाफ पक्षपातपूर्ण डिजिटल रिपोर्ट फैलाए जा रहे हैं…
- बहुत ही बारीकी से देखने पर मुख्यधारा मीडिया की विश्वसनीयता घटती हुई दिखती है। वामपंथी संगठनों और थिंक टैंकों द्वारा पक्षपातपूर्ण लेख और खबरें ऑनलाइन प्रचार के लिए लिखे जा रहे है।
- साउथ एशिया स्कॉलर एक्टिविस्ट कलेक्टिव (सवेरा) और यूनाइटेड स्टेट्स होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूज़ियम की खबरों और लेखों पर चर्चा की गई है। इन सबमें तथ्यात्मक गलतियाँ हैं, जो भारत विरोधी प्रचार के लिए जानबूझ कर इस्तेमाल की जाती है।
- लेख में हिंदू संगठनों और वीर सावरकर जैसे स्वतन्त्रता सेनानी के खिलाफ़ दुष्प्रचार किया जाता है। भारत को बदनाम करने के लिए मणिपुर संघर्ष और लव जिहाद जैसे शब्दों को तोड़-मरोड़ कर पेश करने पर भी चर्चा की गई है।
- यह लेख ऐसे दुष्प्रचार और नकारात्मक रिपोर्टिंग के पीछे छुपे जहरीले मकसद की जांच करता हैं और सवाल उठाता है। यह लेख इस बात का खुलासा करता है कि कैसे इस सब का मकसद भारत के सामाजिक ताने-बाने को तोड़ना और इसकी लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करना है। दुखद रूप से इस सब पर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं मौन धारण किए हुए हैं।
आज से सौ साल पहले, अमेरिकी दार्शनिक एल्बर्ट हबर्ड ने मुख्यधारा मीडिया की भूमिका के बारे में कहा था, “एक संपादक समाचार पत्र द्वारा नियुक्त वह व्यक्ति होता है, जिसका काम गेहूं को भूसे से अलग करना और यह सुनिश्चित करना होता है कि भूसा छप जाए।” इतने सालों में, अखबारों और टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले भूसे ने मेनस्ट्रीम मीडिया की विश्वसनीयता को लगभग ख़त्म कर दिया। इसका सबूत है, अमेरिका में हुआ एक सर्वेक्षण। सर्वेक्षण से पता चला कि 38% अमेरिकियों को समाचार पत्रों, टीवी और रेडियो पर बिल्कुल भी भरोसा और विश्वास नहीं है, जबकि 28% अमेरिकी का कहना है कि उन्हें बहुत अधिक भरोसा नहीं है, 27% को “काफी हद तक” भरोसा है, जबकि मुश्किल से 7% अमेरिकियों ने मीडिया पर “बहुत अधिक” भरोसा की बात कही।[1]
सरल शब्दों में कहें तो, हाल में ऐसी कोई खबर या आलेख छपने लायक नहीं थी। आप देख भी रहे होंगे कि आजकल मेनस्ट्रीम मीडिया का सर्कुलेशन (प्रसार संख्या) और विज्ञापन से होने वाली कमाई में भारी गिरावट आ रही है। कई पुराने मीडिया घरानों को नए-नए वेब जर्नलिज्म की दुनिया के अरबपतियों द्वारा हथियाया जा रहा है। ये लोग इसके जरिये एक ख़ास समूह (भारत विरोधी प्रोपेगेंडा फैलाने वाले) में अपनी छवि को चमकाना चाहते हैं।
अर्थ ये कि अब सारा कचरा छपने के लिए ऑनलाइन पत्रकारिता में इस्तेमाल किया जा रहा है।
भारत विरोधी प्रचार करने वालों को यह समझ में आ गया है कि उनकी बकवास खबर कागज़ पर छपने लायक नहीं रह गया है। लेकिन, वे इसे इसे ई-पेपर पर छापते हैं, जहां कागज़ की जरूरत ही नहीं है। और इसका प्रसार भी दूर-दूर तक किया जा सकता हैं। इसमें तरह-तरह के दुष्प्रचार होते हैं, जिन्हें अब समाचार तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता है। उन्हें किसी देश की रिपोर्ट, नीति, रिपोर्टिंग गाइड, थिंकटैंक समीक्षा या ऑनलाइन ब्लॉग के रूप में फिर से प्रकाशित किया जाता है। फिर, इसे भारत विरोधी रणनीति समूह या कलाकार समूहों या किसी वामपंथी उदारवादी संगठन द्वारा लिखा और फैलाया जाता है। यह बकवास खबर या लेख अब तेजी से ऑनलाइन फैल रहा है। ऐसे में, हमें विभिन्न नीति समूहों और मीडिया संगठनों द्वारा प्रसारित ऐसे रिपोर्टों या लेखों की समीक्षा करनी चाहिए, जो हिंदू, हिंदुत्व, भारत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और हिंदू संस्कृति को बदनाम करने के लिए साजिश और शैतानी कोशिशें करते हैं।
कचरा रिपोर्ट
सवेरा रिपोर्ट नाम का एक नया समूह बना था। यह वामपंथी-उदारवादियों का एक नया समूह था। यह “अमेरिका में हिंदू वर्चस्व के उदय” पर शोर मचा रहा था। यह मुख्य रूप से अमेरिका के वीएचपी को “अंतर-धार्मिक, बहुजातीय और जाति-विरोधी” प्रयास बता कर निशाना बना रहा था। लेकिन एक बार जब रिपोर्ट को बकवास बता दिया गया और एक भी वामपंथी-उदारवादी सेलेब्रटी इसका समर्थन करने आगे नहीं आए, तब सवेरा ने एक नई चाल चली। इसने ऐसे ऑनलाइन मीडिया हाउसेज का साथ पकड़ा, जिनकी अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता बेहतर थी। इसलिए, साउथ एशिया स्कॉलर एक्टिविस्ट कलेक्टिव की हिंदू राष्ट्रवाद रिपोर्टिंग गाइड आई, जो मूल रूप से उसी सवेरा रिपोर्ट का एक घटिया संस्करण था। आश्चर्य की बात नहीं है कि इसे सवेरा रिपोर्ट से बेहतर लोकप्रियता नहीं मिली। फिर, यूनाइटेड स्टेट्स होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम द्वारा ‘भारत में सामूहिक अत्याचारों का जोखिम’ नाम से एक रिपोर्ट आई। धर्मनिरपेक्षता पर उपदेश देने वाले गैर-भारतीय श्वेत-श्वेत नामों का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन था यह भी बकवास ही।
इनमें से कोई भी रिपोर्ट भारत की मुख्यधारा मीडिया में जगह नहीं बना पाई, क्योंकि भारतीय वामपंथी इसका कोइ सबूत नहीं दे पाए। सवेरा को 100 समान विचारधारा वाले संगठनों का समर्थन मिलने के बावजूद उनका वैश्विक PR विफल हो गया। सवेरा को सिर्फ एक भारतीय, ऋचा करमाकर, का साथ मिला। करमाकर ने धार्मिक समाचार पोर्टल, धार्मिक समाचार सेवा के लिए एक लेख लिखा। इस लेख में इस बात पर दुख जताया गया था कि कैसे “देश में शिक्षा देने या उपदेश देने के लिए आने वाले ईसाईयों” को भारत से बाहर निकाल दिया गया। आप ही सोचिये, क्या यह लेख भारत सरकार की कार्रवाई को सवेरा के खिलाफ नफरत भरी रिपोर्ट के योग्य बनाता है।[2] ऐसा नहीं है कि पोर्टल किसी भी तरह की पत्रकारिता की ईमानदारी का दावा करता है, लेकिन गूगल सर्च से पता चल सकता है कि भारत में धर्मांतरण लगभग अवैध है, जब तक कि यह स्वैच्छिक साबित न हो जाए। इसके अलावा, ओडिशा, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और झारखंड जैसे कुछ राज्यों में धर्म-परिवर्तन विरोधी कानून बहुत मजबूत हैं। इनमें से कुछ कानून बहुत पहले की सरकार के समय से आ रहे हैं। लेकिन, सवाल है कि करमाकर ने कभी यह लिखा कि कैसे अमेरिका, कनाडा, इजरायल, भारत, ब्रिटेन, ऑस्ट्रिया, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, रूस और दक्षिण अफ्रीका सहित 10 देशों ने महिलाओं के खिलाफ शरिया क़ानून के दुरुपयोग पर एक भारतीय-अमेरिकी संगठन “चिंगारी” द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है?[3] या फिर हम यह निष्कर्ष निकालें कि केवल भारत के खिलाफ नफ़रत फैलाने के लिए ही यह पोर्टल काम करता है?
यूनाइटेड स्टेट्स होलोकॉस्ट मेमोरियल म्यूजियम द्वारा जारी रिपोर्ट भी नाकारा साबित हुआ। इस विषय पर उनकी प्रामाणिकता पूर्वाग्रह से भरी हुई दिखती है। ये ऐसी यहूदी संस्था है जिस ने अमेरिका में अनियंत्रित यहूदी-विरोधी भावना के बारे में कोई रिपोर्ट जारी की नहीं है। 7 अक्टूबर को इजरायल पर हमास द्वारा किए गए हमले के बाद से अमेरिका में यहूदी विरोधी भावना चरम पर है। ऐसे में एक कथित यहूदी संगठन की विश्वसनीयता क्या रह जाती है? यह अपनी नाक के नीचे हो रहे यहूदी-विरोधी आंदोलन की पहचान नहीं कर पाता है या उसे अनदेखा कर देता है। लेकिन, भारत को सलाह देने से नहीं चूकता।[4] हालाँकि, केवल यही एक रिपोर्ट नहीं थीं, जिन्होंने भारत और हिंदुओं की निंदा की। हाल ही में, ओपिनियन पीस (लेख), संपादकीय, विशेष रिपोर्ट, थिंक-टैंक शोध रिपोर्ट आदि के नाम पर हिंदू विरोधी रिपोर्टिंग की बाढ़ आ गई है। यहाँ कुछ चुनिंदा ऑनलाइन मीडिया हाउसेज के नाम दिए गए है, जो भारत से नफरत करने और भारत के खिलाफ दुष्प्रचार करने के लिए जाने जाते हैं:
- ऑस्ट्रेलियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स: ““Australia’s Woeful Response to Rising Authoritarianism in India“
- ब्लूमबर्ग: “Billionaire Press Barons Are Squeezing Media Freedom in India,” and “‘Billionaire Raj’ Is Pushing India Toward Autocracy“
- चैथम हाउस, यूके: “Democratic backsliding in India could prompt the West to review its cooperation with Delhi“
- डेली डॉट ऑस्टिन टेक्सास: : “India is the future of the authoritarian internet
- फाइनेंशियल टाइम्स, यूके: “Indian democracy developed East Asian characteristics – Voters are increasingly willing to trade political freedom for economic progress,” and “The ‘mother of democracy’ is not in good shape“
- ले मोंडे, फ्रांस: “India Democracy in name only
- लोवी इंस्टीट्यूट: “Crushing dissent in a new paranoid India“
- निप्पॉन, जापान: “Indian Democracy in Peril: Slide into Autocracy Likely to Continue
- रीज़न मैगज़ीन: “Authoritarianism Is Winning on Every Front in India“
- द अटलांटिक मैगज़ीन: “What Has Happened to the Rule of Law in India?”
- बुलेट सोशलिस्ट प्रोजेक्ट: “The Tragedy Of India’s Authoritarian Descent“
- द न्यूयॉर्क टाइम्स: “Modi’s India Is Where Global Democracy Dies“
- द गार्जियन: “As India goes to the polls, can democracy deliver a better life for all of its people,” and “The Guardian view on India’s election: fixing a win by outlawing dissent damages democracy
इन सबके बीच, टाइम मैगज़ीन सबसे अधिक दुष्प्रचार और नफ़रत फैलाता दिखा। इसने 2019 के चुनाव से पहले अपने एक लेख में लिखा,“क्या दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र मोदी सरकार के और पाँच साल को झेल सकता है?”[5] सवाल है कि कोई इस तरह की नफ़रत भरी रिपोर्टिंग को लिखता कैसे है?
खबर बनाने का धंधा
वामपंथी उदारवादियों ने भारत विरोधी और हिंदू विरोधी दुष्प्रचार कैसे फैलाया? यह समझने के लिए, आपको उस नुस्खे को समझना होगा, जो पिछले दस साल से उनके लिए कारगर साबित हो रहा है। पत्रकार और मीडिया विश्लेषक अमोल पार्थ ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों जैसे द न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉल स्ट्रीट जर्नल, वाशिंगटन पोस्ट, टाइम पत्रिका, द गार्जियन, बीबीसी आदि की 3,000 से अधिक रिपोर्टों का विश्लेषण किया है। उन्होंने इससे तथ्यों और आंकड़ों को जुटाया है। पार्थ ने भारत में सामाजिक-राजनीतिक घटनाक्रमों की तर्कहीन वैश्विक मीडिया कवरेज का अध्ययन किया है। उनके निष्कर्षों से पता चलता है कि वास्तव में “सारे रिपोर्ट पूर्वाग्रह से ग्रस्त है और साथ ही अपने हेडिंग को काफी सनसनीखेज बनाते हैं।” जाहिर है, इन ऑनलाइन मीडिया हाउसेज ने भारत के खिलाफ दुष्प्रचार के लिए नकारात्मक और विभाजनकारी शब्दों का इस्तेमाल किया है। 500 हेडिंग्स में पाया गया कि सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द थे: डर, नफरत, हिंसा, दंगा, हिंदू, मुस्लिम, कश्मीर, गाय, भीड़ और विरोध।[6] अब देखिये, भारत अभी दुनिया में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्था है, फिर भी वायरल सुर्खियों में व्यापार पर एक भी शब्द नहीं है।
अब, इन नफरत भरी रिपोर्टों में लगाई गए अधिकांश आरोपों को देखते ही खारिज किया जा चुका है।[7] अब ये नफरती पत्रकार 2002 के गुजरात दंगों, राम मंदिर कोर्ट केस आदि पर नहीं लिखते। अब ये वीर सावरकर, जिहाद और मणिपुर के रूप में नफ़रत की नई दुकान खोल चुके हैं।
सावरकर का उपहास
ऑनलाइन मीडिया के ये कपटी और नफरती पत्रकार भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े नेताओं में से एक को नीचा दिखाने, उनका उपहास करने का प्रयास करते हैं। उन्हें इस्लाम विरोधी बताते हैं और भारतीय राष्ट्रवाद के ‘हिंदुत्व’ सिद्धांत के निर्माता के रूप में खलनायक साबित करने का कुत्सित प्रयास करते है, क्योंकि यह विचार इनके प्रिय भारत के शांतिवादी धर्मनिरपेक्ष नेहरूवादी या गांधीवादी विचार के बिल्कुल विपरीत है। श्री वीर सावरकर के अनुसार हिंदुत्व की वास्तव में परिभाषा क्या थी? उन्होंने विष्णु पुराण को उद्धृत किया, जो भारत की पवित्र भूमि को परिभाषित करता है: उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेःचैव दक्षिणम्। वर्षं तद्भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः॥ (महासागर के उत्तर में, हिमालय के दक्षिण में, भारत नामक भूमि है, जो भरत के वंशजों से आबाद है।)[8] सरल शब्दों में, इस पवित्र भूमि में जन्मा हर आदमी, जो इस भूमि को पवित्र मानता है और यहाँ रहने वाले अपने साथियों के साथ सांस्कृतिक संबंध रखता है, अनिवार्य रूप से भारतीय हैं।
वीर सावरकर ने कहा है कि भारत भूमि के प्रति पवित्र श्रद्धा रखने वाले सभी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और यहां तक कि मुसलमान भी इस भूमि के सच्चे उत्तराधिकारी हैं और उन्हें मोटे तौर पर सनातनी माना जाना चाहिए। सावरकर ने हिंदुत्व की एक सर्वव्यापी परिभाषा दी हैं। इससे केवल मुस्लिम कट्टरपंथी नेताओं को ही परेशानी थी, जो प्रेमपूर्वक एक साथ नहीं रह सकते थे। उन कट्टरपंथी नेताओं ने अंततः पाकिस्तान के रूप में मुसलमानों के लिए एक अलग देश बना ही लिया। आज भी, सावरकर की हिंदुत्व या भारतीयता की परिभाषा उन सभी विभाजनकारी ताकतों के लिए कष्टकारी है। क्योंकि इन विभाजनकारी ताकतों का लक्ष्य भारत को खंडित करना है, जबकि सावरकर के मूल्यों का पालन करने से मुसलमान भी को अलगाववादी ताकतों से दूर हो जाएंगे। उन्हें विष्णु पुराण से प्रेरित आध्यात्मिक भारतीयता के साथ जोड़ देगा, वह भी बिना धर्मांतरण के। इसलिए, स्वाभाविक है कि ये सभी भारत विरोधी पत्रकार सावरकर के खिलाफ दुष्प्रचार करते नजर आते हैं और भारत और भारतीयों को एक साथ रखने की वीर सावरकर की नीति की तीखी आलोचना करते हैं।
लव-जिहाद
ऐसी विभाजनकारी और नफरती रिपोर्टिंग की एक और विशेषता है। वे हर इस्लामिक कारनामे को जिहाद से जोड़कर देखते हैं। वे ‘लव-जिहाद’ से नाराज़ हो जाते हैं। उन्हें मालूम ही नहीं की यह शब्द हमें केरल के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी नेता वी.एस. अच्युतानंदन ने दिया था, न कि किसी हिंदू संगठन ने। ‘लव-जिहाद’ का सबसे बड़ा समर्थक दक्षिण भारत का चर्च है। चर्च ने बाद में इस शब्द का इस्तेमाल ड्रग्स और ज़मीन हड़पने तक के लिए किया। वाशिंगटन पोस्ट भी सोशल मीडिया पर हमास के हमले से जुड़े वीडियो के अनियंत्रित प्रसार को ‘वीडियो-जिहाद’ के रूप में ब्रांड करने से खुद को नहीं रोक सका।[9]
मणिपुर का मुद्दा
मणिपुर को ले कर इस साल जो नफ़रत और शत्रुतापूर्ण रिपोर्टिंग हुई है, उसमें ईसाई अल्पसंख्यकों की कथित दुर्दशा का मुख्य योगदान रहा है, जिसका उपयोग पश्चिम में हर चर्च जाने वाले को भड़काने के लिए किया गया है। मणिपुर मुद्दा वास्तव में क्या है? वास्तविकता यह है कि मणिपुर मुद्दे की शुरुआत सात दशक पुरानी है। इसमें सीआईए और चर्च की साहिशें भी शामिल हैं। मणिपुर हिंसा की शुरुआत मार्च 2023 में उच्च न्यायालय के एक फैसले से शुरू हुई थी, जिसने हिंदू मैतेई जनजातियों को भूमि सुधार अधिनियम के तहत पहाड़ी जिलों में बसने की अनुमति दी थी। अब तक केवल ईसाई नागा और कुकी जनजातियों को ही यह विशेषाधिकार था।[10]
हिंसा तब बढ़ गई जब भारत सरकार ने म्यांमार के साथ अपनी 400 किलोमीटर लंबी खुली सीमा पर बाड़ लगाने और फ्री मूवमेंट को रोकने का फैसला किया। पहले ईसाई कुकी दोनों देशों के बीच स्वतंत्र रूप से घूम सकते थे, जो अब बंद होने वाला था। हिंसा का कारण सरकार का ड्रग्स के खिलाफ युद्ध शुरू करना था। सब जानते हैं कि म्यांमार, थाईलैंड और लाओस के स्वर्ण त्रिभुज (गोल्डन ट्राएंगल) के काफी नजदीक मणिपुर है और यह दुनिया का सबसे बड़ा अफीम उत्पादक क्षेत्र है। भारत सरकार की कार्रवाई में 60,000 करोड़ रुपये की ड्रग्स जब्त की गईं, 20,000 हेक्टेयर से ज़्यादा अफीम बागानों को नष्ट किया गया। 2461 लोगों को गिरफ़्तार किया गया और 2022 से 3066 मामले दर्ज किए गए। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह कहते हैं, “गोल्डन ट्राएंगल से मणिपुर की निकटता ने इसे ड्रग तस्करी के लिए आसान रास्ता बना दिया है। इससे राज्य के अफीम उत्पादन और तस्करी के प्रमुख केंद्र बन जाने का ख़तरा है।”[11]
अब, सवाल है कि इसमें सीआईए और चर्च कहाँ से आ गया? जैसा कि पता चला है, शीत युद्ध के दौरान, सीआईए दुनिया भर में साम्यवाद के प्रभाव को रोकना चाहती थी। इसके लिए उन्हें बहुत ज्यादा पैसे ली जरूरत थी। इसलिए, उन्होंने ड्रग्स के धंधे में उतरने का फैसला किया। जब यह ऑपरेशन सार्वजनिक हुआ, तो इसे ऑपरेशन ग्लैडियो के नाम से जाना गया।[12]
दुनिया के कई सरकारों ने इसके प्रभाव को कम करने की कोशिश की। जब भी यूरोप में राजनीतिक हत्या होती है या ऐसा कोई प्रयास किया जाता है, तो ऑपरेशन ग्लैडियो का प्रभाव साफ़ दिखता है। हाल ही में, स्लोवाकिया के प्रधानमंत्री रॉबर्ट फ़िको की हत्या का प्रयास ऐसा ही मामला है।[13]
पॉल एल. विलियम्स की किताब, ‘ऑपरेशन ग्लैडियो: द अनहोली अलायंस बिटवीन द वेटिकन, सीआईए, एंड द माफिया’ इस पूरी कहानी का पर्दाफ़ाश करती है। मणिपुर के मामले में सबसे दिलचस्प तथ्य गोल्डन ट्राइंगल क्षेत्र में सीआईए और चर्च की भूमिका है।[14] माना जाता है कि मणिपुर की जातीय हिंसा मणिपुर सरकार के ड्रग्स के खिलाफ युद्ध के तहत अपने अफीम के खेतों को नष्ट होने से रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय ड्रग तस्करों की साजिश के कारण भड़की थी। भारत सरकार का अभियान ईसाई कुकी और इस घिनौने व्यवसाय में शामिल विभिन्न चर्च एनजीओ के व्यापार मॉडल को बाधित करता है।
मणिपुर और भारत पर चर्च की कितनी खतरनाक नजर है, यह समझने के लिए हमें नाइजीरिया की कहानी देखनी होगी। यहां साल 2000 से बोको हरम इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा 62000 ईसाइयों की हत्या की गई है।[15] हर दो घंटे में एक नाइजीरियाई ईसाई को मार दिया जाता है।[16] इन तथ्यों से पता चलता है कि ईसाई इको-सिस्टम की नजर नाइजीरिया पर होनी चाहिए, लेकिन वे दुष्प्रचार मणिपुर के बारे में करते हैं। असल में, भारत उन शीर्ष 10 देशों में भी शामिल नहीं है, जिन पर ईसाइयों के साथ भेदभाव करने का आरोप है। फिर भी, मणिपुर सबसे अधिक नकारात्मक खबरों में है।[17]
अभी हाल ही में, यूरोपीय संघ ने दावा किया कि एडवेंटिस्ट डेवलपमेंट एंड रिलीफ एजेंसी के माध्यम से मणिपुर को 230,000 अमेरीकी डॉलर की सहायता की गई थी, जो कि सेवेंथ-डे एडवेंटिस्ट चर्च से जुडी एक एजेंसी है। यह सहायता मणिपुर के “1500 सबसे कमजोर परिवारों” के लिए थी, जो इस महीने की शुरुआत में भारी बारिश से पीड़ित थे।[18] हालांकि, मणिपुर सरकार ने एडवेंटिस्ट डेवलपमेंट एंड रिलीफ एजेंसी की गलत मंशा को भांपते हुए यह सहायता लेने से मना कर दिया।[19]
आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि मणिपुर पर इतना अंतर्राष्ट्रीय ध्यान क्यों है? तो बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के बयान को सुनिए। उन्होंने कहा था, बांग्लादेश और म्यांमार के कुछ हिस्सों को काट कर “ईस्ट तिमोर जैसा एक ईसाई देश” बनाने की अंतर्राष्ट्रीय साजिश हो रही है। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया की कौन सा देश ये साजिश कर रहा है. लेकिन, हाल ही में बांग्लादेश के चुनावों में उन्होंने अमेरिका और सीआईए पर चुनाव में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाया था। अवामी लीग के वित्त और योजना मामलों की उप-समिति के सदस्य स्क्वाड्रन लीडर (सेवानिवृत्त) सदरुल अहमद खान ने खुले तौर पर बताया कि ईसाई कुकी-चिन म्यांमार विद्रोहियों को अमेरिका का मौन समर्थन है। यह स्थिति “न केवल बांग्लादेश और म्यांमार के लिए बल्कि भारत के लिए भी सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील है। और इसमें मणिपुर जैसा पूर्वोत्तर राज्य भी खतरे में है।”[20]
नफ़रत से उन्मादी मीडिया
मीडिया की पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग पर गौर करेंगे तो आप एक समान पैटर्न देख सकते है। इन नफ़रत से भरी रिपोर्टों में कोई ठोस आकड़े नहीं होते। वह जमीनी हकीकत नहीं होती, जो बताती है कि भारत पहले से कहीं अधिक एकजुट हो रहा है, जिसमें वंचितों को लाभ का समान वितरण हो रहा है और विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष कम हो रहे हैं। ऐसे लेख, संपादकीय, विचारों, रिपोर्ट और ब्लॉग में गलत या आधारहीन आंकड़ों का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे दुनिया को यह बताया जा सके कि भारतीय लोकतंत्र खतरे में है, संविधान को खत्म किया जा रहा है, अल्पसंख्यकों को परेशान किया जा रहा है। फिर ऐसी नफ़रत भरी रिपोर्टिंग का इस्तेमाल अलगाववादी विचारों को आगे बढ़ाने के लिए किया जाता है। और अगर सरकार ऐसे नफरती विचारों पर कार्रवाई करें, ऐसे लेखकों, पत्रकारों के वीजा रद्द करें, तो यही लोग असहिष्णुता- असहिष्णुता चिल्लाने लगते हैं।
बहरहाल, ऐसे पत्रकारों का एक समूह है। इसे आप एलीट क्लास या अभिजात्य समूह कह सकते हैं। इनका लेखन और अपने समूह के भीतर भारत विरोधी बातचीत का असर भी आपको डिजटल मीडिया रिपोर्ट्स में दिख जाएगी। अगर आप भारत, हिंदु या हिंदुत्व पर इनके रिपोर्टों को पढ़ें, तो आप पाएंगे की यह सब एक ही समूह की राय के आधार पर लिखे गए है। वे मिल कर लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के खिलाफ इसे अपनी राय के रूप में पेश करते हैं। ऐसे में, यह देखिये कि अगर भारत सरकार ऐसे नफरती पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई करती तो क्या ऐसी ऑनलाइन चर्चा जारी रह पाती? फिर यह भी कि क्या ये मीडिया हाउसेज अमेरिका के भीतर ऐसी ही रिपोर्टिंग कर सकते है?
अमेरिका में फॉक्स न्यूज को वोटिंग मशीन कंपनी मुकदमे में सुनवाई से बचने के लिए डोमिनियन वोटिंग सिस्टम को लगभग 800 मिलियन डॉलर का भुगतान करना पड़ा था। क्यों, क्योंकि फॉक्स न्यूज ने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव के बारे में झूठ को बढ़ावा दिया था।[21] कल्पना कीजिए कि भारत भी अगर ऐसे मीडिया हाउसेज के खिलाफ कार्रवाई करें तो कैसा रहेगा? क्या ब्लूमबर्ग को माफी नहीं मांगनी चाहिए, जब उसने लिखा,“भारत की वोटिंग मशीनें सवाल उठा रही हैं”? क्या इसके खिलाफ भारत सरकार को कार्रवाई नहीं करनी चाहिए?
असल में, ज़्यादातर रिपोर्ट्स की तथ्य भी नहीं जांची जाती है। कल्पना कीजिए कि लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स जैसी एक प्रतिष्ठित संस्था ने एक रिपोर्ट जारी की, जिसमें भारत में जम्मू कश्मीर को ईसाई बहुल राज्य के रूप में दिखाया गया है! जब तथ्य की पड़ताल की गई, तो इसने अपनी मूर्खतापूर्ण त्रुटियों के लिए कोई ज़िम्मेदारी लिए बिना चालाकी से जवाब दे दिया।[22] ऑनलाइन किसी भी रिपोर्ट में इसका उल्लेख नहीं है कि भारत सरकार ने 2024 के आम चुनावों को देखने के लिए 25 देशों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया था।[23]
निष्कर्ष
हम सब जानते है कि पश्चिमी मीडिया भारतीय चुनावों में पैसा क्यों खर्च करती है? यह सीधे-सीधे परिणाम को प्रभावित करने का घिनौना प्रयास करती है। अमोल पार्थ के विश्लेषण से भारत में उनके डिजिटल पाठक की बढ़ती संख्या और सनसनीखेज रिपोर्टिंग के बीच एक मजबूत संबंध का संकेत मिलता है। भारत में उनके पाठक वैश्विक वृद्धि की तुलना में अधिक तेज़ी से बढ़े हैं। “मार्च 2019 और मार्च 2021 के बीच, द न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारतीय बाजार में 22 प्रतिशत की वृद्धि देखी। इसी तरह, वॉल स्ट्रीट जर्नल भी भारत में वैश्विक स्तर पर दोगुनी गति से बढ़ा। मार्च 2021 में, वॉल स्ट्रीट जर्नल की भारत में हिस्सेदारी बढ़कर 2.6 प्रतिशत हो गई, जो मार्च 2019 में 1.99 प्रतिशत थी। यही हाल टाइम मैगज़ीन का भी है। रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि मार्च 2019 और मार्च 2021 के बीच, बीबीसी ने भारत में 173 प्रतिशत की वृद्धि की, जो इसकी वैश्विक वृद्धि 35 प्रतिशत से लगभग पाँच गुना अधिक है।”
जांच का विषय यह है कि कहीं पूरे मुस्लिम पीड़ितता नैरेटिव को प्रचारित करने का प्रयास इसलिए तो नहीं किया जा रहा कि मध्य पूर्व के कई इस्लामिक देशों के साथ भारत के अच्छे संबंधों को खराब किया जा सके? कतर में 6000 भारतीय कंपनियां चल रही हैं। क़तर की कुल 27 लाख आबादी में 700,000 भारतीय हैं। कुवैत की कुल 47 लाख आबादी में लगभग दस लाख भारतीय हैं, जबकि सऊदी में 745 भारतीय कंपनियां हैं और लगभग 22 लाख भारतीय हैं। इसके अलावा, यूएई में 34 लाख भारतीय काम करते हैं और भारतीय कंपनियों ने वहां 85 बिलियन डॉलर का निवेश किया है।
ये सभी देश अपने लिए अनाज, जैसे गेहूं, चावल और सब्जी आदि की लगभग 50% जरूरतों के लिए भारत पर निर्भर हैं। क्या इस तरह की झूठी रिपोर्टिंग से इतने सारे लोगों की जान और माल खतरे में नहीं पड़ सकती है? हालांकि यह अच्छी बात है कि इस्लामिक देशों ने इस तरह के दुष्प्रचारों पर ध्यान नहीं दिया है। पीएम मोदी को दिए गए 13 सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से छह सऊदी अरब से लेकर फिलिस्तीन जैसे कट्टर इस्लामी देशों से हैं। यहां तक कि सीरिया के विदेश मंत्री फैसल मेकदाद ने भी अपने देश के लिए भारत के समर्थन की सराहना की है। मेकदाद ने कहा: ” ऐसे समय में जब पश्चिमी ताकतों के लिए मानवता का कोई मतलब नहीं रह गया है, हमने भारतीय विदेश नीति में सभी मानवीय अवधारणाओं को मजबूत पाया। यह केवल सीरिया के लिए ही नहीं बल्कि किसी भी पीड़ित देश के लिए राहत की बात है।”[24]
ऐसी नकारात्मक रिपोर्टिंग ने एक काम जरूर किया है। इसने अमेरिकी कैंपस में हिंदुत्व का एक नकारात्मक अर्थ पैदा कर दिया है, जिससे भारतीय छात्रों का जीवन कठिन हो गया है। ये विभाजनकारी ताकतें हिंदुत्व को जायोनिज्म के सामान साबित करने का कुकृत्य कर रहे हैं। जैसा कि यूसी डेविस स्कूल में सभी भारतीय अमेरिकियों के सिर के पीछे एक लक्ष्य पेंट कर दिया गया है।[25]
अमेरिकी मतदाताओं को अपने यहाँ की चुनावी प्रक्रिया में अन्य देशों का हस्तक्षेप पसंद नहीं है। ‘अमेरिकन्स फॉर पब्लिक ट्रस्ट’ का मामला देखें। स्विस अरबपति हैंसजॉर्ग वाइस 243 मिलियन डॉलर के साथ अमेरिकी चुनावों को प्रभावित करने का प्रयास कर रहे हैं। इस पैसे को उसने एक मनी ग्रुप सिक्सटीन थर्टी फंड में डाल दिया है। इस समूह ने पिछले दशक में 25 राज्यों में चुनावी मुद्दे पर अभियान चलाने के लिए लगभग 100 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। सवाल है की वाइस की इस सब में क्या दिलचस्पी है? वाइस के अपने ही शब्दों में, वे “प्रगतिशील राजनीति के साथ अमेरिकी संविधान की पुनर्व्याख्या चाहते हैं।”
और सबसे दिलचस्प बात यह है कि कोई भी अमेरिकी मीडिया हाउस अपनी नाक के नीचे चल रहे इस भयंकर और खतरनाक साजिश के बारे में न लिख रहा है, न बोल रहा है। लेकिन, वे अपनी बेतुकी और नफरती रिपोर्टिंग के साथ भारतीय लोकतंत्र के बारे में दुष्प्रचार करते जरूर दिख जाएंगे।
ईस विषय पर ऑस्कर वाइल्ड ने एक दम सही कहा था, “सत्य का पता लगाना ही समझदार होना है।”
संदर्भ
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[3] Douglass, Christine. 2024. “80 signatories from 10 countries issue formal complaint to UN Human Rights Council over Sharia abuse of women.” Jihad Watch; https://www.jihadwatch.org/2024/03/80-signatories-from-10-countries-issue-formal-complaint-to-un-human-rights-council-over-sharia-abuse-of-women
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[6] FP Staff. 2022. “How a recent study shows inherent biases of Western media when it comes to reporting about India.” Firstpost. https://www.firstpost.com/india/how-a-recent-study-shows-inherent-biases-of-western-media-when-it-comes-to-reporting-about-india-10394641.html
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[10] Saikia, Jaideep. 2023. “FirstPost.” First Post. https://www.firstpost.com/opinion/manipur-violence-how-christianisation-widened-socio-cultural-gap-between-meiteis-of-valley-and-hill-tribes-12550522.html.
[11] Singh, N Biren. 2024. “BJP’s War on Drugs.” Twitter/X. https://x.com/NBirenSingh/status/1783213676687942065.
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[14] Williams, Paul. 2015. “Operation Gladio: The Unholy Alliance Between the Vatican, the CIA, and the Mafia.” Google Books. https://archive.org/details/OperationGladioTheUnholyAllianceBetweenTheVaticanTheCIAAndTheMafia/page/n47/mode/2up?view=theater
[15] Genocide Watch. 2024. “Nigeria Genocide Emergency January 2024.” Genocide Watch. https://www.genocidewatch.com/single-post/nigeria-genocide-emergency-january-2024
[16] Open Doors. 2024. “Every 2 hours, a Nigerian Christian is killed for their faith.” Open Doors Philippines. https://www.opendoors.ph/en-US/news/latest/2024-02-21-every-2-hours-a-nigerian-christian-is-killed-for-t/.
[17] Casper, Jayson. 2024. “The 50 Countries Where It’s Hardest to Follow Jesus in 2024 | News & Reporting.” Christianity Today. https://www.christianitytoday.com/news/2024/january/christian-persecution-2024-countries-open-doors-watch-list.html.
[18] Opindia Team. 2024. “EU Aid to Manipur.” Opindia. https://www.opindia.com/2024/05/eu-announces-250000-aid-to-christian-organisation-in-name-of-manipur-disaster-relief-state-govt-says-not-required/.
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[20] Maheshwari, Dhairya. 2024. “Decoding Shaikh Hasina’s warning…” Sputnik India. https://sputniknews.in/20240527/decoding-sheikh-hasinas-big-warning-on-balkanising-bangladesh-and-myanmar–7461109.html.
[21] Bauder, David. 2023. “Fox News penalized…” AP News. https://apnews.com/article/fox-news-dominion-lawsuit-trial-trump-2020-0ac71f75acfacc52ea80b3e747fb0afe
[22] Surana, Satyam. 2024. “Silly LSE.” Twitter/X. https://x.com/SatyamSurana/status/1781290178042011873
[23] Srivastava, Ritesh K. 2024. “BJP Invites 25 Nations To Observe Campaigning And Polls In India: 10 Points.” Zee News. https://zeenews.india.com/india/bjp-invites-25-nations-to-observe-campaigning-and-polls-in-india-10-points-2739179.html.
[24] Sibal, Sidhant. 2022. “Exclusive | India stood with us in difficult times: Syrian foreign minister Fayssal Mekdad.” WION. https://www.wionews.com/india-news/exclusive-india-stood-with-us-in-difficult-times-syrian-foreign-minister-fayssal-mekdad-535898
[25] Hindu on Campus. 2024. “Hindu on Campus.”