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रस्सी जल गयी, ऐंठन नहीं गया: भारत की सफलता से ब्रिटिशों को क्यों मिर्ची लगती है?

भारत की अंतरिक्ष या आर्थिक क्षेत्र में उपलब्धियों से ब्रिटेन के लोग और वहां की मीडिया आखिर जलती क्यों है, जबकि ब्रिटेन खुद आज दुनिया में अपनी हैसियत खोता जा रहा है। इसका परिणाम यह हो सकता है कि भारत भी अपनी तरफ से ब्रिटेन को आने वाले समय में करारा जवाब दे......

  • अंतरिक्ष, रक्षा और बुनियादी ढांचा के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर ब्रिटिश मीडिया हमेशा से नकारात्मक प्रतिक्रिया देता रहा है। यह भारत के प्रति ब्रिटेन की औपनिवेशिक काल से चली आ रही नफ़रत का प्रतीक है।
  • भारत एक समय ब्रिटेन का उपनिवेश था। इस कारण से ब्रिटेन के कई लोग और मीडिया भी यह स्वीकार नहीं कर पाता कि भारत कैसे आज एक ताकतवर वैश्विक शक्ति बन चुका है। इस कारण से ये सब भारत की प्रगति पर तीखी और आलोचनात्मक टिप्पणियां करते रहते हैं।
  • माइकल वॉन और पियर्स मॉर्गन जैसे मशहूर ब्रिटिशर्स भारत की पक्षपातपूर्ण और निराधार आलोचनाएं करते हैं। वे भारत पर खेल और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अपनी आर्थिक शक्ति का अनुचित तरीके से उपयोग करने का आरोप लगाते हैं।
  • आज कई परियोजनाओं और सहायता कार्यक्रमों पर भारत भारी राशि खर्च करता है। ब्रिटिश मीडिया इसकी आलोचना करता है। लेकिन, यह नहीं देखता कि ब्रिटेन ने कैसे भारत का औपनिवेशिक शोषण किया था और वहां से भारी मात्रा में संपत्ति की लूट की थी।
  • ब्रिटेन का यह नकारात्मक रवैया आगे भारत-ब्रिटेन के बीच आर्थिक साझेदारी और रणनीतिक संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है। आज भारत वैश्विक मंच पर लगातार महत्वपूर्ण होता जा रहा है, जबकि ब्रिटेन की हैसियत कमजोर होती जा रही है।

उधर भारतीय अंतरिक्ष यान जब चंद्रमा की सतह पर उतरता है और इधर ब्रिटिश मीडिया के सीने पर सांप लोटने लगता है। ब्रिटिश मीडिया कहता है,”उनकी हिम्मत कैसे हुई?” भारत जब एक परमाणु हमला करने वाली पनडुब्बी बनाता है, तब ब्रिटिश लोग और मीडिया इस बात से नाराज होते हैं कि उनका गुलाम रह चुका एक देश कैसे इतना मजबूत हथियार बना रहा है। मंगलयान जब मंगल पर पहुंचता है, तो ब्रिटिश इस बात का रोना रोते हैं कि उनके ‘सहायता’ के पैसे का सही उपयोग नहीं किया जा रहा है। भारत जब दुनिया की सबसे बड़ी मूर्ति बनाता है, तो ब्रिटिश मीडिया की प्रतिक्रया होती है कि एक विकासशील देश “एक महंगी और झूठे गर्व वाली परियोजना” पर पैसा खर्च कर रहा है।[1]

भारतीय की बड़ी रक्षा और अंतरिक्ष परियोजनाओं पर ब्रिटेन में हमेशा कड़वी टिप्पणियां और आलोचनाएं होती रही है। यह शायद इसलिए भी है क्योंकि इन क्षेत्रों में कभी ब्रिटेन का दबदबा था। लेकिन आज भारत आसमान की बुलंदियों को छू रहा है। अंतरिक्ष की ओर भारत के बढ़ते कदमों को देख कर ब्रिटेन को आज अपनी घटती हुई हैसियत से जलन होती है।

भारत अब ब्रिटिश साम्राज्य का उपनिवेश नहीं है और न ही उनका गुलाम है, लेकिन ऐसे कई ब्रिटिश नागरिक और मीडिया घराने हैं, जो इस सच्चाई को स्वीकार नहीं पा रहे हैं। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान माइकल वॉन का उदाहरण देखें। जून 2024 में होने वाले टी20 विश्व कप के फाइनल में भारत के आने पर वे अपनी निराशा को छिपा नहीं पाए। उन्होंने अपमानजनक दावा किया कि विश्व कप भारत के लिए पहले से ही तय था। उन्होंने कहा, “क्या यह भारत का ही टूर्नामेंट है? हाँ सचमुच, यह उनका ही टूर्नामेंट है। वे जब चाहें खेल सकते हैं। उन्हें पता होता है कि उनका सेमीफाइनल कहां होने वाला है। वे सुबह खेलते हैं, ताकि भारत में लोग रात में उनका खेल देख सकें।”[2]

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भारत अपने पैसे के बल पर टीम इंडिया को जीतने में मदद कर रही थी। उनका कहना था,”मुझे पता है कि क्रिकेट की दुनिया में पैसा एक बड़ी भूमिका निभाता है। दो देशों के बीच होने वाली सीरिज में तो यह बात समझ आती है। लेकिन, जब बात विश्व कप की हो, तो आईसीसी को थोड़ा निष्पक्ष होना चाहिए। यह खेल सिर्फ भारत के लिए इसलिए नहीं होना चाहिए कि वो क्रिकेट पर बहुत पैसा खर्चते है। विश्व कप में किसी एक टीम के प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति या झुकाव ठीक नहीं है। यह टूर्नामेंट पूरी तरह से भारत के लिए आयोजित किया गया है।”

मॉर्गन का गुस्सा

9 जुलाई, 2024 को रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने आधिकारिक तौर पर रूस के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू से भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को सम्मानित किया। पुतिन ने रूसी-भारतीय संबंधों को “विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी” तक ले जाने के लिए मोदी की प्रशंसा की। रूसी राष्ट्रपति ने मोदी के कार्यकाल में व्यापार, अर्थशास्त्र, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष रिसर्च में बड़े पैमाने पर परियोजनाओं को शुरू करने और उस पर खर्च करने के महत्व पर प्रकाश डाला। भारत की इस अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि से एक बार फिर ब्रिटिश लोग और मीडिया अशिष्टतापूर्ण व्यवहार दिखाने लगा।[3]

ब्रिटिश पत्रकार पियर्स मॉर्गन ने एक्स पर टिप्पणी की: “शर्म आनी चाहिए, @narendramodi।”[4]

सब जानते हैं कि मॉर्गन एक निष्पक्ष पत्रकार नहीं हैं। मोदी के प्रति उनकी नफरत और घृणा जगजाहिर है। मॉर्गन हमेशा से एजेंडाधारी पत्रकार रहे है। वे अपने राजनीतिक मित्रों के हितों के लिए पत्रकारिता करते रहे है। वे इस सच्चाई को बर्दाश्त नहीं कर सकते कि दो बड़े देशों और उनके नेताओं को अपने दीर्घकालिक संबंधों को बनाए रखने की आवश्यकता है। मॉर्गन के इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए भू-राजनीतिक विशेषज्ञ और रक्षा लेखक वैभव सिंह ने कहा कि पश्चिम जगत ने पुतिन के लिए मुसीबतें खड़ी की है। रूस के घर तक युद्ध पहुंचा दिया है। ऐसे में, रूस को किसी भी अन्य देश की तरह अपनी रक्षा करने का अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अपने रणनीतिक सहयोगी रूस के साथ खड़े होने का पूरा अधिकार है।

वैभव सिंह ने यह भी पोस्ट किया: “इस सदी का सबसे बड़ा युद्ध अपराधी बराक ओबामा है। ओबामा ने सीरिया, इराक, लीबिया और अन्य देशों में शुरू किए खूनी युद्धों में लाखों लोगों को मार डाला। ओबामा की नीति ने करोड़ों लोगों के जीवन को बर्बाद कर दिया। फिर भी, ओबामा को ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। ब्रिटेन ने इसका स्वागत किया, ताली बजाई। उसके द्वारा शुरू हर युद्ध में ब्रिटेन ने साथ दिया। ब्रिटेन खुद इतिहास में लाखों लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार है। ‘यूनियन जैक’ को हर जाति, नस्ल और धर्म के लोगों के खून से लथपथ सिर वाले झंडे से बदल दिया जाना चाहिए। इस दुनिया में किसी से भी सवाल करने का नैतिक अधिकार ब्रिटेन के पास नहीं है।”[5]

ब्रिटेन के ज्यादातर पत्रकारों के दिल में भारत के खिलाफ जहर भरा हुआ है। मॉर्गन भी इससे बचे नहीं है। साल 2016 में, भारत द्वारा रियो ओलंपिक में दो पदक जीतने के जश्न की आलोचना करते हुए उन्होंने एक्स पर पोस्ट किया: “1.2 बिलियन लोगों वाला देश दो पदकों का जश्न मना रहा है। यह कितना शर्मनाक है?”[6] वे एक भारतीय की पोस्ट का जवाब दे रहे थे, जिसमें दो रजत पदक विजेताओं साक्षी मलिक और पीवी सिंधु भारत में शानदार स्वागत किया गया था।

उनके टीवी शो पर एक बार एक मेहमान ने कहा कि ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल ने 1943-44 में एक सुनियोजित अकाल में लाखों भारतीयों को मार डाला था।[7] मॉर्गन ने चर्चिल के इस हत्यारी नीति और कुकृत्य का भी समर्थन किया है।

पूरी दुनिया जानती है कि बंगाल का अकाल मानव निर्मित था और चर्चिल अकेले इसके जिम्मेदार थे। बंगाल प्रेसीडेंसी में लाखों भारतीयों को इसलिए चावल नहीं मिल सका क्योंकि चर्चिल ने पूरा चावल यूरोप भेज दिया था। इस कारण से बंगाल अकाल का शिकार हो गया। आधिकारिक ब्रिटिश रिपोर्टों के अनुसार तीस लाख से अधिक लोग इस अकाल में मरें, जबकि अनुमान है कि कि यह संख्या 70 लाख तक हो सकती है। यह सब चर्चिल के नस्लवादी विचारधारा के कारण हुआ। लेकिन, मॉर्गन का चर्चिल के प्रति अटूट समर्थन उनकी कट्टरता और भारत के प्रति नफरत को ही उजागर करता है।

भुखमरी से जूझते ब्रिटेन की अकड़

1947 में ब्रिटेन को भारत से भगा दिया गया। इसके बाद भी ब्रिटेन यह जताता रहा कि उसे भारत से प्रेम है। उनका तर्क था कि ब्रिटेन के लिए भारत पहले प्रेम की तरह है, जिसे कभी भी भूला नहीं जा सकता।

लेकिन यह सब दिखावा था और अब वह मुखौटा (भारत के प्रति प्रेम) उतर चुका है। जब भारतीय कंपनियों ने ब्रिटिश उद्योग जगत के रत्नों (कोरस, लैंड रोवर, जगुआर और ईस्ट इंडिया कंपनी!) का अधिग्रहण करना शुरू किया, ब्रिटिश लोगों और मीडिया के दिल में भारतीयों के लिए औपनिवेशिक घृणा फिर से प्रकट हो गयी। जबकि तथ्य यह है कि आज भारत ब्रिटेन में सबसे बड़े निवेशकों में से एक है, जो हजारों स्थानीय नौकरियां दे रहा है।

आज ब्रिटेन की आर्थिक हैसियत गिर रही है। वहां गरीबी और भुखमरी आम बात है। ऐसी स्थिति में, भारत समृद्धि की ओर निरंतर बढ़ता जा रहा है। आज भारत 6 बिलियन डॉलर से अधिक की सहायता ब्रिटेन को देता है (जिसमें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय को लाखों पाउंड का अनुदान भी शामिल है)। आज लंदन का प्रभाव क्षेत्र सिमट रहा है। आज वहां की रॉयल नेवी को 19 जहाजों की तटीय शक्ति तक सीमित किया जा रहा है, जबकि भारत 200 जहाजों वाली नौसेना बना रहा है। कुछ साल पहले, जब रॉयल नेवी का नया विमानवाहक पोत न्यूयॉर्क पहुंचा, तो रूस के आरटी न्यूज चैनल[8] ने सवाल उठाया,”क्या ब्रिटेन को किसी नए विमानवाहक पोत की ज़रूरत भी है? क्या उनकी नौसेना सचमुच अपने नाविकों को समय पर पर्याप्त वेतन दे सकने की हालत में है?”

आज भारत और ब्रिटेन के बीच संबंध राजनीतिक न हो कर आर्थिक कारकों पर अधिक निर्भर है। ब्रिटेन के मुकाबले जैसे-जैसे भारत की आर्थिक शक्ति बढ़ी है, भारत राजनीतिक रूप से भी ताकतवर हुआ है। आज भारत, ब्रिटेन के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है न कि ब्रिटेन भारत के लिए।  इससे ब्रिटिश के भीतर एक अलग तरह की भावना पनपी है।

जब से ब्रेक्सिट (यूरोपियन यूनियन से ब्रिटेन अलग हुआ) की घटना हुई, उसके बाद से ही बदलती दुनिया में ब्रिटेन की नई भूमिका को लोग उत्सुकता से देखने लगे। इस सन्दर्भ में, ब्रिटेन और भारत के बीच संबंध को एक टेस्ट केस के तौर पर देखा गया। भारत के बढ़ते महत्व का मतलब है कि ब्रिटेन को इस रिश्ते को सावधानी से आगे बढ़ाना होगा। भारत आज आर्थिक ताकता बना है और ब्रिटेन में आर्थिक-राजनीतिक ताकत अब ढलान पर है। जाहिर है, इस सब से आगे भारत को और भी अधिक आर्थिक और राजनीतिक लाभ मिलेगा।

ब्रिटिश सहायता का मिथक

भारत ने 2015 में ही कहा था कि उसे ब्रिटेन से आर्थिक सहायता नहीं चाहिए। लेकिन ब्रिटेन की सहायता व्यय निगरानी संस्था की समीक्षा में पाया गया है कि 2016 और 2021 के बीच, ब्रिटेन ने भारत को सहायता के रूप में 2.3 बिलियन पाउंड भारत को दिए।

साल 2012 में, भारत के तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने ब्रिटेन से मिलने वाले वार्षिक 280 मिलियन पाउंड की सहायता को “ऊँट के मुँह में जीरा” कहकर मज़ाक उड़ाया था। साल 2023 के लिए, भारत के लिए निर्धारित कुल ब्रिटिश ‘सहायता’ 57 मिलियन पाउंड थी। यह सचमुच “ऊँट के मुँह में जीरा” ही है, क्योंकि आज भारत सरकार जितनी विदेशी सहायता प्राप्त करती है, उससे कहीं अधिक विदेशी सहायता दूसरे देशों को देती है।[9]यह भी अजीब है कि 2011 में, मुखर्जी और अन्य भारतीय मंत्रियों ने ब्रिटेन से मिलने वाली सहायता को बंद करने की कोशिश की, लेकिन ब्रिटेन ने पैसे लेने के लिए भारत से विनती की। इसके अलावा, सार्वजनिक हुए एक दस्तावेज के अनुसार, वरिष्ठ भारतीय राजनयिक निरुपमा राव ने ब्रिटेन की सहायता वितरण एजेंसी द्वारा भारतीय गरीबी के नकारात्मक प्रचार के कारण “1 अप्रैल, 2011 से कोई भी ब्रिटिश सहायता नहीं लेने” का प्रस्ताव रखा था। हालांकि, लंदन ने दिल्ली से अनुरोध किया कि वह पैसे लेता रहे, क्योंकि कार्यक्रम को रद्द करने से ब्रिटेन को “गंभीर राजनीतिक शर्मिंदगी” उठानी पड़ेगी।[10]

ब्रिटेन भारत को सहायता देना चाहता है, इसलिए नहीं कि भारत को इसकी ज़रूरत है, बल्कि इसलिए कि ब्रिटिश इस सहायता के दिखावे को जारी रख सके। वह दुनिया को बता सके कि वे एक महान शक्ति हैं, जो भूरे लोगों को सभ्य बनाना चाहते है। आप जानते ही है कि ब्रिटिशों का मानना है कि “श्वेत व्यक्ति अश्वेतों का बोझ उठाते हैं।”

सहायता की राजनीति

आज ब्रिटेन की मजबूरी है कि वह भारत में अपने तथाकथित सहायता कार्य को जारी रखे। सच्चाई यह है कि ब्रिटेन के पास व्यापार के माध्यम से भारत को देने के लिए कुछ नहीं है। इसलिए सहायता के नाम पर थोड़ा-बहुत पैसा दे कर वे दुनिया को दिखाना चाहते है कि हम भारत की सहायता कर रहे हैं। ब्रिटेन के पूर्व विकास सचिव एंड्रयू मिशेल के अनुसार, ब्रिटिश सहायता का ध्यान शिक्षा या स्वास्थ्य के बजाय सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर होगा।

यानी, ब्रिटिश सहायता के पैसे को ऐसी योजनाओं में लगाया जा रहा है, जो लॉबिंग जैसी लगती हैं।

भारत में गरीबों की सहायता कर के भी ब्रिटेन एक आत्मसुख पाना चाहता है। सड़कों पर सामान बेचने वाले दुबले-पतले, गरीब बच्चों के बीच काम करने वाले ब्रिटिश नागरिकों की तस्वीरें ब्रिटेन में खूब प्रचारित किये जाते हैं। वे यह जताना चाहते हैं कि भारत उनका गुलाम बन कर ही ठीक था और भारतीय शासन करने के लिए अयोग्य है।

एक और रहस्य यह भी है कि भारत में ब्रिटिश मूल नागरिकों की मौजूदगी कम खतरनाक नहीं है। वे यहां आ कर मुखबिरी और जासूसी का काम भी करते हैं। भारत के किसी एनजीओ में नौकरी करना ब्रिटिश खुफिया एजेंटों के लिए सुरक्षित तरीका होता है। साथ ही, ऐसे समय में जब ब्रिटेन (पूर्व फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोलस सारकोजी के शब्दों में) एक औद्योगिक बंजर भूमि बन गया है, ऐसे सहायता कार्यक्रम ब्रिटेन के बहुत से लोगों को रोजगार देते हैं।[11]

ब्रिटेन को भारत के गरीबों को ले कर चिंतित होने की ज़रूरत नहीं है। ब्रिटेन के पास अपने कई सारे मुद्दे हैं, जिस पर उन्हें चिंता करनी चाहिए। द गार्जियन ब्रेडलाइन ब्रिटेन सीरिज[12] में बताया गया है कि बढ़ती जीवन लागत (विशेष रूप से भोजन और बच्चों की देखभाल), कल्याण कार्यक्रम में कटौती और पहले से मुफ़्त सेवाओं (जैसे होमवर्क क्लब) के लिए अब लगने वाले पैसे ने ब्रिटेन के लोगों को बहुत ज़्यादा तनावग्रस्त कर दिया है। ऐसे प्रभावित लोगों में कम आय वाली माएं भी हैं, जो अपने बच्चों को अच्छा भोजन देने के लिए दिन में एक बार खाती हैं और शनिवार को कभी नहीं खाती हैं। उदाहरण के लिए, वहां से ऐसी खबरें आती है कि सुपरमार्केट में “छूट वाली सब्जियों के लिए लोग लड़ते हैं।”

और हाँ, इस कहानी मे हम “शांतिप्रिय लोगों” की भूमिका की चर्चा करना तो भूल ही गए! ब्रिटेन में इस्लामी कट्टरपंथियों की संख्या में भारी वृद्धि हो रही है। ये लोग वहां के श्वेत मध्यम और निम्न-वर्ग के पड़ोसियों पर हमला करते हैं और बाल यौन शोषण गिरोह भी चलाते है। इनमें ज्यादातर पाकिस्तानी प्रवासी शामिल है।

दूसरी तरफ, मजबूत होती अर्थव्यवस्था के कारण भारत में हर साल कम से कम 5 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा से बाहर निकल रहे हैं। भारतीयों की कड़ी मेहनत से भारत से गरीबी दूर हो रही है। नई नौकरियां और नए शहर बन रहे हैं। यह सब देखते हुए, ब्रिटेन अपने मित्र देश, जैसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड, नॉर्वे, जर्मनी और नीदरलैंड के सहयोग से यह दुष्प्रचार करता आ रहा है कि भारत को पश्चिमी सहायता की आवश्यकता है। उभरते भारत की कहानी पश्चिमी दुष्प्रचार से मेल नहीं खाती। कुछ ब्रिटिश राजनेताओं ने ब्रिटिश सहायता की आलोचना भी की है। टोरी राजनेता फिलिप डेविस ने कहा: “हम एक ऐसे देश में पैसा खर्च कर रहे हैं, जिसके पास न केवल अपना खुद का अंतरिक्ष कार्यक्रम है, बल्कि वह अपना स्वयं का विदेशी सहायता कार्यक्रम भी विकसित कर रहा है। जनता न केवल इससे तंग आ चुकी है, बल्कि नाराज भी है। यह पूरी तरह से अनुचित और मूर्खतापूर्ण है।”

जब प्रणब मुखर्जी ने लंदन को उंगली दिखाई थी तब डगलस कार्सवेल ने कहा: “तथ्य यह है कि भारत की अर्थव्यवस्था हमारी अर्थव्यवस्था से कहीं अधिक तेजी से बढ़ रही है। हमें उनके साथ मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करना चाहिए और उनसे सीखने की कोशिश करनी चाहिए।”[13] ब्रिटेन नैतिकता की बात करने का हकदार नहीं है। एक समय भारत की कमजोर आर्थिक स्थिति के लिए ब्रिटेन ही जिम्मेदार रहा था। ब्रिटेन के लालची उपनिवेशवाद ने भारत को 1700 के दशक में दुनिया के सबसे अमीर देश से 1947 तक सबसे गरीब देशों में से एक बना दिया था। 190 वर्षों के भीतर, अंग्रेजों ने युद्धों, जनसंख्या विस्थापन और कृत्रिम रूप निर्मित अकालों के माध्यम से कम से कम 6 करोड़ भारतीयों को मार डाला था।

मुंबई में रहने वाले लेखक और इतिहासकार अमरेश मिश्रा ने अपनी पुस्तक ‘वॉर ऑफ सिविलाइजेशन: इंडिया एडी 1857’ में तर्क दिया गया है कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद, ब्रिटिश अफसरों ने हत्याओं (जिसे वे “अनकहा नरसंहार” कहते हैं) का दौर शुरू कर दिया था। इस कारण से, अगले दस वर्षों में लगभग 10 मिलियन लोगों की मृत्यु हुई।[14]

अंग्रेजी लेखक चार्ल्स डिकेंस ने 1857 के युद्ध के बाद कहा: “काश मैं भारत में कमांडर-इन-चीफ होता। मैं ईश्वर की अनुमति से उस पद पर नियुक्त होने का अर्थ यह मानता हूं कि मुझे भारतीय नस्ल को खत्म करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए।” फिर, ब्रिटेन की उदारवादी अखबार द गार्जियन के दृष्टिकोण को कोई कैसे भूल सकता है? इसने नरसंहार के बारे में लिखा, “हमें पूरी उम्मीद है कि इस तरह से सिखाया गया भयानक सबक कभी नहीं भुलाया जाएगा।”

जाहिर है, अभी अंग्रेजों को बहुत सारे सवालों का जवाब देना है। फिर भी वे अपने नस्लवाद पर टिके हुए हैं।

ब्रिटेन को क्या नुकसान हो सकता है

आज ब्रिटेन का नस्लवाद सोशल मीडिया के कारण जगजाहिर हो चुका है। इसे छिपाने का कोई तरीका नहीं है। सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म इसे दूर-दराज़ के शहरों और गांवों तक पहुंचाते हैं। यह ब्रिटेन के लिए अशुभ है, क्योंकि भारत का राजनीतिक नेतृत्व और प्रभावशाली मध्यम वर्ग, दोनों ही उग्र राष्ट्रवादी हैं। पियर्स मॉर्गन जैसे ब्रिटिश पत्रकारों का नंगा नस्लवाद और हिंदुओं के लिए घृणा को आज सब देख पा रहे है और इसके परिणामस्वरूप ब्रिटिश भारत में अवसर खो सकता हैं।

1979 में जगुआर लड़ाकू विमान के बाद से, ब्रिटेन कोई भी बड़ा रक्षा सौदा भारत से लेने में विफल रहा है। और अगर अब अभी ब्रिटेन नहीं सुधरा तो उसे और आर्थिक नुक्सान उठाना पड़ सकता है।[15]:

  • भारत के बढ़ते उपभोक्ता बाजार तक पहुंच। भारत का मध्यम वर्ग 2019 में 30 मिलियन से 2030 तक 60 मिलियन और 2050 तक लगभग 250 मिलियन हो सकता है।
  • कम व्यापार बाधाएं और शुल्क: भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) भारत को ब्रिटेन के निर्यात पर शुल्क हटा देगा, जिससे ब्रिटिश सामान अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाएंगे। अभी, भारत में आयातित ब्रिटिश सामानों पर औसत टैरिफ 6% है, जबकि ब्रिटेन में आयातित भारतीय सामानों पर यह केवल 4.2% है।
  • व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं का विविधीकरण। भारत के साथ आर्थिक संबंधों को मजबूत करने से ब्रिटेन को चीन पर अपनी निर्भरता कम करने और अपने व्यापार संबंधों में विविधता लाने में मदद मिलती है. इससे इसकी आपूर्ति श्रृंखला वैश्विक नुकसान के खिलाफ अधिक लचीली बनती है।
  • भारत-प्रशांत क्षेत्र में ब्रिटेन की रणनीतिक स्थिति को मजबूत करना। भारत के साथ एफटीए मुक्त व्यापार के लिए प्रतिबद्ध देशों के नेटवर्क के बीच एक लीडर के रूप में ब्रिटेन की भूमिका को मजबूत करने और एक प्रमुख इंडो-पैसिफिक शक्ति के साथ संबंधों को मजबूत करने में मदद करेगा।

यह ब्रिटेन की मजबूरी है कि वह भारत के साथ अपनी आर्थिक साझेदारी को मजबूत करें, क्योंकि इसमें उसका ही फ़ायदा है। उसे भारत जैसा बड़ा बाजार मिलेगा। यहाँ व्यापार के रास्ते में बाधाएं कम है। ब्रिटेन में भारत द्वारा अधिक निवेश और नौकरियों के साथ ब्रिटेन की आर्थिक और वैश्विक हैसियत ही बढ़ेगी। एक बहुत बड़े बाजार के रूप में, भारत को ब्रिटेन की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, अपने यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों द्वारा तिरस्कृत किए जाने के बाद, ब्रिटेन को भारत की आवश्यकता जरूर है। मॉर्गन पियर्स जैसे ‘कीबोर्ड मंकीज’ (इंटरनेट पर खाली जुबान चलाने वाले) को भारत के प्रति बहुत अधिक आक्रामक होने से पहले यह बात याद रखनी चाहिए।

संदर्भ 

[1] That’s rich! We gave £1billion aid to India as they built £330million statue  | Daily Mail Online; https://www.dailymail.co.uk/news/article-6348295/Thats-rich-gave-1billion-aid-India-built-330million-statue.html

[2] T20 World Cup is Purely Set up For India’: Michael Vaughan Slams ICC, Adam Gilchrist Claims Cricket ‘Compromised’ – News18; https://www.news18.com/cricket/t20-world-cup-is-purely-set-up-for-india-michael-vaughan-slams-icc-adam-gilchrist-claims-cricket-compromised-8949086.html

[3] PM Modi awarded with Russia’s highest civilian honour (ddnews.gov.in); https://ddnews.gov.in/en/pm-modi-awarded-with-russias-highest-civilian-honour/

 

[4] Piers Morgan on X: “Shame on you @narendramodi 👎👎👎” / X; https://x.com/piersmorgan/status/1810954214421496257

[5] Vaibhav Singh on X: “Biggest War Criminal of this Century @BarackObama who killed Millions & Destroyed Lives of Tens of Millions in his Blood Thirsty Wars of Syria, Iraq, Libya & Countless other Regions & Countries was Awarded “Nobel Peace Prize” while You Clapped & Cheered for him. Every War he” / X; https://x.com/vaibhavUP65/status/1810987148385849706

[6] Piers Morgan on X: “Country with 1.2 billion people wildly celebrates 2 losing medals. How embarrassing is that? https://t.co/FYSBM7ErAf” / X; https://twitter.com/piersmorgan/status/768352437166112768

[7] Eminent Intellectual on X: “@piersmorgan @narendramodi If a racist British prick is unhappy with Modi, then I have to say, without knowing the details, Mr Modi has done something very very good for India. Thank you @narendramodi 🙏 https://t.co/dlNG55a0rr” / X; https://x.com/total_woke_/status/1811029940474728544

[8] Britain’s biggest warship parks off the US coast, looking just a little bit needy — RT; https://www.rt.com/op-ed/442041-britain-military-us-warship/

[9] UK still gives aid to India dressed up as ‘business investments’ rather than direct handouts: Britain watchdog – Times of India (indiatimes.com); https://timesofindia.indiatimes.com/world/uk/uk-still-gives-aid-to-india-dressed-up-as-business-investments-rather-than-direct-handouts-britain-watchdog/articleshow/98641083.cms

[10] Bitter baby empire: It’s time the UK minds its own business (opindia.com); https://www.opindia.com/2018/11/uk-daily-mail-statue-of-unity-mind-own-business-narendra-modi/

[11] Nicolas Sarkozy says Britain has ‘no industry’ (telegraph.co.uk); https://www.telegraph.co.uk/news/worldnews/nicolas-sarkozy/9048640/Nicolas-Sarkozy-says-Britain-has-no-industry.html

[12] The ‘despair’ and ‘loneliness’ of austerity Britain | Patrick Butler | The Guardian; https://www.theguardian.com/society/2012/jul/17/despair-loneliness-austerity-britain

[13] India’s secret history: ‘A holocaust, one where millions disappeared…’ | World news | The Guardian; https://www.theguardian.com/world/2007/aug/24/india.randeepramesh

[14] No plans to review India aid, says UK (deccanherald.com); https://www.deccanherald.com/amp/story/india/no-plans-review-india-aid-2311414

[15] UK-India Free Trade Agreement – The UK’s Strategic Approach (publishing.service.gov.uk); https://assets.publishing.service.gov.uk/media/61e1b75e8fa8f5058d5a76bf/uk-india-free-trade-agreement-the-uks-strategic-approach.pdf

Rakesh Krishnan Simha

Rakesh Krishnan Simha

Rakesh Krishnan Simha is a globally cited defense analyst. His work has been published by leading think tanks, and quoted extensively in books on diplomacy, counter terrorism, warfare and economic development. His work has been published by the Hindustan Times, New Delhi; Financial Express, New Delhi; US Air Force Center for Unconventional Weapons Studies, Alabama; the Centre for Land Warfare Studies, New Delhi; and Russia Beyond, Moscow; among others. He has been cited by leading organisations, including the US Army War College, Pennsylvania; US Naval PG School, California; Johns Hopkins SAIS, Washington DC; Centre for Air Power Studies, New Delhi; Carnegie Endowment for International Peace, Washington DC; and Rutgers University, New Jersey.

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